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सुधा भारद्वाज को जमानत देने के आदेश के खिलाफ याचिका सूचीबद्ध करने पर विचार करेगा न्यायालय

By भाषा | Updated: December 6, 2021 13:25 IST

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नयी दिल्ली, छह दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि वह वकील-कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज को तकनीकी खामी के आधार पर जमानत देने के बंबई उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर एनआईए (राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण) की याचिका पर तत्काल सुनवाई के प्रतिवेदन पर विचार करेगा।

भारद्वाज को एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में गैर कानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून (यूएपीए) के प्रावधानों के तहत अगस्त 2018 में गिरफ्तार किया गया था।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जब याचिका पर तत्काल सुनवाई किए जाने का आग्रह किया, तो प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा, ‘‘हम देखेंगे।’’

मेहता ने कहा, ‘‘यह तकनीकी खामी के आधार पर जमानत दिए जाने का मामला है और यह आठ दिसंबर से प्रभावी होगा, इसलिए इस मामले पर सुनवाई की आवश्यकता है।’’

भारद्वाज को जमानत देने के बंबई उच्च न्यायालय आदेश के खिलाफ एनआईए ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की है। उच्च न्यायालय ने एक दिसंबर को अपने आदेश में कहा था कि केंद्र सरकार को अपदस्थ करने के षड्यंत्र में हिस्सा रही भारद्वाज जमानत की हकदार हैं और जमानत देने से इनकार करना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्राप्त जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के उनके मूल अधिकारों का हनन है।

उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि भायखला महिला जेल में बंद भारद्वाज को आठ दिसंबर को मुंबई की विशेष एनआईए अदालत में पेश किया जाए और उनकी जमानत की शर्तों एवं रिहाई की तारीख पर निर्णय लिया जाए। भारद्वाज इस मामले में गिरफ्तार 16 कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों में पहली आरोपी हैं जिन्हें तकनीकी खामी की वजह से जमानत दी गई है।

कवि और कार्यकर्ता वरवर राव इस समय चिकित्सा के आधार पर जमानत पर हैं। पादरी स्टेन स्वामी की इस साल पांच जुलाई को अस्पताल में उस समय मौत हो गई थी, जब वह चिकित्सा के आधार पर जमानत का इंतजार कर रहे थे। अन्य आरोपी विचाराधीन कैदी के तौर पर जेल में बंद हैं।

उच्च न्यायालय ने बुधवार को अन्य आठ आरोपियों- सुधीर धावले, वरवर राव, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन, महेश राउत, वर्नोन गोंजाल्विस और अरुण फरेरा की तकनीकी खामी के आधार पर जमानत देने की याचिकाएं खारिज कर दी।

यह मामला 31 दिसंबर 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में एल्गार परिषद के कार्यक्रम में कथित तौर पर भड़काऊ भाषण देने से जुड़ा है। पुलिस का दावा है कि भड़काऊ बयानों के कारण इसके अगले दिन पुणे के बाहरी इलाके कोरेगांव-भीमा में हिंसा भड़की। पुलिस का यह भी दावा है कि इस कार्यक्रम को माओवादियों का समर्थन हासिल था। बाद में इस मामले की जांच एनआईए को सौंप दी गई थी।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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