नई दिल्ली: हर साल की तरह इस बार भी सितंबर के आखिरी सप्ताह में पड़ने वाले रविवार को मनाया जाता है। अंतरराष्ट्रीय बेटी दिवस साल 2007 से सेलिब्रेट किया जा रहा है। इस पर्व पर चीन में खेले जा रहे 19वें एशियन गेम्स में रमिता, मेहुली घोष और आशि चौकसी ने 10 मीटर शूटिंग रैंज में सिलवर मेडल जीता है।
इस दिन को मनाने के जो लक्ष्य थे उनमें पारंपरिक रूप से बेटों की बराबरी में बेटियों को लाकर उन्हें उतना ही सम्मान दिलाना। यह दिवस एक खास बात पर प्रकाश डालता है कि बेटियों को शिक्षा, कौशल से परिपूर्ण, खेलों में उनकी भागीदारी को सुनिश्चित करना और सबसे जरुरी उन्हें बेटों के मुकाबले समान अवसर मिलना जिससे उनका कल बेहतर हो सके।
साथ ही माता-पिता को भी अपना दायित्व समझते हुए बेटियों को शिखर पर पहुंचने तक मदद करते रहना है। उन्हें लगातार प्रशंसा का पात्र मानते हुए हर तरह से सक्षम बनाकर उन्हें इस काबिल बनाना कि वो आगे चलकर स्वावलंबन की ओर बढ़ती जाए।
ऐसे समाज में जहां सदियों से बेटों पूजा जा रहा है वहां बेटियों को भी पीछे की सीट से उठाकर आगे बिठाना है। इस दिन के अवसर पर बेटियों के जन्म पर माता-पिता को उनकी प्रशंसा कर कठिनाइयों को आसाना बनाना है। दिवस का मनाने का एक बड़ा कारण यह भी है कि बेटियों को बोझ न मानकर उन्हें ईश्वर द्वारा दिए आर्शीवाद के रूप में स्वीकार करना चाहिए। इसके पीछे जो बात है वो यह है कि बेटियों को सांस्कृतिक तौर पर बेटियों को बोझ माना जाता रहा है।
बेटी दिवस का महत्व तब और बढ़ जाता है जब आधुनिक युग में विश्व प्रवेश करता है क्योंकि आज एआई,कंप्यूटर समेत अनगनित टेक्नोलॉजी प्रवेश कर चुकी है और बेटियां चांद, आसमान को छू रही हैं। यदि भारत की बात की जाए तो सेना में भी कमिश्नड ऑफिसर तक की रैंक पर बेटियां विराजमान हैं यही नहीं द्रौपदी मुर्मू तो देश की राष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद पर आसीन है। इससे बढ़कर और क्या होगा जहां नेतृत्व की क्षमता रखते हुए बेटियां देश के शासन और प्रशासन में अपनी सेवाएं दे रही हैं।
इन आंकड़ों पर भी गौर करना चाहिए
आंकड़ों की मानें तो भारत में जन्म के समय का जो लिंगानुपात है वो प्रति 1000 लड़कों पर 900 बेटियों का है। यूनिसेफ ने कहा है कि भारत एक मात्र देश है जहां लड़कियों की मृत्यु दर लड़कों से ज्यादा है।
दूसरी ओर मृत्यु दर पर वैश्विक रिपोर्ट वर्तमान स्थिति बयां करती हैं कि लड़कियों की तुलना में 7 फीसद से अधिक लड़कों की 5 साल या उससे कम उम्र में मृत्यु हो जाती है। इसी तरह जब भारत में यह अनुपात देखा जाता है तो काफी चौकाने वाला है, देश में 11 प्रतिशत से ज्यादा बेटियां लड़को के मुकाबले पांच साल की उम्र होने से पहले ही दम तोड़ देती हैं।
ऐसे में यह आंकड़ें भारत में बेटियों की मृत्यु के चलते सतर्क करते हैं कि उनके जीवन यापन को कैसे उचित और अच्छा बनाना है और बेटियों को उनका हक दिलाते हुए उन्हें इस काबिल बनाना है कि वो खुले आसमान में बिना भय के अपना जिंदगी को हंस और खेल के जी सके।
साल के सितंबर माह के आखिर रविवार को मनाने का उद्देश्य यह है कि बेटियों के साथ उनके माता-पिता एक अच्छा समय बिता सके और उनके उद्देश्य के बारे में बेटियों से बात करें। इसी तरह उनकी परवरिश को सुखद और सरलतापूर्ण बना सकें।
बेटी दिवस पर माता-पिता के द्वारा शुभकानाओं से भरे अनूठे संदेश
कुछ का मानना है कि बेटी उनके लिए बहुत ही कीमती तोहफा है जिसे पाकर वो काफी सुखद महसूस कर रहे हैं।
बेटी ने उनका जीवन खुशियां से तो भरा ही और उन्हें गौरविन्त करा दिया है।
इस कड़ी में कुछ ने ये भी माना है कि बेटी शांति के साथ बिना बोले परिवार को संभालती है। कभी-कभी परिवार के निर्णायक फैसलों में भी उसकी अहम भूमिका होती है। इसलिए उसे आज बराबरी का तराजू पर तौला जाना चाहिए।
बेटी दुनिया का वो सितारा है जो माता-पिता की दुनिया में अपने प्रकाश से घर में फैले अंधियारे को समाप्त कर देती है।