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क्या सरकार किसी अधिकारी को बांके बिहारी मंदिर का ट्रस्टी बना सकती है?, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: July 23, 2025 22:34 IST

न्याय मित्र के मुताबिक, “यह मंदिर एक निजी मंदिर है और यहां ब्रह्मलीन स्वामी हरि दास जी महाराज के वंशजों द्वारा धार्मिक अनुष्ठान किया जा रहा है। यह अध्यादेश जारी कर सरकार पिछले दरवाजे से मंदिर पर नियंत्रण का प्रयास कर रही है।”

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ठळक मुद्देन्याय मित्र संजीव गोस्वामी का पक्ष सुनने के बाद सुनवाई की अगली तिथि 30 जुलाई निर्धारित की। अध्यादेश के मुताबिक, इस बोर्ड में दो तरह के ट्रस्टी होंगे जिसमें एक नामित ट्रस्टी और दूसरे पदेन ट्रस्टी।नामित ट्रस्टी में वैष्णव परंपरा से संत, महात्मा, गुरु, विद्वान, मठाधीश और महंत आदि और सनातन धर्म मानने वाले लोग होंगे।

प्रयागराजः इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा है कि क्या वह उत्तर प्रदेश बांके बिहारी जी मंदिर न्यास अध्यादेश, 2025 जारी कर अपने अधिकारियों को बांके बिहारी जी मंदिर का ट्रस्टी नियुक्त कर सकती है, जबकि बांके बिहारी जी का मंदिर एक निजी मंदिर है। न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने प्रणव गोस्वामी और अन्य द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई के दौरान न्याय मित्र संजीव गोस्वामी का पक्ष सुनने के बाद सुनवाई की अगली तिथि 30 जुलाई निर्धारित की। न्याय मित्र के मुताबिक, “यह मंदिर एक निजी मंदिर है और यहां ब्रह्मलीन स्वामी हरि दास जी महाराज के वंशजों द्वारा धार्मिक अनुष्ठान किया जा रहा है। यह अध्यादेश जारी कर सरकार पिछले दरवाजे से मंदिर पर नियंत्रण का प्रयास कर रही है।”

न्याय मित्र ने अदालत को अवगत कराया कि अध्यादेश के मुताबिक, इस बोर्ड में दो तरह के ट्रस्टी होंगे जिसमें एक नामित ट्रस्टी और दूसरे पदेन ट्रस्टी। नामित ट्रस्टी में वैष्णव परंपरा से संत, महात्मा, गुरु, विद्वान, मठाधीश और महंत आदि और सनातन धर्म मानने वाले लोग होंगे।

हालांकि, उन्होंने पदेन ट्रस्टियों को लेकर घोर आपत्ति की जिनकी संख्या सात है और इनमें मथुरा के जिलाधिकारी, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, नगर आयुक्त आदि जैसे अधिकारी होंगे। यह राज्य सरकार द्वारा इस निजी मंदिर में पिछले दरवाजे से प्रवेश के समान है। न्याय मित्र ने कहा, “इस तरह के ट्रस्ट का निर्माण करना राज्य सरकार द्वारा हिंदू धर्म में घुसपैठ के समान है।

भारत का संविधान राज्य को किसी भी धर्म का आचरण करने और किसी मंदिर का नियंत्रण अपने हाथ में लेने की अनुमति नहीं देता।” अदालत ने 21 जुलाई के अपने आदेश में राज्य सरकार से जवाब मांगा और कहा, “इस मामले में विचार करने की आवश्यकता है.. सुनवाई जारी रहेगी। इस मामले को नए सिरे से 30 जुलाई को रखा जाए। तब तक राज्य सरकार, न्याय मित्र द्वारा पेश दलीलों पर जवाब दाखिल करे।”

टॅग्स :मथुराउत्तर प्रदेशAllahabad High Court
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