मुंबईः भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने बुधवार को कहा कि यूपीआई लेनदेन पर शुल्क लगाने का कोई प्रस्ताव नहीं है। गवर्नर ने साथ ही बताया कि केंद्रीय बैंक एक प्रस्ताव पर विचार कर रहा है जिसके तहत वित्तीय संस्थानों को मासिक किस्त भुगतान में चूक की स्थिति में ऋण लेकर खरीदे गए मोबाइल फोन को डिजिटल तरीके से ‘लॉक’ करने की अनुमति मिल पाएगी। यूपीआई लेनदेन पर शुल्क लगाने का प्रस्ताव होने के सवाल पर मल्होत्रा ने कहा कि ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है। यूपीआई लेनदेन में काफी वृद्धि हो गई है।
उन्होंने मौद्रिक नीति की घोषणा के बाद संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘ क्या यूपीआई पर शुल्क लगेगा? हमारे समक्ष ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है।’’ ऋण पर खरीदे गए फोन को डिजिटल तरीके से ‘लॉक’ करने के बारे में गवर्नर ने कहा कि मामला विचाराधीन है। आरबीआई के डिप्टी गवर्नर एम. राजेश्वर राव ने कहा कि फोन को डिजिटल तरीके से ‘लॉक’ करने के फायदे व नुकसान दोनों पर गौर किया जा रहा है।
राव ने कहा, ‘‘ जैसा कि गवर्नर ने बताया कि डिजिटल तरीके से फोन को ‘लॉक’ करने का मामला विचाराधीन है। ग्राहकों के अधिकारों व जरूरतों, निजी सूचना की गोपनीयता एवं कर्ज देने वालों की जरूरतों के बीच संतुलन बनाने के मामले में दोनों पक्षों के फायदे व नुकसान हैं। इसलिए हम इस मुद्दे पर गौर कर रहे हैं और बाद में इस पर कोई निर्णय लेंगे।’’
नीतिगत दरों में कटौती पर गवर्नर ने कहा कि मुद्रास्फीति में उल्लेखनीय गिरावट आई है, जिससे मौद्रिक नीति में ढील की गुंजाइश बनी है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में गिरावट पर उन्होंने कहा कि केंद्रीय बैंक किसी स्तर को लक्षित नहीं करता, बल्कि केवल अनावश्यक अस्थिरता को रोकने का प्रयास करता है।
मल्होत्रा ने भरोसा जताया कि मूल्य स्थिरता के साथ उच्च सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर जारी रहेगी तथा निजी पूंजीगत व्यय में भी वृद्धि होगी। उन्होंने कहा कि आरबीआई ने 2025-26 की पहली छमाही में अच्छी आर्थिक गतिविधियों के दम पर चालू वित्त वर्ष के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के वृद्धि अनुमान को 6.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.8 प्रतिशत कर दिया है।
विलय, अधिग्रहण के लिए भारतीय कंपनियों को कर्ज दे सकेंगे बैंक
रिजर्व बैंक ने बुधवार को कहा कि भारतीय कंपनियों को विलय और अधिग्रहण करने के लिए भारतीय बैंकों से ऋण मिल सके, इसके लिए वह उपयुक्त व्यवस्था तैयार करेगा। यह भारतीय बैंकों की लंबे समय से मांग रही है। हाल ही में भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन सी एस शेट्टी ने भी वैश्विक ऋणदाताओं की तरह बैंकों को विलय और अधिग्रहण के लिए धन मुहैया कराने की अनुमति देने का समर्थन किया था।
शेट्टी ने कहा, ''शुरुआत में, हम आईबीए (आरबीआई) से एक औपचारिक अनुरोध करेंगे... कम से कम कुछ सूचीबद्ध कंपनियों से शुरुआत करें, जहां अधिग्रहण अधिक पारदर्शी हों और इसे शेयरधारकों की मंजूरी मिली हो।'' भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा की घोषणा करते हुए कहा कि भारतीय बैंकों को भारतीय कंपनियों द्वारा अधिग्रहण के लिए धन मुहैया कराने हेतु एक सक्षम ढांचा तैयार करने का प्रस्ताव है। उन्होंने कहा कि इससे बैंकों द्वारा पूंजी बाजार ऋण देने का दायरा बढ़ेगा।
मल्होत्रा ने कहा कि सूचीबद्ध ऋण प्रतिभूतियों पर कर्ज देने की नियामक सीमा को हटाने और शेयरों पर बैंकों द्वारा कर्ज देने की सीमा को 20 लाख रुपये से बढ़ाकर एक करोड़ रुपये करने और आईपीओ वित्तपोषण की सीमा को 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 25 लाख रुपये प्रति व्यक्ति करने का प्रस्ताव है।
उन्होंने 2016 में लाए गए उस ढांचे को भी वापस लेने का प्रस्ताव रखा, जो बैंकों द्वारा निर्दिष्ट उधारकर्ताओं (बैंकिंग प्रणाली से 10,000 करोड़ रुपये और उससे अधिक की ऋण सीमा के साथ) को ऋण देने को हतोत्साहित करता था।
आरबीआई गवर्नर ने कहा कि शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी) के लिए लाइसेंसिंग का काम 2004 से रुका हुआ था। उन्होंने कहा, ''पिछले दो दशकों में इस क्षेत्र में हुए सकारात्मक विकास और संबंधित पक्षों की बढ़ती मांग को देखते हुए, हम नए यूसीबी के लाइसेंसिंग पर एक चर्चा पत्र प्रकाशित करने का प्रस्ताव करते हैं।''