Nikita Roy Review: ‘निकिता रॉय’ सिर्फ एक हॉरर फिल्म नहीं है। यह उस संघर्ष की कहानी है जो एक पत्रकार के भीतर और बाहर चलती है—जब सच्चाई उजागर करते-करते वो खुद रहस्य की गहराई में समा जाती है। निकिता (सोनाक्षी सिन्हा) एक साहसी पत्रकार हैं, जो नकली बाबाओं को बेनकाब करने का मिशन चला रही होती हैं। लेकिन जब उसकी खुद की निजी ज़िंदगी में दर्द और अधूरापन आता है, तो वो उसी दुनिया का हिस्सा बन जाती है जिसे वो एक्सपोज करती थी। यही विरोधाभास इस फिल्म को खास बनाता है।
एक्टिंग की बात करें तो
सोनाक्षी सिन्हा ने पूरी ईमानदारी से किरदार निभाया है। यह रोल उनकी एक्टिंग ग्रोथ को दर्शाता है। उन्होंने निकिता के डर, गुस्से और बेबसी को बखूबी दिखाया है। परेश रावल ने अमरदेव नाम के बाबाजी का रोल कुछ इस तरह निभाया है कि दर्शक हर फ्रेम में उनकी मौजूदगी से डरते हैं। उनके डायलॉग कम हैं, लेकिन उनकी आंखों की भाषा बहुत कुछ कहती है। सुहैल नैयर के किरदार की शुरुआत कमजोर लगती है, लेकिन आगे चलकर उनका इमोशनल एंगल फिल्म को और वजन देता है।
डायरेक्शन और ट्रीटमेंट
कुश सिन्हा की यह पहली फिल्म है लेकिन उन्होंने बखूबी दिखा दिया कि उन्हें स्टोरीटेलिंग की गहरी समझ है। सस्पेंस, धार्मिक प्रतीकात्मकता और डर को उन्होंने इस तरह मिलाया है कि फिल्म एक थ्रिलर से कहीं ज़्यादा बन जाती है।
तकनीकी पक्ष
फिल्म की सिनेमैटोग्राफी, खासकर लाइटिंग और कैमरा मूवमेंट, मूड बनाने में बेहद असरदार है। बैकग्राउंड स्कोर भी सस्पेंस को बनाए रखता है।
फिल्म के Highlights
- डायलॉग्स में धार- निर्देशन में नया लेकिन ठोस विज़न- परफॉर्मेंस-ओरिएंटेड फिल्म- सामाजिक और मानसिक स्तर पर सोचने वाली स्क्रिप्ट
कुल मिलाकर
कहानी के कुछ मोड़ प्रेडिक्टेबल लग सकते हैं और सेकेंड हाफ में गति थोड़ी धीमी हो जाती है। लेकिन क्लाइमैक्स में ट्विस्ट इसे बैलेंस कर देता है। निकिता रॉय एक सोचने वाली, डराने वाली और एहसास जगाने वाली फिल्म है। ये सिर्फ एंटरटेनमेंट नहीं, बल्कि एक स्टेटमेंट है—आस्था और अंधविश्वास के बीच लकीर खींचने की।
Nikita Roy Review:
फिल्म: निकिता रॉयडायरेक्टर: कुश सिन्हाकास्ट: सोनाक्षी सिन्हा, परेश रावल, अर्जुन रामपाल, सुहैल नैयरसमय: 116 मिनटरेटिंग: 4/5कास्ट: सोनाक्षी सिन्हा, परेशा रावल, अर्जुन रामपाल, सुहेल नय्यर