पटनाः बिहार में नई सरकार के गठन की अंतिम तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। मुख्यमंत्री पद की शपथ के साथ-साथ भाजपा ने अपने दोनों उपमुख्यमंत्री पद के चेहरों को भी लगभग तय कर दिया है। बुधवार को भाजपा विधायक दल की अहम बैठक में फिर से सम्राट चौधरी को विधायक दल का नेता और विजय कुमार सिन्हा को उपनेता चुना गया। इसके साथ ही यह स्पष्ट हो गया है कि आगामी सरकार में दोनों नेता उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। इस तरह भाजपा ने बिहार में कोई बदलाव नहीं किया है। पिछले 3 बार से भाजपा उपमुख्यमंत्री पद पर लगातार बदलाव करती रही है।
इसलिए इस बार भी अंतिम समय में संशय हो गया था, लेकिन पार्टी ने इस बार कोई बदलाव न करके सभी को चौंका दिया है। विधायक दल की बैठक के लिए यूपी के उपमुख्यमंत्री और बिहार भाजपा पर्यवेक्षक केशव प्रसाद मौर्य, सह-पर्यवेक्षक सांसद साध्वी निरंजन ज्योति, केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल, वरिष्ठ नेता धर्मेंद्र प्रधान और बिहार भाजपा प्रभारी विनोद तावड़े मौजूद रहे।
सभी नवनिर्वाचित विधायकों के साथ-साथ विधान पार्षदों ने भी बैठक में हिस्सा लिया। वहीं, विधायक दल के नेता के रूप में सम्राट चौधरी और उप-नेता के रूप में विजय सिन्हा के नाम की घोषणा करते हुए केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि ये जोड़ी हिट और फिट है। राज्य के उपमुख्यमंत्री के रूप में दोनों ने शानदार काम किया है। मैं दोनों को शुभकामनाएं देता हूं।
बिहार भाजपा विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद सम्राट चौधरी ने कहा कि मैं पार्टी लीडरशिप और सभी विधायक को धन्यवाद देता हूं जिन्होंने मुझे फिर से पार्टी को लीड करने का मौका दिया है। जनता ने भाजपा पर अपना भरोसा जताया है और पार्टी उनकी उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश करेगी।
वहीं, बिहार भाजपा ने सम्राट चौधरी को विधानमंडल दल के नेता चुने जाने पर शुभकामनाएं देते हुए कहा कि यह चयन आपके नेतृत्व, जनसेवा और संगठन के प्रति समर्पण का सम्मान है। विश्वास है कि आपका नेतृत्व बिहार की प्रगति को नई गति और नई दिशा देगा। पार्टी ने विजय सिन्हा को बिहार भाजपा विधानमंडल दल के उप नेता चुने जाने पर भी बधाई दी।
पार्टी ने कहा कि यह सम्मान आपकी अथक मेहनत, संगठन के प्रति निष्ठा और मजबूत जनसंपर्क का परिणाम है। पूर्ण विश्वास है कि आपका अनुभव और मार्गदर्शन बिहार की विकास यात्रा को नई दिशा प्रदान करेगा। सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा को बरकरार रखने का निर्णय पूरी तरह से भाजपा के शीर्ष नेतृत्व, खासकर अमित शाह की रणनीति का परिणाम माना जा रहा है।
इसके पीछे का तर्क यह है कि निरंतरता बनाए रखना: सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा ने विपक्ष में रहते हुए और फिर एनडीए की सरकार में उपमुख्यमंत्री के रूप में पार्टी के लिए सफलतापूर्वक काम किया है। उनकी जोड़ी ने सफलतापूर्वक एनडीए को जीत दिलाई है। ऐसे में अमित शाह ने ‘विनिंग कॉम्बिनेशन’ को बदलने का जोखिम नहीं लिया, ताकि संगठन में किसी तरह की अस्थिरता पैदा न हो।
दरअसल सम्राट चौधरी को उपमुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने ने एक मजबूत ओबीसी नेता को आगे किया है। कुशवाहा जाति बिहार में यादवों के बाद सबसे बड़ी ओबीसी जातियों में से एक है, और यह वर्ग पारंपरिक रूप से नीतीश कुमार के वोटबैंक का हिस्सा रहा है। सम्राट को आगे रखकर भाजपा इस वोट बैंक को स्थायी रूप से अपने साथ जोड़ना चाहती है।
इससे ईबीसी के बीच भी पार्टी का संदेश पहुंचता है कि ओबीसी वर्ग को उच्च प्रतिनिधित्व मिल रहा है। वहीं, विजय सिन्हा को बनाए रखकर पार्टी ने अपने पारंपरिक सवर्ण वोटबैंक भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण को स्पष्ट संदेश दिया है कि उनका प्रतिनिधित्व शीर्ष पर बरकरार है। भूमिहार समुदाय ने भाजपा के लिए हमेशा कठिन समय में भी मजबूत वोटिंग की है। दोनों नेताओं की संगठन पर मजबूत पकड़ है।
जो अगले 5 साल के लिए एनडीए सरकार के लिए स्थिरता सुनिश्चित करेगी। यह फैसला भले ही नया लगे, लेकिन इसके पीछे भाजपा की एक सोची-समझी रणनीति और बिहार की मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियां हैं। यह पहली बार नहीं है जब दोनों नेताओं पर पार्टी ने भरोसा जताया है। इससे पहले भी सम्राट चौधरी ही भाजपा विधायक दल के नेता थे और विजय कुमार सिन्हा उपनेता थे।
चुनावी प्रचार के दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने कई बार सार्वजनिक मंचों से यह संकेत दिया था कि सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा भाजपा की पहली पसंद होंगे। सम्राट चौधरी के क्षेत्र में एक रैली को संबोधित करते हुए अमित शाह ने खुले मंच से कहा था कि “आप लोग चुनाव जिताइए, हम इन्हें बड़ा आदमी बना देंगे।” यह बयान अपने आप में ही भाजपा की आगामी रणनीति का संकेत था।
इसी तरह लखीसराय में विजय कुमार सिन्हा की रैली के दौरान भी शाह ने कहा था कि विजय बाबू को जितवाइए, इन्हें बड़ा पद दिलाना हमारा जिम्मा है। अब जब विधायक दल की बैठक में दोनों नेताओं को फिर से नेतृत्व की जिम्मेदारी दी गई, तो साफ हो गया कि अमित शाह की चुनावी घोषणा अब हकीकत में बदलने जा रही है।
बता दें कि सम्राट चौधरी पिछले कुछ वर्षों से बिहार में भाजपा का प्रमुख चेहरा रहे हैं। आक्रामक शैली, तेज बयानबाज़ी और विपक्ष पर तीखे हमले उनकी पहचान रहे हैं। चुनाव अभियान के दौरान उन्होंने नीतीश कुमार और महागठबंधन पर लगातार हमले कर भाजपा का माहौल बनाने में अहम भूमिका निभाई। संगठन के भीतर भी उनकी पकड़ मजबूत मानी जाती है।
कुशवाहा समाज से आने के कारण भाजपा ने उन्हें एक बड़े सामाजिक समीकरण के रूप में भी देखा। चुनाव अभियान में उन्होंने जिस ऊर्जावान नेतृत्व का परिचय दिया, उससे भाजपा हाईकमान पूरी तरह संतुष्ट रहा। यही कारण है कि पार्टी ने एक बार फिर उन्हें विधायक दल का नेता बनाकर उपमुख्यमंत्री पद के लिए प्राथमिकता दी।
16 नवंबर 1968 को मुंगेर के लखनपुर गांव में जन्मे चौधरी राजनीतिक परिवार से आते हैं। उनके पिता शकुनी चौधरी छह बार विधायक और सांसद रहे, जबकि उनकी मां पार्वती देवी भी तारापुर से विधायक रह चुकी हैं। शुरुआती शिक्षा स्थानीय स्कूलों में हासिल करने के बाद उन्होंने मदुरै कामराज विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की।
राजनीति में उनकी शुरुआत वर्ष 1990 में हुई, जब राबड़ी देवी सरकार में वे कृषि मंत्री बने। तब से लेकर आज तक उन्होंने कई राजनीतिक भूमिकाएं निभाईं, जो उन्हें बिहार की सत्ता में एक मजबूत खिलाड़ी बनाती हैं। वे 2000 और 2010 में परबत्ता से विधायक चुने गए और 2010 में विधानसभा में विपक्ष के चीफ व्हिप भी बने।
सम्राट चौधरी का राजनीतिक स्टैंड कई बार सुर्खियों में रहा है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष रहने के दौरान उन्होंने नीतीश कुमार पर लगातार हमलावर रुख अपनाया था। वे अक्सर पगड़ी पहनकर सार्वजनिक मंचों पर नजर आते थे, जिसके बारे में उन्होंने कहा था कि यह पगड़ी वे तब तक नहीं उतारेंगे, जब तक नीतीश कुमार को सत्ता से हटाकर दम नहीं लेंगे।
लेकिन 2024 में जब नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ गठबंधन में वापसी की, तो सम्राट चौधरी को बिना पगड़ी के देखा गया। यह दृश्य राजनीतिक गलियारों में काफी चर्चित रहा और इसे भाजपा-जदयू गठबंधन की मजबूती का संकेत माना गया। बता दें कि 2014 में सम्राट चौधरी राजद में टूट की योजना बना रहे थे।
कहा गया कि उन्होंने 13 विधायकों को साथ लेकर अलग समूह बनाने की कोशिश की थी, लेकिन योजना पूरी होने से पहले ही वे भाजपा में शामिल हो गए। उसी साल वे जीतन राम मांझी सरकार में मंत्री बने। राजद छोड़ने का उनका फैसला बिहार की राजनीति में एक बड़े मोड़ के रूप में देखा गया।
भाजपा ने उन्हें एक ऐसे चेहरे के रूप में आगे बढ़ाया, जो ओबीसी, विशेषकर कोरी/कुशवाहा समुदाय पर मजबूत पकड़ रखता है। मार्च 2023 में भाजपा ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी। यह नियुक्ति इसलिए भी महत्वपूर्ण थी क्योंकि पार्टी बिहार में ओबीसी, कोरी-कुशवाहा समुदाय में अपना जनाधार मजबूत करना चाह रही थी। 2024 में चौधरी भाजपा विधायक दल के नेता बने और बाद में डिप्टी सीएम भी।
मौजूदा चुनाव में उन्होंने तारापुर सीट से शानदार जीत दर्ज की, जिसके बाद अब पार्टी ने एक बार फिर उन पर भरोसा जताया है। 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में एनडीए ने 202 सीटें जीती हैं, भाजपा 89, जदयू 85, लोजपा (रामविलास) 19, हम 5 और रालोमो 4। यह प्रचंड जनादेश आने वाले दिनों में बिहार की राजनीति में नए समीकरण तय करने वाला है।