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वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: रूस और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों की चतुराई

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: April 9, 2021 11:49 IST

रूस ने पाकिस्तान को और हथियार देने का वादा किया है. यही नहीं रूस ने चालाकी करते हुए ये कहा कि वो आतंक के खात्मे में मदद के लिए पाकिस्तान को हथियार देने वाला है.

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रूसी विदेश मंत्री सर्गेइ लावरोव और पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने इस्लामाबाद में बड़ी चतुराई दिखाने की कोशिश की. दोनों ने दुनिया को यह बताने का प्रयास किया कि रूस और पाकिस्तान आतंकवाद से लड़ने के लिए कटिबद्ध हैं. 

रूस ने वादा किया कि वह पाकिस्तान को ऐसे विशेष हथियार देगा, जो आतंकवादियों के सफाए में उसके बहुत काम आएंगे.

यहां पहली बात यह कि वह कौन-सा आतंकवाद है, जिसे रूस खत्म करना चाहता है? क्या तालिबान का? क्या कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों का? बलूचों का? पठानों का? इनमें से किसी का भी नहीं. 

उसकी चिंता उसके चेचन्या-क्षेत्र में चल रहे आतंकवाद की हो सकती है लेकिन उसका कोई प्रभाव पाकिस्तान में नहीं है. उसकी जड़ों में तो व्लादीमीर पुतिन ने पहले ही से मट्ठा डाल रखा है. 

सच्चाई तो यह कि इधर रूस का फौजी उद्योग जरा ढीला पड़ गया है. उसके सबसे बड़े शस्त्र-खरीददार भारत ने अपनी खरीद एक-तिहाई घटा दी है. पूर्वी यूरोप के देश भी उसके हथियार कम खरीद रहे हैं. ये हथियार पाकिस्तान को रूस अगर मुक्त रूप से बेचेगा तो भारत को नाराजगी हो सकती है. 

इसीलिए लावरोव ने आतंकवाद की ओट ले ली है. आतंकियों को मारने के लिए क्या मिसाइलों की जरूरत होती है? पाकिस्तान की फौज उन्हें चाहे तो बाएं हाथ से ढेर कर सकती है. 

जहां तक तालिबान का सवाल है, वे अभी भी अफगानिस्तान में लगभग रोज ही खून बहा रहे हैं. लेकिन रूस तो उन्हें मनाने में लगा हुआ है. लावरोव को पता है कि रूस के हथियार सिर्फ भारत के खिलाफ ही इस्तेमाल होंगे. फिर भी वह उन्हें पाकिस्तान को बेचने पर डटे हुए हैं. 

लावरोव के कथन पर पाक सेनापति कमर जावेद बाजवा ने भी डींग मार दी. उन्होंने कह दिया कि पाकिस्तान की किसी भी देश के साथ कोई दुश्मनी नहीं है. दक्षिण एशिया क्षेत्र में वह शांति और सहयोग का वातावरण बनाना चाहता है. उनसे कोई पूछे कि फिर कश्मीर को हथियाने की माला आप क्यों जपते रहते हैं? लावरोव ने आर्थिक, राजनीतिक और सामरिक मामलों में पाकिस्तान को पूर्ण सहयोग का वादा किया है. 

शंघाई सहयोग संगठन का सदस्य होने के नाते अब रूस चाहेगा कि पाकिस्तान को रूस और चीन की गलबहियों में लपेट लिया जाए और अफगानिस्तान और ईरान को भी. ईरान के साथ चीन का 25 वर्षीय समझौता हो ही चुका है. 

यह अघोषित गठबंधन दक्षिण एशिया में अमेरिकी रणनीति की काट करेगा. ‘एशियाई नाटो’ की टक्कर में अब ‘एशियाई वारसा-पैक्ट’ की नींव पड़ रही है. भारत से उम्मीद है कि वह इन दोनों अघोषित गठबंधनों से खुद को मुक्त रखेगा.

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