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अमेरिका और इजराइल के बाद 'इनर्शियल गाइडेड बम' का सफल परीक्षण करने वाला तीसरा देश बना भारत

By विकास कुमार | Updated: May 28, 2019 18:48 IST

डीआरडीओ के इस सफल परीक्षण के बाद भारत भी अमेरिका और इजराइल के कतार में खड़ा हो गया है. इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम होने के कारण खराब विजिबिलिटी में भी यह अपने टारगेट को ढूंढ कर उस पर सटीक हमला करता है.

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ठळक मुद्देइस बम का कुल भार 500 किलोग्राम है. यह इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम के द्वारा संचालित होती है जो कि इसे कठिन परिस्थितियों में भी सटीक हमले करने की क्षमता प्रदान करता है.

बीते शुक्रवार को डीआरडीओ ने राजस्थान के पोखरण में 500 किलोग्राम के 'इनर्शियल गाइडेड बम' का सफल परीक्षण किया था. यह तकनीक अमेरिका और इजराइल की सेना इस्तेमाल करती है.

डीआरडीओ ने पोखरण में यह सफल परीक्षण किया था जिसके बाद भारत की रक्षा ताकतों में जबरदस्त इजाफा हुआ है. यह टेस्ट सुखोई फाइटर विमान से किया गया था जो कि अपने टारगेट को भेदने में शत-प्रतिशत सफल रहा. 

परीक्षण के बाद डिफेंस मिनिस्ट्री द्वारा जारी किए गए आधिकारिक बयान में इस बात की पुष्टि की गई थी कि बम अपने टारगेट को भेदने में सफल रहा है. यह अपने साथ किसी भी तरह के वारहेड को ले जाने में सक्षम है. 

इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम 

द प्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, यह बम लेजर गाइडेड बम का अपग्रेडेड वर्जन है. यह इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम के द्वारा संचालित होती है जो कि इसे कठिन परिस्थितियों में भी सटीक हमले करने की क्षमता प्रदान करता है. 

DRDO की उपलब्धि 

डीआरडीओ के इस सफल परीक्षण के बाद भारत भी अमेरिका और इजराइल के कतार में खड़ा हो गया है. इस बम का कुल भार 500 किलोग्राम है. इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम होने के कारण खराब विजिबिलिटी में भी यह अपने टारगेट को ढूंढ कर उस पर सटीक हमला करता है. 

द प्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, इनर्शियल गाइडेड सिस्टम का मतलब एक ऐसी इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली है जो लगातार किसी मिसाइल, बैलिस्टिक मिसाइल, फाइटर प्लेन और सबमरीन की पोजीशन, वेग और त्वरण की स्थिति का सटीक अंदाजा लगाती है और उसके अनुरूप अपने हमले की प्लानिंग को हर पल बदलते हुए सटीक निशाना साधता हो. 

स्पाइस-2000 बम से ज्यादा ख़तरनाक

बालाकोट में इंडियन एयरफोर्स द्वारा किए गए एयरस्ट्राइक में स्पाइस-2000 बम का इस्तेमाल किया गया था. यह एक लेजर गाइडेड बम है जिसमें टारगेट को खोजने के लिए जीपीएस और सेटेलाईट इमेज का इस्तेमाल किया जाता है. डीआरडीओ द्वारा विकसित नए बम में जीपीएस और उपग्रह की तस्वीरों को लोड किए बिना यह अपने निशाने को खोज लेता है और उस पर विशुद्ध रूप से हमला करता है. यह तकनीक पूरी तरीके से डीआरडीओ द्वारा विकसित किया गया है. 

इस बम को सेना को सौंपने के बाद बिना दुश्मन क्षेत्र में गए उसके ठिकानों पर हमले की क्षमता प्राप्त हो जाएगी. बालाकोट जैसे एयरस्ट्राइक के समय भारतीय फाइटर विमान अपने क्षेत्र में रहते हुए भी सटीक निशाना लगा पाएंगे.  

टॅग्स :डीआरडीओबमभारतीय वायुसेना स्ट्राइकबालाकोटनिर्मला सीतारमणअमेरिकाइजराइल
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