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मोदी-2.0 की 5 आर्थिक चुनौतियां जो सरकार के लिए चिंता का सबब बनेगी!

By विकास कुमार | Updated: May 28, 2019 14:50 IST

अरुण जेटली ने राजकोषीय घाटा को इस वित्त वर्ष में 3.4 प्रतिशत रखने का लक्ष्य रखा था जो इस साल 3.5 रह सकता है. सरकार को अपनी आमदनी बढ़नी होगी.अमीरों पर लगने वाले वेल्थ टैक्स को और बढ़ाना होगा. बड़े किसानों के ऊपर टैक्स लगाना होगा.

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ठळक मुद्देअरुण जेटली ने राजकोषीय घाटा को इस वित्त वर्ष में 3.4 प्रतिशत रखने का लक्ष्य रखा था जो इस साल 3.5 रह सकता है.निर्यात, सरकार का खर्च, निजी निवेश और खपत की क्षमता इन्हीं चार पहियों पर भारतीय अर्थव्यवस्था की गाड़ी दौड़ती है.

लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत हासिल करने के बाद 30 मई को नरेन्द्र मोदी पीएम पद की शपथ लेने वाले हैं और इसके साथ ही दूसरे शासनकाल का आरम्भ हो जायेगा. अपने पहले कार्यकाल में कई आर्थिक सुधार लागू करने के बावजूद मोदी सरकार को आर्थिक मोर्चों पर कोई ख़ास सफलता नहीं मिली. 

नोटबंदी और उसके तुरंत बाद जीएसटी के लागू करने से एमएसएमई सेक्टर पर बहुत बुरा असर पड़ा. वैसे जीएसटी को आजादी के बाद सबसे बड़ा आर्थिक सुधार भी बताया गया और आर्थिक विश्लेषकों के मुताबिक लॉन्ग रन में इसका अप्रत्याशित फायदा भारतीय अर्थव्यवस्था को होगा.

मोदी सरकार की जनहित की योजनाओं को धरातल पर उतारने के लिए सरकार को बड़े पैमाने पर नकद की जरूरत पड़ेगी और इसके लिए सरकार आरबीआई से उसके कैश रिज़र्व का एक बड़ा हिस्सा मांग सकती है. एक अनुमान के मुताबिक आरबीआई के पास 9 लाख करोड़ का कैश रिज़र्व है. 

मोदी सरकार ने रेलवे, हाईवे, पोर्ट और बड़े पैमाने पर इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण पर 1.3 ट्रिलियन डॉलर खर्च करने का लक्ष्य तय किया है. इतने बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य के लिए सरकार निजीकरण का रास्ता अख्तियार करेगी और ऐसा माना जा रहा है कि इन 5 वर्षों में मोदी सरकार सभी क्षेत्रों में निजी निवेश को बढ़ावा देगी. 

निजी निवेश को बढ़ावा 

निर्यात, सरकार का खर्च, निजी निवेश और खपत की क्षमता इन्हीं चार पहियों पर भारतीय अर्थव्यवस्था की गाड़ी दौड़ती है. ढाई दशक में ऐसा पहली बार हुआ है कि भारत में लोगों की खपत गिरी है. निर्यात पहले ही हांफ रहा है. निजी निवेश मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में बढ़ी है लेकिन जीडीपी के अनुपात में बढ़ोतरी ज्यादा नहीं हुई है. सरकार के सामने सबसे बड़ा संकट रोज़गार का है क्योंकि देश में हर महीने 12 मिलियन यूथ हर साल जॉब मार्केट में आ रहे हैं. 

क्वालिटी एम्प्लॉयमेंट पर जोर 

इन युवाओं के लिए क्वालिटी एम्प्लॉयमेंट पैदा करना मोदी सरकार की सबसे बड़ी चुनौती होगी. अकेले रोज़गार के संकट को दूर कर सरकार अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला सकती हैं क्योंकि निजी खपत को बढ़ाने के लिए लोगों के हांथ में पैसे आने चाहिए. 5 लाख तक के आय को टैक्स मुक्त कर सरकार ने मिडिल क्लास को पहले ही बड़ा राहत दे दिया है और उम्मीद है कि आने वाले वित्त वर्ष में मध्यम वर्ग एक बार फिर अर्थव्यवस्था के संकटमोचक के रूप में उभर कर सामने आएगा. 

NPA का निपटारा 

बैंकों में कुल एनपीए 10 लाख करोड़ को पार कर चुका है. अपने पहले कार्यकाल में एनपीए की समस्या को दूर करने के लिए मोदी सरकार ने insolvency & bankruptcy लॉ के जरिये समस्या का स्थायी समाधान निकालने की दिशा में पहल की थी. बैंकिंग समस्या का निदान जरूरी है. अंतिम मौद्रिक समीक्षा नीति में आरबीआई ने रेपो रेट में 0.25 प्रतिशत की कटौती की थी लेकिन बैंक उस अनुपात में अपने कस्टमर्स को फायदा नहीं दे रहे हैं. इसका सबसे बड़ा कारण एनपीए की समस्या है. 

किसान को नकद प्रोत्साहन बढ़ाना होगा 

मोदी सरकार को किसानों की आय दोगुनी करने के लिए डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर की योजना का दायरा बढ़ाना होगा. 'प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना' के तहत सरकार ने उन किसानों के लिए जिनके पास खेतिहर जमीन 2 हेक्टेयर से कम है, सालाना 6 हजार रुपये देने का प्रावधान अंतरिम बजट में किया था. मोदी सरकार की सबसे बड़ी चुनौती इन जनहित योजनाओं के दायरे को बढ़ाने के साथ-साथ फिस्कल डेफिसिट को भी कंट्रोल रखना है. 

फिस्कल डेफिसिट को काबू रखना चुनौती 

अरुण जेटली ने राजकोषीय घाटा को इस वित्त वर्ष में 3.4 प्रतिशत रखने का लक्ष्य रखा था जो इस साल 3.5 रह सकता है. सरकार को अपनी आमदनी बढ़नी होगी. इसके लिए टैक्स के नए तरीके निकालने होंगे. अमीरों पर लगने वाले वेल्थ टैक्स को और बढ़ाना होगा. बड़े किसानों के ऊपर टैक्स लगाना होगा. 

टॅग्स :मोदी सरकारनरेंद्र मोदीअरुण जेटलीइकॉनोमीगैर निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए)
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