पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव में क्या कांग्रेस ’एकला चलने’ की तैयारी में है? दरअसल, महागठबंधन में एक साथ होने के बावजूद दोनों के बीच तालमेल की कमी देखी जा रही है। मुख्यमंत्री के चेहरे पर जहां राजद ने तेजस्वी यादव को प्रोजेक्ट कर रही है, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस इस मुद्दे पर टालमटोल करती दिख रही है। महागठबंधन की दिल्ली के अलावे पटना में कई बार हुई मैराथन बैठकों के बावजूद भी तेजस्वी को मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में घोषित नहीं किया गया है। उधर, कन्हैया कुमार की बिहार में हुई यात्रा में राजद के एक भी नेता शामिल नहीं हुए। ऐसे में यह सवाल उठने लगा है कि आखिर कांग्रेस के मन में चल क्या रहा है। क्या कांग्रेस सीट बंटवारे को लेकर कोई प्रेशर पॉलिटिक्स कर रही है या फिर बिहार में कांग्रेस ‘एकला चलो’ की राह अपनाना चाहती है?
इसके साथ ही सियासी गलियारे हाल के दिनों में जो सियासी घटनाक्रम हुए हैं, उसे देखकर राजद और कांग्रेस के बीच चल रही सियासी खींचतान माना जा रहा है। राज्य में ‘माई बहिन मान योजना’ पर कांग्रेस और राजद के बीच श्रेय लेने की होड़ मची है। कारण कि कांग्रेस जिस तरह बिहार में आगे बढ़ रही है उससे कई संकेत मिल रहे हैं।
बता दें कि तेजस्वी यादव पहले ही ‘माई बहिन मान योजना’ के तहत महिलाओं को हर महीने 2500 रुपये देने का ऐलान कर चुके हैं। अब कुछ महीनों बाद कांग्रेस ने भी यही घोषणा की है। कांग्रेस नेताओं ने पहली गारंटी का ऐलान करते हुए कहा कि अगर बिहार में उनकी सरकार बनती है, तो ‘माई बहिन मान योजना’ के तहत महिलाओं को हर महीने 2500 रुपये मिलेंगे।
महिला कांग्रेस अध्यक्ष अलका लांबा ने इस घोषणा पर खुशी और गर्व जताया, जिसमें महिलाओं को हर महीने 2500 रुपये देने का वादा किया गया है। उल्लेखनीय है कि बिहार विधानसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस पार्टी इस बार अपनी पूरी ताकत झोंकने में जुट गई है। कहा जा रहा है कि चुनावी कमान को खुद कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने अपने हाथों में ले रखा है।
इसी कड़ी में राहुल गांधी बिहार में कांग्रेस की स्थिति मजबूत करने के लिए लगातार दौरे कर रहे हैं। दरअसल, बिहार की राजनीति में वापस से अपनी पकड़ बनाने के लिए राहुल गांधी जातीय किलेबंदी करने में जुटे हैं। इस बार बिहार चुनाव में राहुल गांधी का फोकस दलित और और पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं पर है।
2023 में बिहार में हुई जातीय जनगणना की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में दलितों की आबादी लगभग 19 फीसदी है। बिहार विधानसभा की 243 सीटों में से 38 सीटें अनुसूचित जाति और 2 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। एक समय में दलित कांग्रेस का मजबूत वोट बैंक हुआ करते थे। लेकिन फिर ये वोटबैंक नीतीश कुमार, रामविलास और लालू यादव के पास चला गया।
1990 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 24.78 फीसदी दलितों का वोट मिला था। जबकि 2020 में सिर्फ 9.48 फीसदी दलितों ने कांग्रेस को वोट किया था। इसबीच अब सत्ता पक्ष(एनडीए) यह सवाल उठा रहा है कि अगर बिहार में महागठबंधन है, तो ये अलग-अलग घोषणाएं और चुनावी वायदे क्यों हो रहे हैं?
जदयू के मुख्य प्रवक्ता एवं विधान पार्षद नीरज कुमार ने कहा कि कांग्रेस को अब तेजस्वी यादव की अगुवाई मंजूर नहीं है। कांग्रेस को भी अपना भविष्य तलाशना चाहिए। वह कब तक राजद के वैशाखी पर चलती रहेगी। जबकि कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है और उसे अब दूसरे क सहारे चलना पड़ रहा है। इससे बड़ा और दुर्भाग्य क्या हो सकता है?