Celebrating 78th Independence Day: 15 अगस्त, 2024 को भारत अपना 78वाँ स्वतंत्रता दिवस मनाएगा। लगभग 200 सालों की गुलामी के बाद 15 अगस्त 1947 को देश को आजादी मिली थी। तब से लेकर अब तक हमने एक बड़ा रास्ता तय किया है। वर्तमान केंद्र सरकार ने इस वर्ष, 2024 में स्वतंत्रता दिवस को 'विकसित भारत' थीम के तहत मनाने का फैसला किया है। मोदी सरकार 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र में बदलने का विजन लेकर काम कर रही है। 2047 में भारत को आजाद हुए 100 साल हो जाएंगे।
आजादी पाने का सफर बेहद मुश्किल था। आजाद भारत का सपना देखने वाले बहुत सारे लोग देश को आजादी मिलते नहीं देख पाए। लंबे स्वतंत्रता संघर्ष में कई ऐसे पड़ाव थे जो आजादी के आंदोलन में महत्वपूर्ण साबित हुए। हम यहां कुछ ऐसे ही आंदोलनों के बारे में बता रहे हैं जिन्हें आजादी के सफर का सबसे बड़ा पड़ाव माना जाता है। इसमें 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से लेकर 1942 तक की महत्वपूर्ण घटनाएं शामिल हैं।
1857 की क्रांति- इसे भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जाता है। यह आंदोलन 10 मई 1857 को मेरठ में शुरू हुआ और धीरे-धीरे दिल्ली, आगरा, कानपुर और लखनऊ तक फैल गया।
1885 में काँग्रेस की स्थापना- भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना 72 प्रतिनिधियों की उपस्थिति के साथ 28 दिसम्बर 1885 को बम्बई (मुम्बई) के गोकुल दास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय में हुई थी। इसने आजादी के आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1905-1911 (स्वदेशी आंदोलन)- 1905 में लॉर्ड कर्जन द्वारा बंगाल के विभाजन की घोषणा के स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत हुई।
ग़दर आंदोलन- 1914-1917- ग़दर आंदोलन भारत की आज़ादी के आंदोलन में एक महत्वपूर्ण पड़ाव था। रोज़गार की तलाश में कनाडा आने वाले भारतीय प्रवासियों की संख्या को कम करने के लिए नस्लीय भेदभाव पर आधारित कई कड़े आव्रजन कानून बनाए गए थे।
होम रूल आंदोलन - (1916-18) - होम रूल आंदोलन प्रथम विश्व युद्ध के प्रति देश की प्रतिक्रिया और ब्रिटिश शासन के प्रति विरोध व्यक्त करने का एक शक्तिशाली साधन था।
चंपारण सत्याग्रह ( 1917) - चंपारण आंदोलन स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महात्मा गांधी का पहला सविनय अवज्ञा आंदोलन था, जो 1917 में बिहार के चंपारण क्षेत्र में हुआ था।
रौलेट सत्याग्रह- (1919)- ब्रिटिश भारतीय सरकार द्वारा पारित 1919 का अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम, रौलट अधिनियम के नाम से जाना जाता था। इस अधिनियम ने सरकार को आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में किसी भी व्यक्ति को बिना किसी सुनवाई के दो साल तक जेल में रखने का अधिकार दिया। इसी तरह रॉलेट एक्ट द्वारा प्रेस की स्वतंत्रता को भी गंभीर रूप से प्रतिबंधित कर दिया गया था।
सविनय अवज्ञा आंदोलन - (1930)- यह आंदोलन 1930 में शुरू हुआ जब अंग्रेजों ने नमक की बिक्री और संग्रहण पर कर लगा दिया। इससे भारतीयों में गुस्सा भड़क उठा। गांधीजी ने सरकार की अवज्ञा करते हुए नमक कर को तोड़ने का फैसला किया।
भारत छोड़ो आंदोलन - (1942) - भारत में स्वतंत्रता आंदोलन के विचार को कांग्रेस कार्य समिति ने 14 जुलाई, 1942 को वर्धा में अपनी बैठक में स्वीकार किया था। गांधी जी ने अगस्त 1942 में अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर करने के प्रयास में इस आंदोलन की शुरुआत की थी। इस अभियान को "भारत छोड़ो आंदोलन" के नाम से जाना जाता है। इसे भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के ताबूत में आखिरी कील माना जाता है।