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Bangladesh general election 2024: बेगमों की जंग में उलझे अंकल सैम!, डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग

By विजय दर्डा | Published: December 04, 2023 7:20 AM

Bangladesh general election 2024: बांग्लादेश की दो बेगमों मौजूदा प्रधानमंत्री शेख हसीना और विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की खालिदा जिया के बीच जंग है.

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ठळक मुद्देबांग्लादेश में 7 जनवरी को चुनाव होने हैं. रूस हमेशा की तरह अमेरिका के विरोध का परचम फहरा रहा है. अमेरिका शेख हसीना की खिलाफत में उतर आया है

Bangladesh general election 2024: किसी भी देश में चुनाव वहां का आंतरिक मामला होता है. दुनिया की नजर इस बात पर रहती है कि चुनाव के परिणाम क्या होंगे क्योंकि इससे विदेश नीति प्रभावित होती है. लेकिन किसी देश का चुनाव दुनिया की महाशक्तियों के बीच टकराव का कारण बन जाए तो यह मामला थोड़ा अजीब जरूर लगता है.

मसला यह है कि बांग्लादेश में 7 जनवरी को चुनाव होने हैं. बांग्लादेश की दो बेगमों मौजूदा प्रधानमंत्री शेख हसीना और विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की खालिदा जिया के बीच जंग है. इस बीच अमेरिकाशेख हसीना की खिलाफत में उतर आया है और रूस हमेशा की तरह अमेरिका के विरोध का परचम फहरा रहा है. सवाल है आखिर क्यों?

बांग्लादेश की राजनीति में शेख हसीना 2009 से लगातार सत्ता में हैं. बीच के दो चुनावों में उन्होंने जीत दर्ज की लेकिन बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी आरोप लगाती रही है कि शेख हसीना ने चुनावों में गड़बड़ की थी. इस बार भी यदि उनके सत्ता में रहते चुनाव हुए तो वह अपनी जीत सुनिश्चित करेंगी. शेख हसीना अपने कड़क प्रशासन के लिए जानी जाती हैं.

उन्होंने कट्टरपंथियों की नकेल कसी है और आतंकवाद को लगभग कुचल दिया है. आतंकवाद फैलाने वाले नेताओं को फांसी पर लटकाने से भी वे नहीं चूकी हैं. इसके बावजूद अमेरिका उन्हें पसंद नहीं करता है. अमेरिका का कहना है कि किसी भी देश में चुनाव लोकतांत्रिक और पारदर्शी तरीके से होना चाहिए. शेख हसीना का रिकॉर्ड ठीक नहीं है.

हसीना की अमेरिकी खिलाफत तब बिल्कुल सामने आ गई जब अमेरिकी राजदूत पीटर हास ने बीएनपी नेता से मुलाकात की और जमात-ए-इस्लामी के साथ मतभेद खत्म करने को कहा. खालिदा चूंकि अपने घर में नजरबंद हैं इसलिए उनसे मुलाकात संभव नहीं थी. खालिदा के बेटे तारिक लंदन में हैं क्योंकि शेख हसीना पर हमले के मामले में उन्हें बांग्लादेश में सजा हो चुकी है.

स्वाभाविक सा सवाल है कि जो जमात-ए-इस्लामी आतंकवाद के गंभीर आरोप से जूझती रही है, उसके साथ अमेरिका की हमदर्दी क्यों? इसके लिए अमेरिका की आलोचना भी हो रही है लेकिन वह अपनी राह चल रहा है. बांग्लादेश के मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए उसने इसी साल मई में घोषणा कर दी कि जो लोग बांग्लादेश में निष्पक्ष चुनाव  की राह में बाधा पहुंचाएंगे उनको और उनके घरवालों को अमेरिका का वीजा नहीं दिया जाएगा!

दरअसल मुझे लगता है कि अमेरिका के इस रुख के दो कारण हैं. एक कारण तो यह है कि बांग्लादेश के साथ चीन के रिश्ते बहुत अच्छे हैं. चीन उसका सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और दूसरी बात यह है कि शेख हसीना अमेरिका की सुन नहीं रही हैं. भारत ने जब भी अपने यहां वांछित किसी आतंकवादी की सूचना बांग्लादेश को दी तो शेख हसीना ने तत्काल उसे भारत के हवाले किया.

शेख हसीना मानती रही हैं कि अमेरिका उन्हें अपनी कठपुतली की तरह देखना चाहता है. स्वाभाविक सी बात है कि अमेरिका शेख हसीना के विरोध में है तो रूस समर्थन में उतर आया है. रूस ने हालांकि अपने बयान में अमेरिका का नाम नहीं लिया है लेकिन साफ कहा है कि किसी भी देश के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप नहीं करने के सिद्धांत का उल्लंघन हो रहा है.

खुद को विकसित लोकतंत्र कहने वाले देश दूसरे स्वतंत्र देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप तो करते ही हैं, उसे ब्लैकमेल करने के लिए गैरकानूनी प्रतिबंध भी लगाते हैं. रूस का यह बयान आते ही अमेरिका बौखला गया. ढाका स्थित अमेरिकी दूतावास ने तत्काल एक ट्वीट किया कि क्या तीसरे देश में हस्तक्षेप नहीं करने का सिद्धांत यूक्रेन पर भी लागू होता है?

इसके जवाब में रूसी दूतावास ने अमेरिका और उसके सहयोगी देशों का उपहास उड़ाने वाला एक कार्टून ट्वीट किया. यहां यह याद दिला दें कि 2014 के चुनाव में भी शेख हसीना की अमेरिका ने बड़ी आलोचना की थी लेकिन भारत, रूस और चीन ने शेख हसीना का समर्थन किया था.

वैसे शेख हसीना ने इस बात की काफी कोशिश की कि अमेरिका के साथ उनके संबंध बेहतर हों. स्थिति में कुछ सुधार भी हुआ था लेकिन इसी साल यूक्रेन मामले पर संयुक्त राष्ट्र में हुई वोटिंग में बांग्लादेश ने हिस्सा नहीं लिया जिससे अमेरिका नाराज हो गया.

हालांकि बांग्लादेश ने संयुक्त राष्ट्र जनरल एसेंबली में रूस के खिलाफ वोटिंग में हिस्सा लिया लेकिन अमेरिका की चाहत है कि बांग्लादेश अपनी मर्जी के हिसाब से नहीं बल्कि अमेरिका की चाहत के अनुरूप चले. वह एक तरह से धमकी पर उतर आया है. इसी साल जून में अमेरिकी राजदूत बांग्लादेश चुनाव आयोग के दफ्तर जा पहुंचे थे और चुनाव आयुक्त काजी हबीबुल अवल से कहा था कि बांग्लादेश में पारदर्शी चुनाव होना चाहिए. यूरोपीय संघ और जापान ने भी कई बार ऐसे बयान दिए हैं.

मुझे लगता है कि न अमेरिका को दुनिया का चौधरी बनना चाहिए और न रूस को तलवार भांजनी चाहिए. अमेरिका और रूस की चकरघिन्नी ने अफगानिस्तान का क्या हाल किया है यह पूरी दुनिया देख रही है. बांग्लादेश को भी क्या बदहाली की राह पर ले जाएंगे? कोशिश तो चीन भी कर रहा है लेकिन भारत ने अपने कौशल से उसे बांग्लादेश में हस्तक्षेप से रोक रखा है.

सबको समझना चाहिए कि जनवरी में होने वाला चुनाव बांग्लादेश का अंदरूनी मामला है, वहां के मतदाताओं पर सबको भरोसा करना चाहिए. शेख हसीना की आलोचना करने वालों को याद रखना चाहिए कि उन्होंने आतंकवाद को कुचलने में कामयाबी हासिल की है और बांग्लादेश को आर्थिक तरक्की के नए मुकाम पर पहुंचाया है. 

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