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क्या ‘नया पाकिस्तान’ बना पाएंगे इमरान?

By विजय दर्डा | Updated: July 30, 2018 10:29 IST

पाकिस्तान के सबसे बड़े धार्मिक समूह माने जाने वाले मुताहिद मजलिस-ए-अमल ने इस चुनाव में  173 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए लेकिन ज्यादातर हार गए।

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मैं इमरान खान से दो बार मिला हूं।  दोनों ही बार मुलाकात लंदन में हुई।  पहली मुलाकात करीब 22 साल पहले तब हुई जब वे राजनीति में आए ही थे। दूसरी मुलाकात उनके चुनाव हारने के बाद हुई थी लेकिन उनके चेहरे पर कोई मायूसी नहीं थी।  खिलाड़ी होने के नाते वे जज्बे से भरपूर थे। उनके भीतर आग थी कि कभी जीतेंगे जरूर! बातचीत के दौरान तब उन्होंने कहा था कि एक दिन पाकिस्तान को बदल कर रहूंगा! पाकिस्तान का युवा उन्नति चाहता है, बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य चाहता है। भ्रष्टाचारमुक्त देश चाहता है।  

इमरान के भीतर एक ऐसे देश की कल्पना थी जहां हर युवा को रोजगार, हर पेट को रोटी और हर किसान को सम्मान मिले। पाकिस्तान को सेना, आईएसआई और  कट्टरपंथियों से मुक्ति मिले! दोनों ही मुलाकातों में मैं इमरान खान से बहुत प्रभावित हुआ।  मैं इस बात से भी प्रभावित रहा हूं कि उन्होंने अपनी मां शौकत खानम की स्मृति में पाकिस्तान का सबसे बड़ा कैंसर हॉस्पिटल स्थापित किया। उनकी जीत दरअसल पाकिस्तान की नई पीढ़ी, वहां के युवाओं की जीत है जिन्होंने इमरान खान के रूप में अपनी उम्मीदों को एसेंबली में पहुंचाया है।  कुछ लोग यह कह रहे हैं कि उन्हें पाकिस्तानी सेना का समर्थन था इसलिए चुनाव जीते लेकिन यह सत्य नहीं है।  यदि वे सेना के प्यादे होते तो चुनाव जीतने के तुरंत बाद भारत से दोस्ती और व्यापार बढ़ाने जैसी उत्साहजनक बातें कैसे करते? यदि सेना और आईएसआई की मदद होती तो वे बहुत पहले सत्ता में पहुंच चुके होते।  

वास्तव में उन्होंने तो इन ताकतों के खिलाफ जंग लड़ी है।  इमरान तो जम्हूरियत के लिए लड़ रहे थे।  उनकी जीत पक्की लग रही थी।  पाकिस्तान का युवा इमरान के साथ खड़ा था इसलिए पाकिस्तानी मिलिट्री ने पर्दे के पीछे से यह दुष्प्रचार किया कि इमरान तो हमारे व्यक्ति हैं।  मिलिट्री दरअसल अपना प्रभाव दिखाना चाहती है।  हकीकत में इमरान मिलिट्री के प्यादे नहीं बल्कि जम्हूरियत के पक्के और सच्चे समर्थक हैं।  वे नरेंद्र मोदी की तरह हैं जिन्हें युवाओं ने इस मुकाम पर पहुंचाया है।  बेनजीर भुट्टो हों या फिर नवाज शरीफ, इन सबका प्रभाव उनके खास इलाकों में होता था लेकिन वे राज पूरे पाकिस्तान पर करते थे। इसके ठीक विपरीत इमरान खान ने इस चुनाव में पूरे देश में अपना दमखम दिखाया है।  हर जगह से उन्हें सीटें मिली हैं।  इमरान ने जिन क्षेत्रीय दलों को साथ लिया था उनके सभी 22 उम्मीदवार हार गए।  यदि उन सीटों पर इमरान ने अपने उम्मीदवार खड़े किए होते तो इमरान बहुमत में होते।  हालांकि ज्यादातर निर्दलीय सांसद उनके साथ होंगे और सत्ता चलाने में उन्हें कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए।  

मुझे लगता है कि यदि उन्होंने कट्टरपंथियों और पाकिस्तान के भीतर बैठे आतंकवादियों को काबू कर लिया तो यह उनकी सबसे बड़ी जीत होगी।  पाकिस्तानी अवाम ने ऐसी ताकतों को हरा कर स्पष्ट संदेश दे दिया है।  इमरान को पता है कि आतंकी हाफिज सईद कितना ताकतवर हो चुका है।  वह पाकिस्तान की सत्ता पर काबिज होने का ख्वाब देखने लगा था।  उसने मिल्ली मुस्लिम लीग नाम से अपनी पार्टी बना ली थी लेकिन पाकिस्तान चुनाव आयोग ने उसे मान्यता नहीं दी।  जब उसे लगा कि अपनी पार्टी के बैनर तले वह अपने लोगों को चुनाव नहीं लड़ा सकता तो उसने अल्लाह-ओ-अकबर तहरीक पार्टी को समर्थन दे दिया।  उसके 50 उम्मीदवार इस पार्टी के उम्मीदवार बनाए गए।  उसका बेटा हाफिज तल्हा सईद सरगोधा की एनए-91 सीट से और दामाद खालिद वलीद पीपी-167 सीट से चुनाव में खड़ा हुआ।  हाफिज सईद ने खुद इन चुनावों में जमकर प्रचार किया लेकिन दोनों ही पराजित हो गए।  हाफिज के करीब-करीब सभी उम्मीदवार चुनाव हार गए।  

पाकिस्तान के सबसे बड़े धार्मिक समूह माने जाने वाले मुताहिद मजलिस-ए-अमल ने इस चुनाव में  173 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए लेकिन ज्यादातर हार गए।  इस समूह के नेता मौलाना फजलुर रहमान ने बड़ा प्रचार अभियान चलाया था।  बड़े-बड़े मौलानाओं ने उम्मीदवारों को जिताने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी लेकिन सफलता नहीं मिली।  इक्का-दुक्का उम्मीदवार ही जीत पाए।  कट्टरपंथी समूह तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) का भी यही हाल हुआ।  टीएलपी ने 100 से अधिक उम्मीदवार मैदान में उतारे थे लेकिन सभी पराजित हो गए।  टीएलपी का यह हाल तब हुआ है जब एक और कट्टरपंथी संगठन ‘पाकिस्तान सुन्नी तहरीक’ उसका समर्थन कर रहा था।  

इन फिरकापरस्त ताकतों की हार से इमरान की ताकत बढ़ी है और वे चाहें तो इन ताकतों पर लगाम लगा सकते हैं।  इमरान इस बात को बखूबी जानते हैं कि आतंकवादी यदि मजबूत होते रहे तो एक दिन पाकिस्तान को पूरी तरह बर्बाद जरूर कर देंगे।  पाकिस्तान के हक में उन्हें आतंकवादियों पर नकेल कसनी ही होगी।  यदि ऐसा  हुआ तो वे भारत के साथ पाकिस्तान के रिश्तों को बेहतर बना पाने में भी सफल होंगे, जैसा कि उन्होंने जीत के बाद अपनी पहली प्रेस कान्फ्रेंस में वादा भी किया है।   पाकिस्तान के कई मित्रों से मेरी इस बारे में चर्चा हुई है और सभी को यह उम्मीद है कि वे संबंधों को बेहतर बनाएंगे।  उन्होंने कहा भी है कि भारत एक कदम बढ़ाए तो हम दो कदम बढ़ाएंगे। 

वे ऊर्जावान और डेवलपमेंट ओरिएंटेड व्यक्ति हैं।  वे समानता और एकता के पक्षधर हैं।  भारत के साथ बेहतर व्यापार संबंध बनाने के साथ कश्मीर मुद्दा सुलझाने की भी बात उन्होंने की है।  वे जानते हैं कि भारत और पाकिस्तान के सामने सबसे बड़ी समस्या गरीबी से निपटने की है।  एक खुशहाल पाकिस्तान का सपना उनके भीतर पल रहा है।  उन्हें पाकिस्तान की क्रेडिबिलिटी स्थापित करनी है।  उनके पास यह अवसर है, वे अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं।  लेकिन उन्हें यह भी समझना होगा कि उन्हें सत्ता शिखर पर पहुंचाने वाले युवाओं की उम्मीदें जल्दी पूरी नहीं हुईं तो फिर अल्लाह ही उनका मालिक है! एक बात और। मैं पाकिस्तान के मीडिया, खास तौर पर डॉन और जियो समूह की तारीफ करता हूं जिन्होंने चुनाव में बगैर किसी भय और दबाव के अत्यंत निष्पक्ष रोल अदा किया।  इमरान को इससे निश्चय ही मदद मिली।  और अंत में।

पाकिस्तान चुनाव में इस बात की चर्चा सबसे ज्यादा रही कि नवाज जेल जाने के लिए देश क्यों लौटे? वे लंदन में आजाद जिंदगी जी सकते थे।  दरअसल वे अपनी संपत्ति बचाने के लिए लौटे।  यदि न लौटते तो संपत्ति गंवा सकते थे।  वे भले ही जेल में हों लेकिन संपत्ति तो बचा ही सकते हैं। दूसरी बात, कि उन्हें सहानुभूति वोट की उम्मीद थी लेकिन भ्रष्टाचार का ऐसा दाग उन पर लगा है कि पाकिस्तानी युवाओं ने कोई सहानुभूति नहीं दिखाई!

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