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करीब 3 महीने बाद करगिल व द्रास वासियों में है खुशी की लहर, लंबी सर्दी को झेलने के बाद स्थानीय अब निकल रहे है लेने ताजा फल और सब्जियां

By सुरेश एस डुग्गर | Updated: March 26, 2022 16:26 IST

आपको बता दें कि सर्दियों में बर्फबारी के कारण लेह के लोग इतने प्रभावित नहीं होते हैं क्योंकि वहां दिल्ली से आने वाली उड़ानें इनकी आपूर्ति करती रहती थीं।

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ठळक मुद्देकरीब तीन महीने बाद द्रास के लोग अपने घरों से बाहर निकले हैं। सर्दियों को अपने घरों में बिताने के बाद अब वे ताजा फल और सब्जियां खरीदने निकले हैं।साल के छह महीने इनकी जिंदगी बोझ रहती है।

जम्मू: करीब तीन महीनों के बाद दुनिया के सबसे ठंडे माने जाने वाले और देश के साइबेरिया अर्थात द्रास के इलाके के लोगों के लिए वह सच में बेहद खुशी का पल था जब वे करीब तीन महीनों के बाद ताजा सब्जियां और फल लेने के लिए बाजारों में निकले थे। करगिल के इलाके का भी यही हाल था।

72 दिन बाद खुला श्रीनगर-लेह राजमार्ग

दरअसल लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश के इन दोनों इलाकों को दुनिया से मिलाने वाली सड़क 72 दिनों के उपरांत खुली तो कश्मीर ताजा फलों व सब्जियों के काफिले यहां तक पहुंचे थे। इतना जरूर था कि अतीत में 5 से 6 महीनों तक अक्सर बंद रहने वाले 434 किमी लंबे श्रीनगर-लेह राजमार्ग को इस बार 72 दिनों के बाद ही खोल दिया गया था! 

इसके कई कारणों में दो प्रमुख कारण कम बर्फबारी का होना तथा चीन सीमा पर बने हुए तनाव से निपटने में आने वाली हर रूकावट को जल्द दूर करने का दबाव था।

राजमार्ग के बंद होने से कट जाता है संपर्क

इस राजमार्ग के चार-छह महीनों तक बंद होने से लाखों लोगों का संपर्क शेष विश्व से कट जाता है और ऐसे में उनकी हिम्मत काबिले सलाम है। बात उन लोगों की हो रही है जो जान पर खेल कर लेह-श्रीनगर राजमार्ग को यातायात के लायक बनाते हैं। 

बात उन लोगों की हो रही है जो इस राजमार्ग के बंद हो जाने पर कम से कम 6 माह तक जिन्दगी बंद कमरों में इसलिए काटते हैं क्योंकि पूरे विश्व से उनका संपर्क कट जाता है।

लेह के लोग दिल्ली के कारण कम होते है प्रभावित

इतना जरूर था कि हर सर्दियों में बर्फबारी के कारण बंद रहने के कारण लेह के लोग इतने प्रभावित नहीं होते हैं क्योंकि वहां दिल्ली से आने वाली उड़ानें इनकी आपूर्ति करती रहती थीं। पर द्रास व करगिल के लोग किस्मत के धनी नहीं होते और जब कल शाम को कश्मीर से चलने वाला वाहनों का काफिला द्रास व करगिल में जरूरी खाद्यान लेकर पहुंचा तो बाजारों में लोग लाइनों में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। उन्हें ताजा फल व सब्जियां 72 दिनों के उपरांत उपलब्ध हुए थे।

रमजान में राजमार्ग न खुला तो बढ़ जाएगी परेशानी

एक करगिलवासी का कहना था कि उसने तीन महीनों के बाद ताजा सब्जी के दर्शन किए हैं और उसकी चिंता अगले महने से शुरू होने जा रहे रमजान के महीने की भी थी कि अगर यह राजमार्ग समय से पहले न खुलता तो उनकी मुश्किलें बढ़ जातीं। वे सीमा सड़क संगठन अर्थात बीआरओ का तहेदिल से शुक्रिया अदा जरूर करते थे जिनके अथक प्रयासें से यह संभव हो पाया था।

साल में छह महीने जिंदगी रहती है बोझ

काबिले सलाम सिर्फ बीआरओ के कर्मी ही नहीं बल्कि इस राजमार्ग के साल में कम से कम 6 महीनों तक बंद रहने के कारण शेष विश्व से कटे रहने वाले द्रास, लेह और करगिल के नागरिक भी हैं। इन इलाकों में रहने वालों के लिए साल में छह महीने ऐसे होते हैं जब उनकी जिन्दगी बोझ बन कर रह जाती है। 

जमा पूंजी से भरते है पेट

असल में छह महीने यहां के लोग न तो घरों से निकलते हैं और न ही कोई कामकाज कर पाते हैं। जमा पूंजी खर्च करते हुए पेट भरते हैं। चारों तरफ बर्फ के पहाड़ों के बीच लद्दाख के लोगों को अक्तूबर से मई तक के लिए खाने पीने की चीजों के अलावा रोजमर्रा की दूसरी चीजें भी पहले ही एकत्र कर रखनी पड़ती हैं। 

टॅग्स :भारतKargilविंटरसर्दियों का खानालद्दाख
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