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केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में राजद्रोह कानून का बचाव किया, कहा- दुरुपयोग रोकने के उपाय किये जा सकते हैं

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: May 8, 2022 08:13 IST

सीजेआई एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने 5 मई को कहा था कि वह 10 मई को इसपर सुनवाई करेगी कि क्या राजद्रोह से संबंधित औपनिवेशिक युग के दंडात्मक कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं को बड़ी पीठ के पास भेजा जा सकता है।

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ठळक मुद्देशीर्ष अदालत ने, 1962 में राजद्रोह के दुरुपयोग के दायरे को सीमित करने का प्रयास किया था।गुरुवार को अटॉर्नी जनरल ने भी राजद्रोह कानून को खत्म नहीं किए जाने की सिफारिश की थी।अटॉर्नी जनरल ने कहा था कि दुरुपयोग के संबंध में केवल दिशानिर्देश निर्धारित किए जाने चाहिए।

नई दिल्ली: केंद्र ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट में राजद्रोह से संबंधित दंडात्मक कानून और इसकी वैधता बरकरार रखने के संविधान पीठ के 1962 के एक निर्णय का बचाव किया।

सीजेआई एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने 5 मई को कहा था कि वह 10 मई को इसपर सुनवाई करेगी कि क्या राजद्रोह से संबंधित औपनिवेशिक युग के दंडात्मक कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं को बड़ी पीठ के पास भेजा जा सकता है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के माध्यम से दाखिल 38 पन्नों की लिखित प्रस्तुति में कहा गया है, ''कानून के दुरुपयोग के मामलों के आधार पर कभी भी संविधान पीठ के बाध्यकारी निर्णय पर पुनर्विचार करने को समुचित नहीं ठहराया जा सकता। छह दशक पहले संविधान पीठ द्वारा दिये गए फैसले के अनुसार स्थापित कानून पर संदेह करने के बजाय मामले-मामले के हिसाब से इस तरह के दुरुपयोग को रोकने के उपाय किये जा सकते हैं।‘’

शीर्ष अदालत ने, 1962 में राजद्रोह कानून की वैधता को बरकरार रखते हुए इसके दुरुपयोग के दायरे को सीमित करने का प्रयास किया था।

इससे पहले गुरुवार को भारत के अटॉर्नी जनरल (महान्यायवादी) केके वेणुगोपाल ने भी सुप्रीम कोर्ट से कहा कि राजद्रोह कानून को खत्म नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि दुरुपयोग के संबंध में केवल दिशानिर्देश निर्धारित किए जाने चाहिए।

बता दें कि, सीजेआई एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ सेना के पूर्व सेवानिवृत्त अधिकारी एसजी वोम्बटकेरे और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया द्वारा दायर दो रिट याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।

पिछले साल जुलाई में याचिकाओं पर नोटिस जारी करते हुए सीजेआई रमना ने प्रावधान के कथित दुरुपयोग का जिक्र करते हुए पूछा था कि क्या औपनिवेशिक कानून, स्वतंत्रता के 75 साल बाद अभी भी आवश्यक है।

(भाषा से इनपुट के साथ)

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