नयी दिल्ली, 15 दिसंबर कमोडिटी पार्टिसिपेंट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीपीएआई) ने कहा है कि सरकार को व्यापार के आकार को बढ़ावा देने के लिए जिंस लेनदेन कर (सीटीटी) को समाप्त करने पर विचार करना चाहिए।
वित्त मंत्रालय को अपने बजट प्रस्ताव में सीपीएआई ने सरकार से सीटीटी पर फिर से विचार करने का आग्रह किया है क्योंकि इससे बहुत कम राजस्व प्राप्त हुआ है, लेकिन इसने राष्ट्रीय बाजार के व्यापार की मात्रा को 60 प्रतिशत घटा दिया है।
इसके अलावा सीटीटी ने नकदी, मात्रा और नौकरियों को देश से बाहर जाने के लिए ‘प्रोत्साहित’ किया है।
एसोसिएशन ने कहा, ‘‘कम संग्रह को देखते हुए, सीटीटी को हटाना ही सबसे सुगम तरीका है।’’
वर्ष 2013 में सीटीटी की शुरुआत के बाद से जिंस बाजारों में कारोबार की मात्रा में 60 प्रतिशत की कमी आई है, जबकि सरकार ने राजस्व के रूप में केवल 667 करोड़ रुपये एकत्र किए हैं।
एसोसिएशन ने कहा है कि यदि सरकार सीटीटी को बनाए रखना चाहती है, तो सीटीटी को भुगतान किए गए कर के रूप में माना जाए, न कि एक व्यय (आयकर अधिनियम के तहत कर छूट की अनुमति)। यह एक अनुचित दोहरे कराधान की विसंगति का सुधार होगा।
Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।