आयुष्मान खुराना स्टारर फिल्म 'आर्टिकल 15' इन दिनों चर्चा में है. डायरेक्टर और राइटर अनुभव सिन्हा की फिल्म को क्रिटिक्स से लेकर ऑडियंस का अच्छा रिस्पॉन्स मिला हैं. बदायूं गैंगरेप और उना दलित पिटाई कांड जैसी वीभत्स घटनाओं और संविधान के आर्टिकल 15 से प्रेरित फ़िल्म लिखकर निर्देशक अनुभव सिन्हा ने वास्तव में इतिहास लिखा है. जाति व्यवस्था पर ज़ोरदार मुक्का है 'आर्टिकल 15'. लेकिन कुछ संगठनों ने फिल्म को लेकर काफी विरोध भी जताया. हाल ही में हमने फिल्म के को- राइटर गौरव सोलंकी से बातचीत की. पढ़िए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू.
जहां एक तरफ कमर्शियल फिल्में बनाई जा रही हैं, वहीं आप सच्ची घटनाओं से इंस्पायर्ड रियलिस्टिक फ़िल्म बनाते हैं। इसके पीछे उद्देश्य क्या है?
पिछले कुछ सालों से अलग तरह की फिल्में पसंद की जा रही है, जो समाज की रियल कहानी है और लोग उसे पसंद कर रहे है और हमारा मकसद था की, जो चीज़ हमें परेशान करती हैं, हमें विचलित करती है, जो खबरें अखबार के बीचे के पन्नों में चली जाती हैं। जिन पर हमने रियेक्ट करना छोड़ दिया है, उन कहानियों को दिलचस्प अंदाज़ से दिखाया जाए और फिर शायद इसी वजह से हम अपने घर में, ऑफिस में या सोसाइटी में बदलाव ला सके. जब भी कोई अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाए तो हम भी उसके साथ हो. कोई बोरिंग फिल्म नहीं बनाना चाहते थे बल्कि इंटरेस्टिंग, एन्गागिंग, थ्रिलर फिल्म चाहते थे और वही हमने बनाई है. इसलिए शायद लोगों को वह अच्छा लग रहा है और ज्यादा लोग जूझ रहे है. फिल्म सक्सेस हो रही है और ये बॉलीवुड इंडस्ट्री के लिए अच्छा है ताकि इस तरह की और फिल्में हम बना सकेंगे.
फिल्म में सबकुछ है नाबालिग बलात्कार पीड़िताओं की पेड़ से लटकती लाशें, भ्रष्ट पुलिस वालों के बीच एक ईमानदार आईपीएस ऑफिसर, वह भी ब्राह्मण जो नीच जाति वालों को न्याय दिलाने के लिए जूझता है. फ़िल्म के आइडिया से लेकर स्क्रिप्ट लिखने, कास्ट सिलेक्शन और फिर उसे पर्दे पर लाने तक आख़िर क्या चुनौतियां और मज़ेदार बातें रहीं? फिल्म लिखते वक़्त ज़ेहन में क्या था ?
हमारे पास एक मौका था कि इस कहानी के ज़रिये दलितों के साथ हो रहे असमानता के व्यवहार को हम दिखा सके. संविधान का आर्टिकल 15 का सही तरीके से execution नहीं होता है क्योंकि बदलाव लोगों को ही लेकर आना है सिर्फ क़ानून बनाने से कुछ नहीं होगा. पुलिस कई बार दलित ही नहीं गरीबों के भी केस दर्ज करने से मना कर देती है. FIR का भी कुछ हो नहीं पाता. जातिवाद हर एक जाती में है चाहे वह ब्राह्मण हो या दलित. हमने इस चीज़ को कैप्चर करने की कोशिश की है. पुलिस व्यवस्था में जो खामियां हैं उनकी तरफ इशारा करना चाह रहे थे. फिल्म के ज़रिए हमें कई चीजों को एक्स्प्लोर करने का मौका मिला. जैसे चाहा वैसे ही कहानी सबके सामने प्रेजेंट की.
इसके लीड रोल के लिए आयुष्मान खुराना ही थे ज़ेहन में ?
ईमानदारी से कहूं तो आयुष्मान खुराना हमारी चॉइस नहीं थे. अनुभव सिन्हा किसी और सिलसिले में आयुष्मान से मिले थे. तो आयुष्मान चाहते थे कि वह ऐसे किसी सब्जेक्ट की फिल्म में अनुभव के साथ काम करे. हमने स्क्रिप्ट लिखनी शुरू की तो आयुष्मान को ज़ेहन में रखा और उनके बारे में सोचना शुरू किया. आयुष्मान को स्क्रिप्ट बहुत पसंद आई और वह बहुत excited थे. उन्होंने बहुत दिल से और निष्ठा से फिल्म में काम किया. उनके आने का ये फायदा हुआ कि बहुत सारे लोगों तक ये फिल्म पहुचीं.
क्या आपको लगता है कि इस फ़िल्म से समाज में कुछ बदलाव आएगा?
सिर्फ फिल्मों से बदलाव नहीं आता. लोगों को भी बदलाव लाना पड़ेगा. फिल्म आपको सोचने पर प्रेरित कर सकती है, लेकिन बदलाव आपको खुद लाना होगा. जाति, रंग, रूप के आधार पर असमानता करना लोग बंद करे तो शायद हम एक बेहतर समाज का निर्माण कर सके.
क्या सिनेमा समाज का आइना है वाली कहावत को आप लोग ज़िंदा करने की कोशिश कर रहे हैं?
देखिए हमने अपनी फिल्म में रियलिटी दिखाने की कोशिश की है. चाहे वह सोशल पोलिटिकल रियलिटी हो या पर्सनल रिलेशनशिप की रियलिटी हो. काफी हद तक जो आज का भारत है हमने उसे पकड़ने की कोशिश की है और उसके लिए हमें बहुत प्यार भी मिल रहा है. समाज और सिनेमा दोनों के दूसरे के आइने हैं, ये आप पर निर्भर करता है की आप अपने आइने को कितना धुंधला करते है या कितना साफ़ करते है. मुझे लगता है समाज को सिनेमा inspire करता है और सिनेमा को समाज.
फिल्म को लेकर कंट्रोवर्सी पर आपकी राय क्या है?
मुझे लगता है कुछ संगठन ऐसे होते है, जो फिल्मों के समय लाइमलाइट में आने के लिए आगे आ जाते हैं. क्योंकि ऐसे समय में वह किसी जाति के प्रतिनिधि होने का दावा करते है लेकिन वैसे वो निष्क्रिय क्यों रहते है. ऐसे लोग अपनी ही जाति के गरीब लोगों के उत्थान के लिए कुछ कर दें. पर ऐसा वह नहीं करते बस फिल्मों के समय विरोध-प्रदर्शन करते है और कंट्रोवर्सी पैदा करते है. जो भी कंट्रोवर्सी थी वो बेकार की थीं फिल्म में ऐसा कुछ नहीं था. भविष्य में भी हम ऐसी फिल्में बनाते रहेंगे.