नई दिल्ली: दलितों में क्रीमी लेयर को आरक्षण के दायरे से बाहर रखने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए केंद्र सरकार ने कहा है कि ऐसा करना असंवैधानिक होगा। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के मुद्दे पर फैसला सुनाया था। इसमें SC/ST आरक्षण को लेकर SC ने कुछ सुझाव दिए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में इस मुद्दे पर व्यापक चर्चा हुई।
पीएम मोदी के नेतृत्व में हुई कैबिनेट बैठक में एकमत से माना गया कि एनडीए सरकार बाबासाहेब अंबेडकर के संविधान के प्रावधानों के प्रति प्रतिबद्ध और समर्पित है। इस बारे में जानकारी देते हुए सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले का त्वरित खंडन करते हुए कहा कि बाबासाहेब अंबेडकर के प्रावधानों के अनुसार, एससी/एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है। कैबिनेट का निर्णय है कि एससी/एसटी आरक्षण बाबासाहेब के संविधान के अनुसार होना चाहिए।
महत्वपूर्ण बात यह है कि मोदी सरकार ने बिनेट द्वारा इस मुद्दे पर चर्चा करने से कुछ घंटे पहले ही भाजपा के एससी/एसटी सांसदों से यह कहकर अपनी सरकार की मंशा का संकेत दे दिया था कि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला केवल सिफारिशी है और सरकार इस बारे में उनकी “वास्तविक” चिंताओं से वाकिफ है। शीर्ष अदालत ने माना था कि क्रीमी लेयर को बाहर करने से आरक्षण के लाभ को दलितों के बीच बेहतर तबके के एकाधिकार के बजाय वास्तव में वंचितों तक पहुंचने में मदद मिलेगी।
कैबिनेट ने शुक्रवार, 9 अगस्त को कहा कि बी आर अंबेडकर द्वारा दिए गए संविधान में एससी और एसटी के लिए आरक्षण में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है। यह फैसला हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर आया है। क्रीमी लेयर पर 1 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट का फैसला बेंच के एकमात्र दलित जज जस्टिस बी आर गवई ने सुनाया, जिसमें अन्य जजों - सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस विक्रम नाथ, पंकज मिथल, मनोज मिश्रा और एससी शर्मा ने भी सहमति जताई।
हालांकि, 'क्रीमी लेयर' की अवधारणा, जो अब तक ओबीसी तक सीमित है, को दलितों तक भी विस्तारित करने की जरूरत से ज्यादातर राजनीतिक दल सहमत नहीं हैं। इनका कहना है कि ओबीसी की तुलना दलितों से नहीं की जा सकती। साथ ही, एससी की आर्थिक स्थिति में बेहतरी उसकी सामाजिक स्थिति को मजबूत नहीं करती और भेदभाव को कम नहीं कर सकती है।