लाइव न्यूज़ :

रहीस सिंह का ब्लॉग: अफगानिस्तान में थक चुका है अमेरिका!

By रहीस सिंह | Updated: March 19, 2020 07:21 IST

इमाम का कहना था कि तालिबानी कभी नहीं थकेंगे क्योंकि उन्हें लड़ने की आदत है. वे अमेरिकी सेना को खदेड़ तो नहीं सकते लेकिन उसे थका सकते हैं. यह सच भी है कि जो तालिबान अस्सी के दशक से लगातार उसी भूमि पर लड़ रहे हैं, उन्हें अफगानिस्तान की भूमि पर युद्ध लड़ने का तजुर्बा अमेरिकी सेना से कहीं अधिक रहा. क्या दूसरी बात पूरी तरह से सच साबित नहीं हो रही है?

Open in App

‘हम कोई समानांतर सरकार बनाने और राजनीतिक मतभेदों को सुलझाने के लिए बल के इस्तेमाल की किसी भी कार्रवाई का कड़ाई से विरोध करते हैं.’ अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने 9 मार्च को अफगानिस्तान में घटे राजनीतिक संकट पर इस प्रकार की टिप्पणी की है. ध्यान रहे कि 9 मार्च को अफगानिस्तान में एक तरफ राष्ट्रपति अशरफ गनी ने और दूसरी तरफ अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी जिससे वहां राजनीतिक संकट उत्पन्न हो गया.

अब सवाल यह उठता है कि यदि अमेरिका प्रत्येक किस्म की कड़ी कार्रवाई का विरोध कर रहा है, तो इसका मतलब क्या समझा जाए? एक तरफ तो वह अशरफ गनी की सरकार को वैध मानता है और दूसरी तरफ अब्दुल्ला अब्दुल्ला के खिलाफ बल प्रयोग का समर्थन नहीं करता, तब तो दोनों सरकारें अस्तित्व में रहेंगी? यह कैसे संभव हो सकता है?

एक और सवाल यह भी है कि दोहा में संपन्न हुए अमेरिका-तालिबान समझौते का अंतिम परिणाम क्या होगा? वर्तमान समय में अफगानिस्तान की स्थिति यह है कि जाबोल से लेकर कुंदूज और जलालाबाद तक इस्लामी स्टेट (आईएस), इस्लामी मूवमेंट उज्बेकिस्तान (आईएमयू) और तालिबान का दबदबा बना हुआ है.

चूंकि तालिबान के साथ अमेरिकी समझौते के बाद पाकिस्तान का मनोबल बढ़ेगा जो दक्षिण एशिया में आंतकवाद की नाभि माना जाता है, इसे देखते हुए क्या माना जाए? यानी अमेरिका अफगानिस्तान का सुरक्षित भविष्य बनाने का काम कर रहा है अथवा चुनौतीपूर्ण, जो उसे इतिहास के पुराने अध्यायों की ओर पुन: ले जा सकता है.  

क्या वास्तव में अफगानिस्तान में अमेरिका की वह लड़ाई पूरी हो गई है जिसे वर्ष 2001 में पूरी दुनिया के सामने पेश किया गया था? ये सवाल कुछ कारणों को ध्यान में रखकर उठाए जा रहे हैं. पहला यह कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था की सांसें फूली हुई हैं और ‘पोस्ट कोरोना सिनारियो’ और अधिक प्रतिकूल साबित होने वाला है. दूसरा शायद यह है कि अमेरिका अफगानिस्तान में तालिबान से लड़ते-लड़ते थक चुका है. वैसे यह बात अब से कुछ वर्ष पहले ही मुल्ला उमर के गुरु रहे आमिर सुल्तान तरार उर्फ कर्नल इमाम ने कही थी.

इमाम का कहना था कि तालिबानी कभी नहीं थकेंगे क्योंकि उन्हें लड़ने की आदत है. वे अमेरिकी सेना को खदेड़ तो नहीं सकते लेकिन उसे थका सकते हैं. यह सच भी है कि जो तालिबान अस्सी के दशक से लगातार उसी भूमि पर लड़ रहे हैं, उन्हें अफगानिस्तान की भूमि पर युद्ध लड़ने का तजुर्बा अमेरिकी सेना से कहीं अधिक रहा. क्या दूसरी बात पूरी तरह से सच साबित नहीं हो रही है?

टॅग्स :अफगानिस्तानडोनाल्ड ट्रम्पअमेरिकातालिबानलोकमत हिंदी समाचार
Open in App

संबंधित खबरें

भारतNew Year 2026: किस देश में सबसे पहले मनाया जाता है नये साल का जश्न? जानें सबसे आखिरी में कौन सा देश नए साल का करता है स्वागत

विश्वअमेरिका ने नाइजीरिया में ISIS आतंकियों पर गिराए बम, जानिए ट्रंप ने क्यों दिए एयरस्ट्राइक के आदेश

विश्वहोंडुरास में ट्रंप समर्थित उम्मीदवार नासरी अस्फुरा ने मारी बाजी, 4 बार के उम्मीदवार साल्वाडोर नसराला को करीबी मुकाबले में हराया

पूजा पाठसांता क्लॉज: लाल कोट में छिपा करुणा का अग्रदूत

विश्वअप्रवासियों को भगाने के लिए साम, दाम, दंड, भेद सब अपना रहे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प

विश्व अधिक खबरें

विश्वइज़राइल सोमालिया के अलग हुए क्षेत्र सोमालीलैंड को एक स्वतंत्र संप्रभु देश के रूप में मान्यता देने वाला पहला देश बना

विश्वCanada: टोरंटो में भारतीय छात्र की हत्या, अज्ञात ने मारी गोली; भारतीय दूतावास ने कही ये बात

विश्वBangladesh: दीपू चंद्र दास के बाद बांग्लादेश में एक और हिंदू की हत्या, अमृत मंडल के रूप में हुई पहचान

विश्वबांग्लादेश की पूर्व पीएम शेख हसीना पर शिकंजा, अवामी लीग को फरवरी 2026 के राष्ट्रीय चुनावों में भाग लेने पर किया बैन

विश्वBangladesh Protest: 17 साल बाद लंदन से ढाका लौटे बीएनपी कार्यवाहक अध्यक्ष तारिक रहमान, लाखों समर्थक पहुंचे, वीडियो