कांग्रेस और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने मंगलवार को देश के स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों पर लिखी एक किताब से ''मालाबार विद्रोह'' में भाग लेने वाले लोगों के नाम ''हटाने'' के केंद्र सरकार के कथित कदम की यह तर्क देते हुए निंदा की कि वर्ष 1921 का यह ''आंदोलन'' भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक हिस्सा था। केरल में सत्तारूढ़ माकपा के कार्यवाहक सचिव ए विजयराघवन ने ''मालाबार विद्रोह'' को सामंती जमींदारों द्वारा शोषण के खिलाफ सबसे संगठित आंदोलन करार देते हुए कहा कि भले ही केंद्र इसका नाम मिटाने का प्रयास करे, लेकिन यह भारत के इतिहास का एक हिस्सा रहेगा। कांग्रेस के प्रदेश प्रमुख के सुधाकरन ने कहा कि ''मालाबार क्रांति'' साम्राज्यवाद विरोधी ताकतों के खिलाफ एक उभरता आंदोलन था और आरोप लगाया कि केवल संघ परिवार की ताकतें ही इस तरह के स्वतंत्रता संग्राम को सांप्रदायिक रूप दे सकती हैं। इन नेताओं के अलग-अलग बयान केरल में उठी उस बहस के बीच आए हैं जिसमें कहा गया है कि क्या मालाबार विद्रोह जिसे मोपला विद्रोह भी कहा जाता है, अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह था या एक सांप्रदायिक दंगा था। उन्होंने मीडिया के एक वर्ग की रिपोर्ट का भी हवाला दिया जिसमें भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (आईसीएचआर) की तीन सदस्यीय समिति ने देश के स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों पर आधारित पुस्तक से 387 ''शहीदों'' का नाम हटाने की मांग की है, जिसमें अली मुसलियार और वी कुंजाहमद हाजी जैसे विद्रोही नेता शामिल हैं। हालांकि, आईसीएचआर ने मीडिया में आई इन रिपोर्ट पर आधिकारिक रूप से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। वहीं, भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने मालाबार विद्रोह, जिसे 1921 के मोपला (मुस्लिम) दंगों के रूप में भी जाना जाता है, को भारत में तालिबानी मानसिकता की पहली अभिव्यक्तियों में से एक करार दिया है। माकपा नेता विजयराघवन ने मलप्पुरम में संवाददाताओं से कहा, ''जो लोग मालाबार विद्रोह को खारिज करते हैं, उनकी ब्रिटिश समर्थक मानसिकता है।'' उन्होंने कहा, '' अंग्रेजों ने संघर्ष को सांप्रदायिक दंगे के रूप में चित्रित करने की कोशिश की। आरएसएस इस तरह से इस कदम को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रही। मालाबार विद्रोह भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक हिस्सा है। विद्रोह में निर्विवाद रूप से ब्रिटिश विरोधी भावना थी।
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