देवेंद्रराज सुथार
हर साल 16 अक्तूबर को विश्व खाद्य दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य दुनिया से भुखमरी को समाप्त करना है. 1980 में शुरुआत के बाद से अब तक भूखे पेट सोने वालों की संख्या में कमी नहीं आई है. विकसित और विकासशील दोनों ही देशों में भूख एक बड़ी समस्या बनी हुई है. संयुक्त राष्ट्र ने 16 अक्तूबर 1945 को खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की स्थापना की थी, ताकि विश्व में व्याप्त भुखमरी को खत्म करने के प्रयास किए जा सकें.
अनुमान है कि 2050 तक विश्व की जनसंख्या 9 अरब हो जाएगी, जिसमें से अधिकांश लोग विकासशील देशों में रहेंगे. ऐसे में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना एक गंभीर चुनौती है. एक ओर जहां भोजन की बर्बादी होती है, वहीं दूसरी ओर लाखों लोग एक वक्त का खाना भी नहीं खा पाते. एफएओ के अनुसार, दुनिया में हर व्यक्ति के लिए पर्याप्त खाद्यान्न उत्पादन हो रहा है, लेकिन वितरण में असमानता के कारण भूख की समस्या बनी हुई है.
कई अफ्रीकी देशों में खाद्य संकट ने सामाजिक और राजनीतिक अस्थिरता को जन्म दिया है. 2007-2008 में जब खाद्य कीमतों में तेजी आई तो कई देशों में तनाव और अस्थिरता बढ़ी.
भारत जैसे देश में बड़ी आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन कर रही है. बढ़ती जनसंख्या के साथ मांग बढ़ रही है, लेकिन भंडारण और वितरण में गड़बड़ी के कारण बहुत सारा अनाज बर्बाद हो जाता है. सार्वजनिक वितरण प्रणाली में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के कारण योजनाएं पूरी तरह सफल नहीं हो पातीं.
जलवायु परिवर्तन से बाढ़, सूखा और प्राकृतिक आपदाएं बढ़ रही हैं, जिससे कृषि उत्पादन प्रभावित होता है. भारत जैसे देशों में कृषि वर्षा पर निर्भर है, इसलिए जलवायु के अनुकूल कृषि तकनीक अपनाना जरूरी है.
संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक भूख को समाप्त करने का लक्ष्य रखा है. इसके लिए खाद्य उत्पादन, वितरण और अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार जरूरी है. भारत में हर साल बड़ी मात्रा में खाद्यान्न बर्बाद होता है, जिसे बेहतर भंडारण से रोका जा सकता है. खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए केवल उत्पादन बढ़ाना पर्याप्त नहीं है, वितरण और खपत में सुधार भी आवश्यक है.
भारत में मिड-डे मील योजना और सार्वजनिक वितरण प्रणाली जैसी योजनाएं लागू हैं, लेकिन इनका प्रभाव तभी बढ़ेगा जब इन्हें पारदर्शिता और दक्षता से लागू किया जाए.