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मेरी पहली हवाई यात्रा: गोवा ट्रिप से पहले ऐसी प्रताणना किसी को ना मिले

By खबरीलाल जनार्दन | Updated: April 29, 2018 18:06 IST

संभव है अपनी पहली हवाई यात्रा पर बड़े लच्छेदार शब्दों में सुंदर यात्रा वृतांत लिखे गए हों। लेकिन मुझे जिक्र करने में झल्लाहट होती है।

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संभव है अपनी पहली हवाई यात्रा पर बड़े लच्छेदार शब्दों में सुंदर यात्रा वृतांत लिखे गए हों। लेकिन मुझे जिक्र करने में झल्लाहट होती है। इस यात्रा ने मेरी बचपन से आवाज सुनते ही ऊपर देखने के अकुलाहट खत्म कर दी।

इंडिगो के पायलट ने रनवे पर उतनी स्पीड से भी जहाज नहीं भगाया जितना मैं सड़क पर बाइक भगा देता हूं। ऊपर जाते वक्त सीटें उतनी भी तिरछी नहीं होतीं जितनी मेले में बड़ा झूला घूमा देता है।

मुझे रास्ते में चलते हुए दुकानों के नाम, बिल्डिंग के नाम पढ़ने होते हैं। इसमें विंडो से पूरी ताकत लगाकर नीचे झांको तो कुरूप बादलों के भवसागर के अलावा कुछ नहीं दिखता।

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मेरा बड़ा मन था कि ऊपर से अपने गांव को देखूं, घर को देखूं। चलो ना दिखें तो अपने अपने शहर को ही देख लूं। बड़ा मन हुआ कि एयर होस्टेस से पूछ लूं- ये जहाज रॉबर्ट्सगंज होते जाएगा क्या? सोनभद्र आए तो बता दीजिएगा, नीचे झाकूंगा, शायद कुछ दिखे। लेकिन ये रट्टू तोता एयर होस्टेस। जहाजों में इन्हें हटाकर कोई मशीन लगा दें तो ज्यादा अच्छा रहे। इनसे एक सवाल रटी हुई कुंजी के बाहर से पूछ लो तो चिढ़े हुए टीचर की तरह शक्ल बनाती हैं।

एक बार तो मन हुआ पूछ लूं- अगर मैं यहां आपसे छेड़खानी कर दूं तो मुझपर किस प्रदेश में मुकदमा दर्ज होगा। चढ़ा दिल्‍ली में था, उतरूंगा गोवा में, पर मामला दोनों ही प्रदेशों का नहीं है। अपराध किसी और प्रदेश की सीमा हुआ है।

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मुझे हर स्टॉप पर उतरने वाले और चढ़ने वालों के चेहरे देखने होते हैं। मौके-बामौके किसी चेहरे को बार-बार देखना होता है। नोएडा सेक्टर-12 से सेक्टर-16 आना-जाना बहुत कम तो 200 बार हुआ होगा। लेकिन आज भी रोमांचक होता है।

पर ये हवाई जहाज वाले मरगिल्ले लोग, जाने कितने दिनों से बगैर सोए आते हैं। टेक ऑफ हुआ नहीं सो जाते हैं। मेरे जैसे जगे हुए लोग अपने कान खुलने का इंतजार करते रहते हैं और अत्यंत फालतू मैगजीन को पलटा करते हैं। कुछ साहब लोग 100 रुपये की चुल्लू भर चाय पीते हैं। पता नहीं 2 घंटे चाय ना पिएं तो मर जाएं। या इससे अच्छी चाय दो घंटे बाद 10 रुपये में नीचे उतरने पर देख कर मर जाएं।

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फिर लगा कि चलो न कुछ तो लैंडिंग के समय पहिया जमीन में सटेगा तो एक झटका लगेगा, तो रोमांच आएगा। लेकिन ये मुर्दों की यात्रा किसी काम की नहीं। इससे लाख गुना मजेदार ट्रेन है। आते-जाते खेत, खेत में लगे अनाज, सब्जियां, पेड़ और स्टेशन, शहर दिखते हैं।

हवाई जहाज पर बैठने के बाद मुझे पता चला मैं इस खेमे का आदमी नहीं हूं। इसमें इतनी बोरियत होती है कि रस्ते में रुकवाकर उतर जाऊं।

टॅग्स :एयर इंडियाएयर एशियाजेट एयरवेज
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