नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने शनिवार को कहा कि कार्यपालिका के विभिन्न अंगों प्रदर्शन न करने के कारण और विधायिका के अपनी पूरी क्षमता के साथ काम नहीं करने के कारण अदालतों में केसों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई है।
इसके साख ही उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या में वृद्धि और मौजूदा रिक्तियों को भरने से लंबित मामलों के समाधान में मदद मिलेगी।
सीजेआई रमना ने मुख्यमंत्रियों और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि संबंधित लोगों की जरूरतों और आकांक्षाओं को शामिल करते हुए गहन बहस और चर्चा के बाद कानून बनाया जाना चाहिए। अक्सर कार्यपालकों के गैर-प्रदर्शन और विधायिकाओं की निष्क्रियता के कारण मुकदमेबाजी होती है।
उन्होंने आगे कहा कि अदालत के फैसले सरकार द्वारा सालों तक लागू नहीं किए जाते हैं। न्यायिक फैसलों के बावजूद जानबूझकर निष्क्रियता रहती है जो देश के लिए अच्छा नहीं है। हालांकि नीति निर्धारण हमारा अधिकार क्षेत्र नहीं है, लेकिन अगर कोई नागरिक अपनी शिकायत लेकर हमारे पास आता है तो अदालत मना नहीं कर सकती।
उन्होंने आगे कहा कि जनहित याचिका की अवधारणा अब निजी हित याचिका में बदल गई है और कभी-कभी परियोजनाओं को रोकने या सार्वजनिक प्राधिकारियों पर दबाव बनाने के लिये इनका इस्तेमाल किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि ने शनिवार को कहा कि संविधान राज्य के तीनों अंगों के बीच शक्तियों के पृथक्करण का प्रावधान करता है और अपने कर्तव्य का पालन करते समय लक्ष्मण रेखा का ध्यान रखा जाना चाहिये।
बता दें कि, कानून और न्याय मंत्रालय ने हाल ही में लोकसभा को बताया है कि जिला और निचली अदालतों में 4 करोड़ से अधिक तो विभिन्न हाईकोर्ट में करीब 60 लाख और सुप्रीम कोर्ट में 70 हजार मामले लंबित हैं।