"एक्सक्यूजमी, क्या आप मेरी अपर बर्थ से सीट एक्सचेंज करेंगी प्लीज?"

By मेघना वर्मा | Published: March 5, 2018 05:31 PM2018-03-05T17:31:24+5:302018-03-05T17:36:14+5:30

भारतीय रेलवे में सफर करने वाले लोग खुद को क्या समझते हैं मालूम नहीं लेकिन इंसानियत जैसी चीज शायद ही  किसी के अन्दर बाकी रह गयी है।

Seat exchange by passengers by traveling in the India Railway | "एक्सक्यूजमी, क्या आप मेरी अपर बर्थ से सीट एक्सचेंज करेंगी प्लीज?"

"एक्सक्यूजमी, क्या आप मेरी अपर बर्थ से सीट एक्सचेंज करेंगी प्लीज?"

"एक्सक्यूजमी, क्या आप मेरी अपर बर्थ से सीट एक्सचेंज करेंगी प्लीज?" ये लाइन सुनते ही मुझे चार साल पहले का वो वाकया याद आ जाता है जिसे बड़े मुश्किल से मैं भुला पायी हूं। भारतीय रेलवे में सफर के दौरान अक्सर आपने किसी ना किसी को ये लाइनें बोलते हुए  और अपनी सीट एक्सचेंज करते सुना और देखा होगा। हाल ही में मैं भी इलाहाबाद से दिल्ली के सफर में ऐसे ही कुछ लोगों से मिली जो मुझसे मेरी लोअर बर्थ के बदले अपर बर्थ मांग रहे थे। मैं उन्हें बड़े आराम से अपनी लोअर बर्थ दे भी देती लेकिन मेरी दादी की वो दर्द भरी आंखें मेरे दिमाग में चलने लगी और मैंने बिना किसी झिझक के सीट बदलने को मना कर दिया। 

कुछ 2013 के ठंड की ये बात है मेरी दादी की उम्र होगी कुछ 63 से 70 के बीच की। घर की सीढियों से जब वो गिरी थी तो पैर की हड्डी खिसक गयी थी। इलाज के लिए आनन-फानन में हमें दिल्ली आना पड़ा था। ट्रेन में सीट तो कंफर्म हो गयी थी लेकिन मुसीबत बस यही थी कि तीन सीटों में एक मिडिल और दो अपर बर्थ मिले थे। मुझे आज भी याद है मेरी दादी ट्रेन पर चढ़ तो गयी थी लेकिन बहुत परेशान थी कि उस मिडिल बर्थ पर चढ़ेंगी कैसे? पापा ने हमारी कोच में लगभग सभी से बात कर लिया था लेकिन कोई भी आदमी अपनी लोअव बर्थ छोड़ने को तैयार नहीं हुआ था। पापा ने टीटी से भी बात की उसने भी बस दिलासा दिया की "देखते हैं कोई सीट खाली होगी तो बता देंगे", लेकिन कहीं कुछ नहीं हुआ। 

भारतीय रेलवे में सफर के दौरान लोग अपना खुद का नियम बना लेते हैं। जिनके पास अपनी सीट होती है वो खुद को राजा समझ बैठते हैं। खैर रात जैसे-जैसे करीब आ रही थी दादी और भी परेशान हो रही थी। पापा और मैंने किसी तरह उन्हें मिडिल बर्थ पर लेटा तो दिया लेकिन पूरी रात दादी एक बार भी अपनी बर्थ से उठी नहीं। ना बाथरूम गई ना कोई और काम किया। सुबह जब हम दिल्ली पहुंचने वाले थे तब उन्हें उसी सावधानी से वापिस नीचे उतारा। उनके पैरों में इतना दर्द था कि वो ठीक तरह से चल भी नहीं पा रही थी। भले ही ट्रेन की उस बोगी में बैठे लोगों को मैं नहीं जानती थी लेकिन उन सबसे एक दुश्मनी जैसी जरूर हो गयी थी। 

वो दिन और आज का दिन है मैंने कभी किसी के साथ अपनी सीट एक्सचेंज नहीं की है। फिर चाहे मेरी अपर बर्थ हो या मिडिल। आखिरी बार भी जब दो आदमी मेरे पास अपनी सीट बदलवाने का प्रस्ताव लेकर आये तो मना करते हुए मुझे बुरा जरूर लगा लेकिन मेरी दादी का घुटने का दर्द एक बार फिर आंखों के सामने आ गया। भारतीय रेलवे में सफर करने वाले लोग खुद को क्या समझते हैं मालूम नहीं लेकिन इंसानियत जैसी चीज शायद ही  किसी के अन्दर बाकी रह गयी है। ' फैमिली के साथ हैं, पहली बार सफर कर रही हूं, अरे नहीं! मैंने स्पेशली ये लोअर बर्थ अपने लिए ली थी, सॉरी जैसे शब्द बोल कर लोग अपना पल्ला झाड लेते हैं। मैंने भी ठानी है, इतनी खींज है अंदर की अब किसी से भी अपनी सीट एक्सचेंज नहीं करूंगी।  

Web Title: Seat exchange by passengers by traveling in the India Railway

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