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Lenskart IPO valuation: रहिए तैयार?, 31 अक्टूबर को खुलेगा लेंसकार्ट का ₹7278 करोड़ का IPO, जानिए सभी डिटेल

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: October 29, 2025 18:22 IST

Lenskart IPO valuation: 2010 में एक ऑनलाइन आईवियर मंच के रूप में इसने शुरुआत की और 2013 में नयी दिल्ली में अपना पहला बिक्री केंद्र खोला।

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ठळक मुद्देप्रवर्तक एवं निवेशक 13.22 करोड़ शेयर बेचेंगे।लेंसकार्ट की स्थापना 2008 में की गई। उपभोक्ता ब्रांड में से एक के रूप में अपनी स्थिति मजबूत की है।

मुंबईः चश्मों की खुदरा कंपनी लेंसकार्ट सॉल्यूशंस 31 अक्टूबर को अपना आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) ला रही है. 7,278 करोड़ रुपये के आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) के लिए मूल्य दायरा 382-402 रुपये प्रति शेयर तय किया है. कंपनी की ओर सेजारी बयान के अनुसार, आईपीओ 31 अक्टूबर को खुलेगा और चार नवंबर को संपन्न होगा. बड़े निवेशक 30 अक्टूबर को बोली लगा पाएंगे. आईपीओ दस्तावेज के अनुसार, कंपनी नए शेयर जारी करके 2,150 करोड़ रुपये जुटाने की योजना बना रही है. इसके अलावा प्रवर्तक एवं निवेशक 13.22 करोड़ शेयर बेचेंगे.

लेंसकार्ट की स्थापना 2008 में की गई. 2010 में एक ऑनलाइन आईवियर मंच के रूप में इसने शुरुआत की और 2013 में नयी दिल्ली में अपना पहला बिक्री केंद्र खोला. पिछले कुछ वर्षों में इसने आईवियर श्रेणी में देश के सबसे प्रमुख उपभोक्ता ब्रांड में से एक के रूप में अपनी स्थिति मजबूत की है.

कंपनी लगभग 70,000 करोड़ रुपये का मूल्यांकन चाहती है. कंपनी के अनुसार, आईपीओ में बिक्री पेशकश (ओएफसी) भी शामिल है, जिसमें प्रर्वतक और निवेशक 12.75 करोड़ से अधिक इक्विटी शेयर बेचेंगे. लेंसकार्ट के आईपीओ में प्रर्वतक और निवेशक मिलकर 13.22 करोड़ शेयर बिक्री पेशकश के तहत बेचेंगे. लेंसकार्ट का शेयर 10 नवंबर को शेयर बाजारों में सूचीबद्ध होगा.

आज हम बात करने वाले हैं हमारे देश के एक शार्क के बारे में. नहीं ये वाले नहीं- (अश्नीर ग्रोवर का कोई फेमस मीम)

दूसरे वाले. जो हमेशा शो में आने वाले पिचर्स के आंकड़ों पर बारीक निगाह रखते हैं और जिनकी डील होती है खरी-खरी. जी हां, हम बात कर रहे हैं लेंसकार्ट वाले पीयूष बंसल की. कहीं इंवेस्ट करने से पहले कंपनी के वैल्यूएशन और नंबर्स पर बारिक निगाह रखने वाले पीयूष अपनी कंपनी के लिए IPO लांच करने वाले हैं.

इस Initial Public Offering के जरीये लेंसकार्ट 7,278.02 crores रुपये जुटाने की अनुमान लगा रहा है. इसी बीच एक निजी चैनल के कार्यक्रम के दौरान जब उनसे पूछा गया कि क्या उनकी कंपनी ने अपना वैल्यूएशन बढ़ाचढ़ा कर दिखा रही है तो उन्होंने यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया कि उनका काम कंपनी के वैल्यूएशन के बारे में नहीं बल्कि इस बारे में सोचना है कि कैसे उनके ग्राहकों के लिए हर सौदा वैल्यू फॉर मनी बने. यदि आप भी लेंसकार्ट के आईपीओ में इंवेस्ट करने का मन बना रहे हैं तो यह वीडियो आपके लिये है.

इस समय लेंसकार्ट की वैल्यूएशन क्या है, इसको लेकर विवाद क्यों हो रहा है? क्यों कोई कंपनी अपना वैल्यूएशन बढ़ा-चढ़ा कर दिखाती है और क्या यह गैर कानूनी है इस सब के बारे में बात करेंगे इस वीडियो में बने रहिए अंत तक....

भारत की सबसे बड़ी आईवियर रिटेल कंपनी लेंसकार्ट सॉल्यूशन्स (Lenskart Solutions) अपने बहुचर्चित IPO (Initial Public Offering) से पहले सुर्खियों में है. वित्त वर्ष 2024-25 (FY25) में कंपनी ने दावा किया है कि उसने घाटे से मुनाफ़े की ओर बड़ी छलांग लगाई है — ₹6,652 करोड़ के राजस्व पर ₹297 करोड़ का शुद्ध लाभ, जबकि पिछले वित्त वर्ष में ₹10 करोड़ का घाटा था.

पहली नज़र में यह उपलब्धि कंपनी को एक लॉस-मेकिंग स्टार्टअप से प्रॉफिटेबल कंज़्यूमर-टेक ब्रांड में बदलती दिखती है. लेकिन जब इन आंकड़ों की गहराई में जाते हैं, तो कहानी कुछ और नज़र आती है — इकोनॉमिक टाइ्म्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस मुनाफ़े का बड़ा हिस्सा कंपनी के मुख्य ऑपरेशंस से नहीं,

बल्कि एक अकाउंटिंग रीवैल्यूएशन (लेखांकन पुनर्मूल्यांकन) से आया है, जो लेंसकार्ट की 2022 की जापानी कंपनी “Owndays Inc.” की खरीद से जुड़ा है. लेंसकार्ट के वित्तीय रिकॉर्ड के मुताबिक FY25 में कंपनी को ₹167 करोड़ का “FVTPL गेन” (Fair Value Through Profit or Loss) मिला. यह लाभ Owndays डील से जुड़े स्थगित भुगतान (Deferred Consideration) की रीवैल्यूएशन से आया.

साधारण भाषा में समझें तो — अगर कंपनी की देनदारी (Liability) का अनुमानित मूल्य घट जाता है, तो अकाउंटिंग नियमों के तहत वह “गिरावट” मुनाफ़े के रूप में दर्ज की जाती है, भले ही कंपनी के पास असल में कोई नकद रकम नहीं आई हो.

विश्लेषकों का कहना है कि Owndays डील से जुड़ा भुगतान मूल्य घटने पर कंपनी ने उसे “गैन” के रूप में दिखाया और यही आंकड़ा FY25 के शुद्ध लाभ को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करता है. इकोनॉमिक टाइम्स के पत्रकार आकाश पोदीशेट्टी ने इस बारे में  Bonanza Portfolio के रिसर्च एनालिस्ट अभिनव तिवारी से बात की.

उन्होंने कहा कि अगर एकमुश्त अकाउंटिंग गेन (one-time gain) को हटा दिया जाए, तो कंपनी का वास्तविक शुद्ध मुनाफ़ा करीब ₹130 करोड़ बैठता है — यानी लगभग 1.9% का नेट मार्जिन, जो रिपोर्टेड आंकड़े से काफ़ी कम है.” इस समायोजित लाभ के आधार पर, IPO के ऊपरी प्राइस बैंड ₹402 प्रति शेयर के हिसाब से कंपनी का P/E (Price-to-Earnings) Ratio लगभग 535 गुना निकलता है।

जो वैश्विक और घरेलू रिटेल कंपनियों की तुलना में कई गुना ज्यादा है. यही पर जल्दी-जल्दी में समझ लेते हैं कि P/E (Price-to-Earnings) Ratio क्या है. P/E (Price-to-Earnings) Ratio का अर्थ है कि कोई निवेशक एक रुपये के लाभ के लिए कितना निवेश करने को तैयार है. लेंसकार्ट के खातों को देखकर पता चलता है कि यह अनुपात 200 से 535 गुना के बीच बैठता है. अभिनव तिवारी ने इकोनॉमिक टाइम्स से कहा कि निवेशकों से एक रिटेल बिज़नेस के लिए उतनी कीमत मांगी जा रही है जितनी आम तौर पर किसी हाई-ग्रोथ टेक कंपनी के लिए दी जाती है.

प्रमोटर्स के शेयर बेचने से क्या संकेत मिलता है?

IPO डॉक्युमेंट्स के मुताबिक, लेंसकार्ट के प्रमोटर्स और शुरुआती निवेशक ₹1,100 करोड़ के शेयर “ऑफर फॉर सेल (OFS)” के ज़रिए बेच रहे हैं. बाज़ार विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम लंबी अवधि के भरोसे की बजाय ऊंचे वैल्यूएशन का फायदा उठाने की रणनीति जैसा दिखता है. यह संकेत देता है कि प्रमोटर्स मौजूदा ऊंचे प्राइस लेवल पर कैश आउट करना चाह रहे हैं.

अब सवाल उठता है लेंसकार्ट का असली बिजनेस कितना मजबूत है. सवालों के बावजूद, यह कहने से परहेज नहीं करना चाहिए कि लेंसकार्ट का बिज़नेस मॉडल और वितरण नेटवर्क मज़बूत माना जाता है.कंपनी के पास: 2,500 से अधिक स्टोर्स, 70% ग्रॉस मार्जिन, और एक हाइब्रिड ओमनीचैनल मॉडल है, जो ऑनलाइन ऑर्डरिंग और ऑफलाइन फिटिंग को एक साथ जोड़ता है.

लेकिन मुनाफ़े की दर अब भी सीमित है

जून 2025 तिमाही में कंपनी ने ₹1,940 करोड़ के राजस्व पर ₹61 करोड़ का लाभ दर्ज किया, जिसमें से ₹5.5 करोड़ एक और अकाउंटिंग गेन से आया. इस गेन को घटाकर देखें तो वास्तविक नेट मार्जिन 3% से भी कम रहता है.

IPO से पहले की रणनीति और निवेशक दृष्टिकोण

लेंसकार्ट की वैल्यूएशन फिलहाल करीब ₹70,000 करोड़ (यूएस डॉलर में 8 बिलियन) आंकी गई है — जो न सिर्फ भारतीय बल्कि वैश्विक रिटेल कंपनियों से भी काफी ऊंची है.  इसके बावजूद, कंपनी का दावा है कि भारत का आईवियर मार्केट आने वाले वर्षों में तीन गुना बढ़ेगा, और युवा उपभोक्ताओं के बीच फैशन और स्क्रीन यूज़ इसे गति देंगे.

इकोनॉमिक टाइम्स से बात करते हुए Arihant Capital के अभिषेक जैन ने कहा कि लेंसकार्ट ने भारत में एक मजबूत ब्रांड मोअट (Brand Moat) बना लिया है. लंबी अवधि में यह ग्रोथ बरकरार रह सकती है, लेकिन मौजूदा वैल्यूएशन में यह भविष्य पहले से ही ‘प्राइस्ड इन’ है.” वैश्विक तुलना देखें तो तस्वीर और साफ़ हो जाती है.

लेंसकार्ट की वैल्यूएशन करीब ₹70,000 करोड़ यानी 8 अरब डॉलर आंकी गई है, जो उसकी आमदनी के मुकाबले 10 गुना से भी ज्यादा है. उसका प्राइस-टू-अर्निंग रेश्यो (P/E) लगभग 200 से 535 गुना के बीच बैठता है, जो किसी भी मानक पर बेहद ऊँचा है.

इसके मुकाबले, भारत की ही कंपनी टाइटन आई+ का राजस्व गुणक सिर्फ 3 से 4 गुना है और उसका P/E रेश्यो भी करीब 70 गुना तक सीमित है. वहीं वैश्विक दिग्गज EssilorLuxottica, एसिलोरलक्सोटिका जो दुनिया की सबसे बड़ी आईवियर कंपनी है, उसका रेश्यो सिर्फ 30 से 35 गुना के आसपास है.

यानी साफ़ है

लेंसकार्ट का वैल्यूएशन न सिर्फ भारत, बल्कि पूरी दुनिया के रिटेल सेक्टर के औसत से कई गुना ज़्यादा है. यही वजह है कि निवेशकों के बीच अब यह सवाल उठ रहा है कि कहीं कंपनी का यह वैल्यूएशन हकीकत से ज़्यादा उम्मीदों पर तो नहीं टिका है?

IPO से ठीक पहले लेंसकार्ट के वित्तीय परिणाम निवेशकों को आकर्षित करने के लिहाज़ से बेहद चमकदार हैं — लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि इसमें एक हिस्सा “ऑप्टिक्स” (दिखावट) भी शामिल है. कंपनी का मॉडल और ब्रांड ताकतवर हैं, मगर उसके वास्तविक लाभ, लागत नियंत्रण और वैल्यूएशन के बीच का फासला यह संकेत देता है कि निवेशकों को IPO में सतर्क होकर कदम रखना चाहिए.

इस पूरे विवाद पर लेंसकार्ट की ओर से क्या कुछ कहा गया है.  Lenskart Solutions Ltd. के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी पियूष बंसल ने कंपनी के ऊँचे वैल्यूएशन पर उठ रहे सवालों का जवाब देते हुए एक निजी टीवी चैनल के कार्यक्रम में कहा कि उनकी प्राथमिकता हमेशा से ग्राहकों को अधिकतम मूल्य देना रही है — न कि बाज़ार में अपने वैल्यूएशन को सही ठहराना.

बंसल के अनुसार, एक उद्यमी का असली काम यह सुनिश्चित करना है कि ग्राहक को सबसे अच्छी क्वालिटी के चश्मे सबसे कम कीमत पर मिलें. उन्होंने कहा, “मैं सिर्फ़ ग्राहक के लिए वैल्यू को जस्टिफाई कर रहा हूँ. हर दिन यह सोचते हैं कि कैसे बेहतरीन गुणवत्ता को और किफ़ायती बनाया जाए — यही हमारा असली काम है.”

बंसल ने यह भी कहा कि वैल्यूएशन तय करना उनका नहीं, बल्कि सलाहकारों (Advisers) और संस्थागत निवेशकों (Institutional Investors) का क्षेत्र है. उन्होंने कहा कि वैल्यूएशन ऐसी चीज़ है जिसे मैं कम समझता हूँ. यह विशेषज्ञों और सलाहकारों द्वारा तय किया जाता है. एक उद्यमी के तौर पर हमारा काम वैल्यूएशन तय करना नहीं, बल्कि ग्राहकों के लिए सच्ची वैल्यू बनाना है.

उन्होंने जोड़ा कि लेंसकार्ट लगातार किफ़ायत (Affordability) और पहुंच (Accessibility) बढ़ाने के लिए काम कर रहा है. बंसल ने कहा कि हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि हर ग्राहक को उसके पैसे का पूरा मूल्य मिले. कोटक महिंद्रा कैपिटल के मैनेजिंग डायरेक्टर जयशंकर वेंकटारमण, जो लेंसकार्ट के IPO के सलाहकार हैं, ने भी बंसल की बात का समर्थन किया और कहा कि कंपनी का वैल्यूएशन किसी एकतरफ़ा दावे पर नहीं, बल्कि विस्तृत वित्तीय मूल्यांकन और निवेशकों के भरोसे पर आधारित है.

वेंकटारमण ने कहा —“बाज़ार को इस हफ्ते के अंत तक एंकर निवेशकों की सूची का इंतज़ार करना चाहिए. इसमें देश-विदेश के प्रमुख DII और FII निवेशक भाग ले रहे हैं, जो यह दर्शाता है कि संस्थागत निवेशकों को कंपनी के ग्रोथ मॉडल पर भरोसा है.” उन्होंने आगे कहा — “कंज़्यूमर टेक कंपनियों के मामले में निवेशक उनकी ग्रोथ हिस्ट्री और ऑपरेटिंग लेवरेज देखते हैं.

लेंसकार्ट ने भारत के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में भी तेज़ी से विस्तार किया है और अपने बिज़नेस मॉडल में मज़बूत ऑपरेटिंग एफिशिएंसी दिखाई है.” वेंकटारमण ने स्पष्ट किया कि भारत में कंज़्यूमर टेक्नोलॉजी और रिटेल सेक्टर की कंपनियों के वैल्यूएशन अब उनके लिस्टेड पीयर्स (Listed Peers) से तुलना करके तय किए जा रहे हैं.

उन्होंने कहा कि संस्थागत निवेशक इस तरह के बिज़नेस को समझने और उसका आकलन करने में अधिक सक्षम हैं. उन्होंने पहले से ही उन तेज़ी से बढ़ती कंज़्यूमर कंपनियों को ध्यान में रखा है जो पहले से ही मज़बूत वैल्यूएशन पर ट्रेड कर रही हैं. अंत में वेंकटारमण ने कहा कि लेंसकार्ट का वैल्यूएशन किसी एक व्यक्ति या कंपनी के दावे पर आधारित नहीं है,

बल्कि यह संस्थागत निवेशकों और विशेषज्ञ सलाहकारों के साथ हुई व्यापक चर्चा और गहन विचार-विमर्श का परिणाम है.” यह तो हो गई बात लेंसकार्ट की. लेकिन सवाल उठता है कि कंपनियां ऊंचा वैल्यूएशन क्यों दिखाती हैं. कई बार कंपनियाँ जानबूझकर या रणनीतिक रूप से अपना वैल्यूएशन बढ़ा-चढ़ाकर दिखाती हैं, ताकि बाज़ार में उनकी स्थिति मज़बूत दिखे.

इसका सीधा सा उद्देश्य होता है नए निवेशकों को आकर्षित करने के लिए: जब वैल्यूएशन बड़ा दिखता है, तो निवेशकों को लगता है कि यह “ग्रोथ स्टोरी” मजबूत है. इससे IPO या फंडिंग राउंड में ज्यादा पैसा जुटाना आसान हो जाता है. यह ब्रांड की प्रतिष्ठा को भी बढ़ता है.  ऊँची वैल्यूएशन कंपनी को मीडिया, बाजार और उपभोक्ताओं के बीच “सफल ब्रांड” की छवि देती है.

शेयरहोल्डर्स और प्रमोटर्स को भी मिलता है लाभ: यदि प्रमोटर्स के पास कंपनी के शेयर हैं, तो ऊंची वैल्यूएशन का मतलब है कि उनकी हिस्सेदारी का मूल्य भी तेजी से बढ़ता है. भविष्य के अधिग्रहण और विस्तार में फायदा: बड़ी वैल्यूएशन वाली कंपनियों को नए अधिग्रहण या अंतरराष्ट्रीय साझेदारी में बेहतर सौदेबाज़ी की ताकत मिलती है.

क्या यह गैर-कानूनी है? कानूनी रूप से “ऊँचा वैल्यूएशन दिखाना” अपने आप में अपराध नहीं है, लेकिन अगर कोई कंपनी अपने प्रॉस्पेक्टस या वित्तीय दस्तावेजों में भ्रामक जानकारी देती है,  तो यह भारतीय कंपनी कानून (Companies Act, 2013) के तहत गंभीर अपराध है.

धारा 34 के अनुसार: अगर किसी कंपनी ने अपने प्रॉस्पेक्टस में गलत या अधूरी जानकारी दी, जिससे निवेशक गुमराह हुआ, तो कंपनी और उसके निदेशक आपराधिक मुकदमे (Criminal Liability) के दायरे में आते हैं. धारा 35 कहती है: यदि किसी निवेशक को भ्रामक जानकारी की वजह से नुकसान हुआ, तो वह कंपनी से सिविल कम्पनसेशन (Civil Liability) की मांग कर सकता है.

यानि वैल्यूएशन में पारदर्शिता और सही खुलासे का दायित्व कानूनी तौर पर तय है. अगर किसी कंपनी ने जानबूझकर मुनाफ़े या संपत्ति के आंकड़ों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया, तो उसे भारी जुर्माने और आपराधिक कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है.

इतिहास में हाई वैल्यूएशन के कुछ विवादित मामले भी रहे हैं

ShopClues (भारत) — 2015 में इसका वैल्यूएशन यूएस डॉलर में 1.1 बिलियन तक पहुंचा, लेकिन असल कारोबार कमजोर रहा और 2019 में इसे सिर्फ यूएस डॉलर में 70 मिलियन में बेच दिया गया. यानी वैल्यूएशन में 90% से ज्यादा की गिरावट. WeWork (अमेरिका) - कभी इसका वैल्यूएशन यूएस डॉलर में 47 बिलियन बताया गया था,

लेकिन IPO से पहले वित्तीय गड़बड़ियों और गलत आकलनों के कारण. कंपनी की कीमत घटकर यूएस डॉलर में 8 बिलियन से भी कम रह गई. Theranos (अमेरिका) — हेल्थ-टेक कंपनी जिसने खून की जांच में क्रांति लाने का दावा किया था, उसका वैल्यूएशन यूएस डॉलर में 9 बिलियन तक पहुंचा, लेकिन बाद में साबित हुआ कि उसके उत्पाद काम ही नहीं करते थे.

कंपनी की संस्थापक एलिज़ाबेथ होम्स पर धोखाधड़ी के मामले चले. Paytm (भारत) — इसका IPO ₹18,300 करोड़ का था, लेकिन लिस्टिंग के तुरंत बाद शेयर की कीमत लगभग 40% तक गिर गई. विश्लेषकों ने तब भी कहा था कि इसके वैल्यूएशन को अधिक आंका गया.

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