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तो मैं सुसाइड कर लूंगी?, आखिर पत्नी क्यों दे रही बार-बार धमकी, बंबई उच्च न्यायालय ने कहा-क्रूरता के समान, अलग-अलग रह रहे हैं और न ही मेल-मिलाप संभव हुआ...

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: November 19, 2025 18:09 IST

याचिका के मुताबिक व्यक्ति की शादी 2006 में हुई थी, लेकिन वैवाहिक विवाद के कारण वह 2012 से पत्नी से अलग रह रहा था।

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ठळक मुद्देपारिवारिक अदालत के 2019 के आदेश को चुनौती दी थी।पारिवारिक अदालत ने व्यक्ति की तलाक की अर्जी खारिज कर दी थी।हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक देने के आधार हो सकता है।

मुंबईः बंबई उच्च न्यायालय ने एक व्यक्ति को तलाक देते हुए कहा कि जीवनसाथी द्वारा बार-बार आत्महत्या करने की धमकी देना क्रूरता के समान है। मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति गौतम अंखड की पीठ ने पिछले सप्ताह पारित अपने आदेश में कहा कि जब ऐसा आचरण दोहराया जाता है, तो पति या पत्नी के लिए वैवाहिक संबंध जारी रखना असंभव हो जाता है। इस फैसले की प्रति बुधवार को उपलब्ध कराई गई। यह आदेश उस व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर पारित किया गया, जिसने पारिवारिक अदालत के 2019 के आदेश को चुनौती दी थी।

पारिवारिक अदालत ने व्यक्ति की तलाक की अर्जी खारिज कर दी थी। याचिका के मुताबिक व्यक्ति की शादी 2006 में हुई थी, लेकिन वैवाहिक विवाद के कारण वह 2012 से पत्नी से अलग रह रहा था। व्यक्ति ने दावा किया कि अलगाव और संदेह के साथ-साथ धमकी और आत्महत्या का प्रयास करना हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक देने के आधार हो सकता है।

पीठ ने आदेश में कहा कि पति-पत्नी एक दशक से अधिक समय से अलग-अलग रह रहे हैं और उनके बीच न तो कोई सौहार्द्रपूर्ण समझौता हो पाया है और न ही मेल-मिलाप संभव हो पाया है। अदालत ने कहा कि व्यक्ति ने क्रूरता के कई उदाहरणों का उल्लेख किया था, लेकिन पारिवारिक अदालत ने उन पर विचार नहीं किया।

पीठ ने उच्चतम न्यायालय के एक फैसले का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि जीवनसाथी द्वारा आत्महत्या की धमकी देना क्रूरता है। उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘जब इस तरह का आचरण दोहराया जाता है, चाहे शब्दों, संकेतों या हावभावों के माध्यम से, तो दंपती के लिए शांतिपूर्ण वातावरण में वैवाहिक संबंध जारी रखना असंभव हो जाता है।’’

अदालत ने कहा कि संदेह और आत्महत्या के प्रयास के आरोप पति के प्रति पत्नी के आचरण को दर्शाते हैं। पीठ ने कहा कि अब पति-पत्नी का साथ रहना संभव नहीं है, इसलिए तलाक का आदेश दिया जाना चाहिए। अदालत ने व्यक्ति को तलाक की अनुमति देते हुए उसे अंतिम निपटान के रूप में 25 लाख रुपये का भुगतान करने और दो फ्लैट का स्वामित्व महिला को हस्तांतरित करने का निर्देश दिया।

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