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Ayurvedic Treatment Of Migraine: क्या आयुर्वेद से दूर हो सकती है माइग्रेन की समस्या?, जानिए यहां

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: April 09, 2024 6:57 AM

पारंपरिक चिकित्सा आयुर्वेद में माइग्रेन को दूर करने के लिए  हर्बल उपचार का प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद में माइग्रेन के लिए कई प्रभावी उपचार हैं।

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ठळक मुद्देआयुर्वेद में माइग्रेन को दूर करने के लिए हर्बल उपचारों का प्रयोग किया जाता हैआयुर्वेद में माइग्रेन के लिए कई प्रभावी उपचार हैंसेक, विरेचन, रक्‍त मोक्षण, बस्‍ती और नास्‍य के जरिये माइग्रेन का इलाज किया जाता है

Ayurvedic Treatment Of Migraine: माइग्रेन एक तंत्रिका संबंधी विकार है जिसमें तीव्र सिरदर्द जैसा महसूस होता है। इसके अलावा माइग्रेन के शिकार लोगों में अपच, क्रोध, तनाव, मतली या उल्टी आना, तेज ध्वनि या तीव्र प्रकाश से दिक्कत महसूस होती है। जब ये इंसान में दिखाई देते हैं तो उसे माइग्रेन अटैक कहा जाता है। आयुर्वेद के अनुसार माइग्रेन के कई कारण हो सकते हैं जिनमें जीवनशैली, आहार, पर्यावरण और जलवायु शामिल है।

पारंपरिक चिकित्सा आयुर्वेद में माइग्रेन को दूर करने के लिए  हर्बल उपचार का प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद में माइग्रेन के लिए कई प्रभावी उपचार हैं। इस समस्या से लड़ने में आपकी सहायता के लिए यहां कुछ समाधान दिए गए हैं। आयुर्वेद भारत की प्रचीन चिकित्सा पद्धति है। आयुर्वेद में सेक (सिकाई), विरेचन कर्म, रक्‍त मोक्षण, बस्‍ती कर्म, नास्‍य कर्म, कवल ग्रह, शिरोधारा और लेप जैसे कई तरीकों से माइग्रेन का उपचार हो सकता है।

माइग्रेन की वजह से गर्दन और जबड़े में जकड़न और बहती नाक की समस्‍या भी हो सकती है। सिर से संबंधित अन्‍य रोगों की तरह माइग्रेन भी त्रिदोष (वात, पित्त और कफ) में असंतुलन के कारण होता है, जिसमें व्‍यक्‍ति में किसी एक दोष का स्‍तर बढ़ जाता है। हर व्‍यक्‍ति के शरीर में त्रिदोष में से भिन्‍न दोष असंतुलित होता है। आमतौर पर इसमें वात और पित्त असंतुलित हो जाते हैं।

माइग्रेन के लिए आयुर्वेदिक नुस्खे

अदरक

कइ रोगों के इलाज में अदरक का इस्‍तेमाल किया जाता है। यह पाचक, दर्द-निवारक यौगिक, उत्तेजक और कफ निस्‍सारक के रूप में कार्य करती है। वात, पित्त और कफ दोष के कारण पैदा हुए रोगों का इलाज करने में अदरक चमत्‍कारिक असर दिखाती है। काले नमक के साथ अदरक लेने पर वात में कमी आती है और मिश्री के साथ लेने पर पित्त और शहद के साथ अदरक लेने पर कफ दोष शांत होता है। माइग्रेन के अलावा सिरदर्द, जी मिचलाना और उल्‍टी और डायबिटीज जैसे कई रोगों के इलाज में भी अदरक उपयोगी है।

तगार (चीनी का बूरा)

वात विकारों के इलाज के लिए बेहतरीन जड़ी-बूटी है तगार। ये शरीर से अमा यानी विषाक्‍त पदार्थ हटाने और साफ करने में मदद करती है। माइग्रेन के अलावा तगार खांसी, थकान और मानसिक तनाव का भी इलाज करती है। तगार के सेवन में अत्‍यधिक सावधानी बरतनी चाहिए क्‍योंकि इसकी अधिक खुराक लेने की वजह से लकवा मार सकता है।

त्रिभुवनकीर्ति

अनेक सामग्रियों से युक्‍त यह एक हर्बो-मिनरल मिश्रण है। इस औषधि के कुछ घटकों में शुंथि (सूखी अदरक), मरीछा, पिप्‍पली, तुलसी, धतूरा और अदरक जैसी जड़ी-बूटियां मौजूद हैं। दोष के आधार पर विभिन्‍न भस्‍मों जैसे कि गोदंती भस्‍म, श्रिंगा (हिरण का सींग) भस्‍म और अभ्रक भस्‍म के साथ इसका इस्‍तेमाल किया जाता है।

त्रिभुवनकीर्ति रस का प्रयोग बुखार, पसीना लाने और दर्द से राहत दिलाने में किया जाता है। ये माइग्रेन, इंफ्लुएंजा, लेरिन्‍जाइटिस (स्‍वर तंत्र में होने वाल सूजन), फैरिन्जाइटिस (गले की सूजन), निमोनिया, टॉन्सिलाइटिस (टॉन्सिल का संक्रमित होना) और ब्रोंकाइटिस (श्‍वसनीशोथ) जैसे विभिन्‍न रोगों को नियंत्रित करने में मदद करती है।

गोदंती मिश्रण

इसमें गोदंती भस्‍म, जहर मोहरा पिष्टि (शरीर से जहर को निकालने वाली) और रसादि वटी होती है। माइग्रेन के इलाज में गोदंती मिश्रण को अकेले या अन्‍य चिकित्‍सा उपचार के साथ इस्‍तेमाल कर सकते हैं।

सितोपलादि चूर्ण

सितोपलादि चूर्ण में विभिन्‍न सामग्रियां जैसे मिश्री, वंशलोचन, छोटी पिप्‍पली, छोटी इलायची और दालचीनी निश्चित अनुपात में होते हैं। माइग्रेन के अलावा ये बुखार, फ्लू और श्‍वसन विकारों के इलाज में भी असरकारी है। इस दवा से तीन से चार दिनों में भी रोग के लक्षणों से राहत पाने में मदद मिलती है और आठ सप्‍ताह के अंदर रोग पूरी तरह से ठीक हो जाता है। कभी-कभी जुकाम से ग्रस्‍त होने पर, अत्‍यधिक कफ के सिर तक पहुंचने पर सिरदर्द हो जाता है। ऐसी स्थिति में सिरदर्द का इलाज करने के लिए सितोपलादि चूर्ण का इस्‍तेमाल किया जाता है।

(अस्वीकरण- यह लेख विभिन्न शोध के आधार पर प्रकाशित है, कृपया किसी भी नुस्खे का प्रयोग आयुर्वेदाचार्य की सलाह पर करें।) 

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