फिल्म- पीएम नरेन्द्र मोदीकास्ट- विवेक ओबेरॉयडायरेक्टर- उमंग कुमार
तमाम कंट्रोवर्सी से निकलकर विवेक ओबेरॉय की फिल्म पीएम मोदी फाइनली आज बड़े पर्दे पर रिलीज हो गई है। चुनाव के बीच इस फिल्म की भी लगातार चर्चा बनी हुई थीं। वहीं फिल्म ने लोगों को निराश तो बिल्कुल भी नहीं किया है। विवेक ओबेरॉय की इस फिल्म को लोगों का अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है। पीएम मोदी की राजनीतिक जर्नी पर आधारित इस फिल्म को किसने कितने स्टार दिए हैं आइए हम बताते हैं आपको।
डीएनए की बात करें तो डायरेक्टर उमंग कुमार की पहली दोनों बायोपिक मैरी कौम और सरबजीत के बीद पीएम नरेन्द्र मोदी फिल्म को देखकर ये कह सकते हैं कि अब वो बायोपिक बनाने के एक्सपर्ट हो गए हैं। फिल्म की राइटिंग भी काफी अच्छी है जो पर्दे पर मोदी का जादू चलाने के लिए काफी है। बेहतरीन डायरेक्शन और एक्टिंग के लिए डीएनएन ने फिल्म को पांच में से तीन स्टार दिए हैं।
वहीं इंडियन एक्सप्रेस को फिल्म कुछ खास पसंद नहीं आई है। एक्सप्रेस की खबर के अनुसार पीएम मोदी के साथ दिखाई गई कोई भी घटना बेहद ड्रमेटिकल अंदाज में पर्दे पर उतारी गई हैं। एक्सप्रेस ने फिल्म के टाइटल को लेकर टिप्पणी की है कि द एक्सिडेंटल प्राइमिनिस्टर में कुछ भी एक्सिडेंटल नहीं है। एक्सप्रेस ने फिल्म को पांच में से दो स्टार दिए हैं।
फ्री प्रेस जनरल की बात करें तो विवेक ओबेरॉय की एक्टिंग के साथ डायरेक्शन और राइटिंग को भी कमजोर बनाया है। प्रेस जनरल की रिपोर्ट है फिल्म एक अच्छी पैकेज शो नहीं है। फिल्म को फ्री प्रेस जनरल ने विवेक ओबेरॉय की फिल्म पीएम नरेन्द्र मोदी को पांच में से दो स्टार दिए हैं।
इंडिया टुडे की रिपोर्ट ने पीएम नरेन्द्र मोदी फिल्म को अनइंप्रेसिव बताया है। रिपोर्ट के मुताबिक पीएम मोदी के रोल में विवेक ओबेरॉय बिल्कुल इंम्प्रेसिव नहीं हैं। दो घंटे 15 मिनट की इस फिल्म में लगातार आप विवेक ओबेरॉय और नरेन्द्र मोदी को कम्पेयर करते रहेंगे। शायद इसीलिए ये फिल्म और पसंद नहीं आती। इंडिया टुडे ने फिल्म को पांच में से एक स्टार दिया है।
फिल्म की कहानी
नरेंद्र मोदी के बचपन से लेकर प्रधानमंत्री बनने तक की कहानी कहती इस फिल्म की कहानी की शुरुआत 2013 की बीजेपी की उस बैठक से होती है, जिसमें नरेंद्र मोदी (विवेक ओबेरॉय) को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया जाता है। फिल्म का पहला सीन ही आपको बांधने में कामयाब हो जाएगा। उसके बाद फिल्म की कहानी फ्लैशबैक में चली जाती है, जब मोदी बचपन में रेलवे स्टेशन पर चाय बेचते थे।
मोदी के पिता चाय की दुकान करते थे, तो मां घरों में बर्तन धोती थीं। थोड़ा बड़ा होने पर नरेंद्र ने अपने घरवालों से संन्यासी बनने की इजाजत मांगते हैं। हिमालय की चोटियों में अपने जीवन का उद्देश्य तलाशने के बाद नरेंद्र ने बतौर आरएसएस वर्कर गुजरात वापसी की और उसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। फिल्म में बचपन से लेकर पीएम बनने तक के पूरे सफर को बहुत की बखूबी पेश किया गया है।