पटनाः बिहार में होने वाले विधानसभा चुनावों में प्रवासी मजदूर एक निर्णायक भूमिका में होंगे. ये प्रवासी मजदूर ज्यादातर ग्रामीण इलाके से आते हैं और गांवों में ही पड़ने वाले वोट निर्णायक साबित होते हैं.
कोरोना काल में पहला चुनाव बिहार विधानसभा का हो रहा है. कोरोना संक्रमण काल की शुरुआत में बिहार से पलायन कर चुके प्रवासी मजदूर घर लौटने लगे थे. हालांकि, कुछ मजदूर वापस लौट गये हैं. मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोडा ने बताया कि बिहार के 38 जिलों में करीब 18.87 लाख प्रवासी थे. इनमें से 16.6 लाख मतदान करने के योग्य थे. इनमें से 13.93 लाख प्रवासी मजदूरों के नाम पहले से ही मतदाता सूची में थे.
सरकारी आंकड़ों की मानें तो कोरोना काल और लॉकडाउन के दौरान बिहार में अबतक करीब 25 लाख प्रवासी लौट थे. इसमें से कई लोग ऐसे भी बताए जाते हैं कि जिनका यहां के मतदाता सूची में नाम नहीं हैं और कई ऐसे भी लोग हैं, हाल के दिनों में 18 वर्ष की आयु पूरी किए हैं. बिहार निवार्चन आयोग पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि प्रवासी मजदूरों के नाम मतदाता सूची में डालने के लिए विशेष अभियान चलाया गया.
बिहार में मतदाताओं की संख्या कम से कम 15 लाख बढ़ी
ऐसे में तय माना जा रहा है कि बिहार में मतदाताओं की संख्या कम से कम 15 लाख बढ़ी है. बिहार में फिलहाल 7 करोड 18 लाख मतदाता हैं. वहीं, करीब 2.3 लाख मजदूरों ने मतदान के लिए पंजीकरण कराया है. पंजीकरण की प्रक्रिया अब भी जारी है.
ऐसे में यह माना जा रहा है कि इस साल चुनाव में कई सीटों का समीकरण प्रवासी मजदूर बना और बिगाड़ सकते हैं. यहां बता दें कि विधानसभा चुनाव 2015 में ज्यादातर जीत और हार के बीच का अंतर 30 हजार वोटों का पाया गया है. बिहार वापस लौटनेवाले मजदूरों में ज्यादातर दलित और अतिपिछडे़ समाज के हैं. खासकर उत्तर पूर्व बिहार के लोग बिहार के बाहर से पहुंचे हैं.
विधानसभा चुनाव में इन प्रवासी मजदूरों का वोट महत्वपूर्ण होगा
ऐसे में तय माना जा रहा है कि होने जा रहे विधानसभा चुनाव में इन प्रवासी मजदूरों का वोट महत्वपूर्ण होगा. ऐसा नहीं कि प्रवासी मजदूर किसी खास इलाकों में पहुंचे है. ये प्रवासी मजदूर करीब सभी विधानसभा क्षेत्रों में पहुंचे हैं. बिहार के सभी राजनीतिक दल प्रवासी मजूदरों को साधने में जुटे हैं. यही कारण है कि सभी दल उनके सबसे अधिक शुभचिंतक साबित करने में लगे रहे. बिहार में सत्तारूढ़ दल जहां प्रवासी मजदूरों को हर सुविधा देने का दावा कर रही है, वहीं विपक्ष सरकार पर प्रवासी मजदूरों को लेकर निशाना साध रही है.
साल 2015 के आंकडों के मुताबिक, आठ विधानसभा सीटों पर हार-जीत का अंतर एक हजार से कम का था. हालांकि, भाजपा और जदयू व हम के एक साथ आने के बाद दो कुछ सीटों पर असर पडेगा. वहीं, अगर पांच हजार के अंतर के आंकडे पर नजर डालें तो 25 सीटों पर हार-जीत हुई थी.
इन 25 सीटों में सात सीटें ऐसी थीं, जिनमें भाजपा और जदयू के बीच सीधा मुकाबला था. इस तरह से इसबार प्रवासी मजदूरों के मतदान पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं. सभी दल उनके हित की बात करने में कोई कोर क्सर नही छोड़ रहे हैं. राजद ने तो बजाप्ता रोजगार और सरकारी नौकरी देने का खुला आफर देकर सभी को युवाओं को लुभाने का प्रयास तेज कर दिया है.