Chhatrapati Shivaji Maharaj: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि छत्रपति शिवाजी सिर्फ एक मराठा राजा नहीं थे, बल्कि ‘हिंदवी स्वराज’ के प्रेरणास्रोत थे। उन्होंने लोगों को उनके योगदान के बारे में जागरूक करने की जरूरत पर बल दिया। होसबाले ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद शिवाजी के इतिहास को ‘‘विकृत’’ करने के प्रयास किए गए, लेकिन वे उन्हें इतिहास से मिटा नहीं सके क्योंकि वे स्वयं ‘प्रकाशपुंज और प्रेरणादायी’ बने रहे। संघ सरकार्यवाह यहां शिवाजी के राज्याभिषेक की 350वीं वर्षगांठ पर उनके जीवन और योगदान पर प्रकाशित चार पुस्तकों के विमोचन के लिए आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा, ‘‘क्या शिवाजी महाराज केवल मराठाओं के थे?
उनके शासनकाल को हमेशा मराठा साम्राज्य के रूप में संदर्भित किया जाता है। शिवाजी महाराज ने एक बार भी ऐसा नहीं कहा। उन्होंने हिंदवी स्वराज की बात की थी।’’ होसबाले ने कहा कि अंग्रेजों के सत्ता में आने से पहले शिवाजी महाराज द्वारा निर्मित साम्राज्य दक्षिण एशिया में सबसे बड़ा था, जो 25 करोड़ एकड़ भूमि पर फैला हुआ था।
उन्होंने कहा कि शिवाजी ने अपना राज्याभिषेक राजा बनने की ‘स्वार्थी महत्वाकांक्षा’ से नहीं, बल्कि यह संदेश देने के लिए स्वीकार किया था कि ‘‘भारतीय समाज जीवित और साहसी है तथा भारत का हिंदू समाज, जो शक्तिशाली और सक्षम है, अपने साम्राज्य पर नियंत्रण करने के लिए एक बार फिर उठ खड़ा होगा।’’
होसबाले ने कहा कि शिवाजी ने यह संदेश देने की आवश्यकता महसूस की, क्योंकि भारतीय समाज अपने ‘‘मंदिरों, संस्कृति, राज्य, भाषा के विनाश के बाद पराजित महसूस कर रहा था और लोगों को आशंका थी कि उनका धर्म बचेगा या नहीं।’’ संघ सरकार्यवाह ने शिवाजी के सुशासन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उन्होंने अपने कार्यों से दिखाया कि राजसत्ता सत्ता भोगने के लिए नहीं बल्कि लोगों और देश की सेवा के लिए होती है। उन्होंने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने अनिल महादेव दवे की पुस्तक ‘शिवाजी और सुराज’ की प्रस्तावना लिखी थी।
इसमें उन्होंने संकेत दिया था कि शिवाजी से प्रेरणा लेते हुए आज भी ‘सुशासन’ की आवश्यकता है।’’ कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शिवाजी के जीवन और योगदान पर प्रकाश डाला और कहा कि उनके पास मराठा स्वराज की नहीं बल्कि हिंद स्वराज की अवधारणा थी। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि शिवाजी को इतिहास में जो स्थान मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला। हमें उन्हें इतिहास में उचित स्थान दिलाने के लिए हरसंभव प्रयास करना चाहिए।’’