हिन्दी सिनेमा के दिलीप-देव-राज के दौर में भी धरती के लाल, दो बीघा जमीन, काबुलीवाला, हक़ीक़त और गरम हवा जैसी फिल्मों से अपनी विशिष्ट पहचान बनाने वाले बलराज साहनी की आज (13 अप्रैल) को पुण्यतिथि है। एक मई 1913 को रावलपिण्डी में जन्मे बलराज साहनी ने अभिनय की शुरुआत रंगमंच से की थी। वो और उनकी पत्नी बनी दमयंती दोनों ही वामपंथी थिएटर ग्रुप इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन (इप्टा) से जुड़े हुए थे। नाटक लिखने और उसमें अभिनय करने के अलावा बलराज साहनी ने गुरु रविंद्रनाथ टैगोर की छत्रछाया में शांति निकेतन में हिन्दी शिक्षक के तौर पर काम कर चुके थे। कुछेक साल तक उन्होंंने बीबीसी हिन्दी में उद्घोषक की नौकरी भी की।
अभिनय के मामले में बलराज साहनी मेथड एक्टरों की तरह वास्तविक अनुभव हासिल करके रोल की तैयारी करते थे। दो बीघा जमीन में हाथ-रिक्शा खींचने वाले मजदूर का रोल निभाने के लिए उन्होंने 15 दिनों तक कलकत्ता (अब कोलकाता) की सड़कों पर हाथ-रिक्शा खींचा था। काबुलीवाला फिल्म की तैयारी के लिए वो कई दिनों तक पठानों के साथ रहे। लेकिन ये कम लोग जानते हैं कि बलराज साहनी को शुरुआत में उपहास का पात्र भी बनना पड़ा था। वो भी अपने बेटे के सामने ही। अभिनेता एसएस जौहर ने बलराज साहनी पर लिखे एक श्रद्धांजलि लेख में इस पूरे वाक़ये का जिक्र किया है। आइए हम आपको सुनाते हैं वो पूरा क़िस्सा क्या है।
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बलराज साहनी वामपंथी राजनीति में सक्रिय थे। वो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पंजीकृत सदस्य थे। एक बार उन्हें किसी राजनीतिक रैली में शामिल होने की वजह से जेल जाना पड़ा। उस समय मशहूर निर्मातान-निर्देशक के आसिफ "हलचल" (1951) फिल्म बना रहे थे। फिल्म का निर्देशन एसके ओझा ने कर रहे थे। फिल्म में दिलीप कुमार और नर्गिस मुख्य भूमिका में थे। बलराज साहनी फिल्म में जेलर की चरित्र भूमिका निभा रहे थे। बलराज साहनी जेल से फिल्म की शूटिंग के लिए लाये जाते थे। फिल्म में बलराज साहनी का किरदार जेलर का था। बलराज जेल से आकर जेलर की भूमिका निभाकर लौट जाते थे।उस समय उनकी पत्नी दमयन्ती गर्भवती थीं। बलराज के घर में उनके अलावा कोई कमाने वाला नहीं था। बलराज के जेल में होने से उनका परिवार आर्थिक संकटों से घिर गया था। उनके परिवार की मदद के लिए फिल्म निर्माता के आसिफ ने उनके बेटे अजय को भी फिल्म में बाल कलाकार के तौर पर काम दे दिया था। इस तरह पिता-पुत्र दोनों ही कई बार सेट पर साथ ही मौजूद होते थे। तो कई बार केवल अजय साहनी अकेले शूटिंग कर रहे होते थे।
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जेल में रहने के कारण बलराज साहनी की सेहत खराब हो गयी थी। साधारण से दिखने वाले बलराज साहनी की शारीरिक दशा और जेल से आकर शूटिंग करने का बहुत से लोग मजाक बनाते थे। अजय साहनी के सामने ही कुछ लोग कहते थे कि बलराज साहनी फिल्मी दुनिया में सफल नहीं हो सकते। वो लोग इस बात का भी लिहाज नहीं करते थे कि बालक अजय साहनी के सामने ही वो उसके पिता का माखौल उड़ा रहे हैं। दुखी अजय ने अपने पिता को ये सारी बातें बताईं। बलराज साहनी ने मजाक उड़ाने वालो की बातों पर नाराज होने के बजाय अपने बेटे से कहा, "देखो बेटा, मुझे पता है कि ये लोग मेरे बारे में क्या कहते हैं लेकिन तुम इससे परेशान मत होओ। एक दिन मैं उन्हें दिखा दूँगा।" पता नहीं अजय साहनी उस समय अपने पिता की बात से किस हद तक राहत पा सके लेकिन आज हम कह सकते हैं कि बलराज साहनी सही थे। उन्होंने अपने आलोचकों ही नहीं सभी सिनेप्रेमियों को दिखा दिया कि वो क्या थे।
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बलराज साहनी का 13 अप्रैल 1973 को मुंबई (तब बॉम्बे) में 59 वर्ष की उम्र में हृदय गति रुक जाने से निधन हो गया। अभिनय और साहित्य में हासिल की गयी सफलताओं के इतर बलराज साहनी ने एक और उपलब्धि हासिल की जो विरल है। मायानगरी में करीब तीन दशकों तक रहने के बावजूद बलराज साहनी ने अपने अंदर के संवेदनशील इंसान को बचाए रखा। बलराज साहनी को श्रद्धांजलि देते हुए समीक्षक दीपक महान ने उनके बारे में देव आनन्द की राय साझा की थी। देव आनन्द ने दीपक महान से कहा था, "दुनिया में रफ़ी साहब और बलराज साहनी जैसे शरीफ और ईमानदार लोग बहुत कम मिलते हैं।" उनकी पुण्यतिथि पर हम बलराज साहनी के आखिरी शब्दों को याद कर सकते हैं जो सार्थक जीवन के सार को बहुत कम और सरल शब्दों व्यक्त करते हैं। मृत्यु से पहले मुंबई के लीलावती अस्पताल में बलराज साहनी ने डॉक्टर को काग़ज़ पर लिखकर दिया था- मुझे कोई पछतावा नहीं, मैंने अपनी जिन्दगी भरपूर जी है।