पटना: बिहार से मानव तस्करी का धंधा बदस्तूर जारी है। बड़ी संख्या में लडकियां और महिलाएं देह व्यापार में धकेल दी जा रही हैं। दरअसल, सक्रिय गिरोह लडकियां और महिलाओं बिहार से बाहर ले जाकर बंधुआ मजदूर बनाते हैं, इसके बाद देह व्यापार में धकेल दिया जाता है। हाल यह है कि सीमांचल के जिलों कटिहार, पूर्णिया, किशनगंज और अररिया में मानव तस्करी एक बड़ी समस्या बन चुकी है। इसका बड़ा कारण गरीबी है। बाढ़ग्रस्त क्षेत्र होने के कारण यहां की खेती-किसानी भी चार से पांच महीनों तक प्रभावित रहती है। रोजगार की तलाश में घर के पुरुष सदस्य अक्सर पलायन कर जाते हैं और तस्कर इनकी इसी मजबूरी का फायदा उठाते हैं। वे लड़कियों की शादी और बालकों को रोजगार दिलाने का झांसा देकर उन्हें बड़े शहरों और महानगरों में भेज देते हैं।
बताया जाता है कि सीमांचल मानव तस्करी का ट्रांजिट रूट बन गया है। पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे (एनएफआर) ने पिछले दस महीनों में जोन के विभिन्न स्टेशनों से 728 नाबालिगों और 45 युवतियों को मानव तस्करों के चंगुल से मुक्त कराया है। इनमें से कुछ मामलों में तो तस्करों की गिरफ्तारी भी हुई है। सिर्फ कटिहार रेल मंडल के कई स्टेशनों से 145 नाबालिग बच्चों और बच्चियों को मुक्त कराया गया। रेल सुरक्षा बल ने पिछले दस महीनों में 25 रोहिंग्याओं को पकड़ा है, जिनमें 16 युवतियां और 9 पुरुष शामिल हैं।
पकड़े गए रोहिंग्याओं को घरेलू नौकरों के रूप में महानगरों में ले जाए जाने की बात सामने आई थी। बताया जाता है कि लड़कियों को पूर्णिया के रास्ते किशनगंज लाया जाता है। फिर चोरी-छिपे बांग्लादेश सीमा को पार कराया जाता है। इसके बाद खाड़ी देशों में लड़कियों को भेज दिया जाता है। खाड़ी देशों में कम उम्र की भारतीय लड़कियों की काफी डिमांड है, जिससे दलालों को मुंह मांगी कीमत दी जाती है। गिरोह की महिला सदस्य ट्रेन, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड जैसे भीड़-भाड़ वाली जगहों पर लड़कियों को अपना शिकार बनाती हैं।
जानकारों के अनुसार पिछले 20 साल में 50 से अधिक लड़कियों को बेचा जा चुका है। 10 से अधिक दलाल गिरफ्तार किए गए है। गृह मंत्रालय के रिकॉर्ड के मुताबिक हर साल 14000 से अधिक महिलाएं और बच्चे बिहार से गायब हो जाते हैं। हालांकि पुलिस में इतने मामले दर्ज नहीं हो पाए। आंकड़ों के अनुसार, साल 2019 में 9839 लड़कियां और 1213 महिलाएं गायब हुई। कुल 14052 महिलाएं और लड़कियां तस्करी का शिकार हुई। साल 2020 में कुल 9999 लड़कियां और 4557 महिलाएं गायब हुई कुल 14556 महिलाएं और लड़कियां तस्करी का शिकार हुई। साल 2021 में 9808 लड़कियां और 561 महिलाएं तस्करी का शिकार हुई। कुल मिलाकर 14869 महिलाएं और लड़कियां तस्करी का शिकार हुई।
वहीं, रिपोर्ट औंन मिसिंग वूमेन एंड चिल्ड्रन इन इंडिया 2019 के अनुसार भारत में 2018 में कुल 67134 बच्चे गए हुए, जिसमें 10.35 फीसदी बच्चे बिहार से गायब रिपोर्ट के मुताबिक बच्चों का उपयोग कैमल जोकीज और बाल श्रम में किया जाता है तो लड़कियों को देह व्यापार के धंधे में धकेल दिया जाता है। बिहार, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल के बाद तीसरे स्थान पर है। बिहार से कुल मिलाकर 6950 बच्चे गायब हुए। जबकि रिपोर्ट औंन मिसिंग वूमेन एंड चिल्ड्रन इंडिया के रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2018 में कुल मिलाकर 223621 महिलाएं अपने राज्य से गायब हुई जिसमें की 7775 महिलाएं बिहार से गायब हुई बिहार का स्थान 12वां रहा।
रिपोर्ट के मुताबिक ज्यादातर महिलाओं को देह व्यापार में धकेल दिया गया। रिकॉर्ड में आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि महिलाएं और बच्चों की तस्करी बेतरतीब तरीके से हो रही है। पुलिस विभाग से जब गायब होने को लेकर सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी गई तो काफी कम मामले महिलाओं और बच्चे के गायब होने को लेकर दर्ज किए गए। सूचना के अधिकार के मुताबिक 2016 से लेकर 2023 के बीच कुल मिलाकर 709 लोग मानव तस्करी का शिकार हुए और बिहार पुलिस ने मामला दर्ज किया साल 2016 में 30 साल 2017 में 87 साल 2018 में 71 साल 2019 में 69 साल 2020 में 73 साल 2021 में 98 साल 2022 में 162 और साल 2023 में 119 लोग मानव तस्करी का शिकार हुए।
आरटीआई कार्यकर्ता, श्रीप्रकाश राय के अनुसार बिहार से हजारों लोग हर साल मानव तस्करी का शिकार हो रहे हैं। खास तौर पर महिलाएं और बच्चों को टारगेट किया जा रहा है। बच्चों से जहां बाल मजदूरी कराई जा रहे हैं वहीं महिलाओं को देह व्यापार में धकेला जा रहा है। गायब होने के जितने मामले सामने आते हैं, उतने मामले पुलिस में दर्ज नहीं हो पाते। वहीं, डीजीपी विनय कुमार ने कहा कि बिहार में सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियां, जैसे गरीबी, बेरोजगारी, और शिक्षा की कमी, मानव तस्करी के लिए एक संवेदनशील वातावरण तैयार करती हैं। इन परिस्थितियों का फायदा उठाकर तस्करी करने वाले गिरोह लोगों को झांसे में लाकर, शोषण और अत्याचार का शिकार बनाते हैं।
इस संकट ने न केवल परिवारों को तोड़ा है, बल्कि सामाजिक संरचना को भी चुनौती दी है। हालांकि पुलिस लगातार सक्रिय रहती है और इसके लिए एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग टीम का भी गठन कर लगातार निगरानी की जाती है। हाल के वर्षों में हमलोग इसपर काफी हद तक अंकुश लगाने में सफ रहे हैं। पुलिस को कहीं से भी सूचना मिलती है तो तुरंत कार्रवाई की जाती है। लोगों को इसके लिए जागरूक भी किया जा रहा है और किसी भी प्रकार के झांसे में नही आने की हिदायत भी दी जाती है। निकट भविष्य में हम लोग इसपर पूरी तरह से नियंत्रण पाने में सफल रहेंगे।