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आंसुओं में होती है इतिहास बदलने की क्षमता, हरीश गुप्ता का ब्लॉग

By हरीश गुप्ता | Updated: February 4, 2021 12:16 IST

दुनिया में दर्जनों ऐसे नेता हैं जिनके आंसुओं ने करोड़ों को पिघला दिया, कठिन समय में नैतिकता को ऊंचा उठाया, निराशा के बीच आशा जगाई और कई बार इतिहास की धारा को बदल दिया.

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ठळक मुद्देअब्राहम लिंकन से लेकर बराक ओबामा तक, रूस के राष्ट्रपति पुतिन से लेकर इंदिरा गांधी और प्रधानमंत्री मोदी तक ने आंसू बहाए हैं. मोदी भाजपा सांसदों की संसदीय बैठक को संबोधित करते हुए अपने आंसुओं को रोक नहीं पाए. 2014 में संसद में भी उनकी आंखें भर आई थीं जब उन्हें भाजपा संसदीय दल का नेता चुना गया.

डोनाल्ड ट्रम्प ने 2015 में एक पत्रिका को बताया था, ‘‘जब मैं किसी आदमी को रोता हुआ देखता हूं, तो मैं इसे एक कमजोरी मानता हूं.’’

उन्होंने आगे कहा था, ‘‘मैं आखिरी बार तब रोया था जब मैं बच्चा था.’’ लेकिन ट्रम्प अपनी मान्यताओं की दुनिया में रह रहे थे. शायद वे आंसुओं की शक्ति का एहसास करने में विफल रहे. दुनिया में दर्जनों ऐसे नेता हैं जिनके आंसुओं ने करोड़ों को पिघला दिया, कठिन समय में नैतिकता को ऊंचा उठाया, निराशा के बीच आशा जगाई और कई बार इतिहास की धारा को बदल दिया.

राष्ट्रपति पुतिन से लेकर इंदिरा गांधी और प्रधानमंत्री मोदी तक ने आंसू बहाए हैं

अब्राहम लिंकन से लेकर बराक ओबामा तक, रूस के राष्ट्रपति पुतिन से लेकर इंदिरा गांधी और प्रधानमंत्री मोदी तक ने आंसू बहाए हैं. इसके पीछे सबके अपने-अपने कारण रहे हैं. मोदी भाजपा सांसदों की संसदीय बैठक को संबोधित करते हुए अपने आंसुओं को रोक नहीं पाए. लेकिन यह पहली बार नहीं था जब 56 इंच की छाती वाला आदमी रोया था.

2014 में संसद में भी उनकी आंखें भर आई थीं जब उन्हें भाजपा संसदीय दल का नेता चुना गया. 2007 में अपनी दुर्दशा बयान करते हुए लोकसभा में भगवाधारी योगी आदित्यनाथ रो पड़े थे. उन्होंने सदन का दिल जीता और दस साल बाद मुख्यमंत्री बन कर समाजवादी पार्टी के नेताओं को लखनऊ में रुलाया.

यह अलग बात है कि उन रोने वाले नेताओं की किसी ने नहीं सुनी. पिछले महीने गाजीपुर में एक बार फिर आंसुओं की ताकत को देखा गया, जहां 26 जनवरी की हिंसा के बाद आंदोलन धीमी मौत मर रहा था. राकेश टिकैत अपने आंसुओं के साथ परिदृश्य में उभरे और अपने किसान भाइयों के लिए आत्महत्या करने की धमकी दी. इससे न केवल भीड़ वापस आ गई, बल्कि राकेश टिकैत किसानों के एकमात्र वार्ताकार और निर्विवाद नेता के रूप में भी उभरे. वे दिन गए जब वे विज्ञान भवन में सरकार से बात करने के लिए 40 नेताओं में से एक हुआ करते थे.

पहले कौन झुकेगा !!!

राकेश टिकैत किसानों के निर्विवाद नेता के रूप में उभर सकते हैं. आंदोलन का केंद्र चाहे गाजीपुर, टिकरी या शाहजहांपुर-खेड़ा बॉर्डर पर हो लेकिन टिकैत एकमात्र प्रवक्ता हैं क्योंकि पंजाब के दर्शन पाल, पंढेर, राजोवाल या सिरसा कोई बयान नहीं दे रहे हैं. टिकैत को रोज किसी एक या दूसरे  नेता के साथ देखा जा रहा है.

वे उन सभी को गले लगा रहे हैं जिनसे उन्होंने पहले अपने आपको दूर रखा था. लेकिन इस गौरव के साथ, वे दिन गए जब पीएम की निगरानी के साथ मंत्री तत्काल उपलब्ध रहते थे. दीप सिद्धू से प्रेरित पंजाब के किसानों के एक छोटे समूह द्वारा लाल किले पर 26 जनवरी को ध्वजारोहण ने इतिहास की धारा को बदल दिया. सरकार एक फोन कॉल की दूरी पर हो सकती है लेकिन किसी को तो वह नंबर डायल करना होगा. टिकैत अब ‘मध्य मार्ग’ की बात करते हुए सरकार से किसानों को एमएसपी की गारंटी देने के लिए कह रहे हैं.

उनके बड़े भाई नरेश टिकैत 2024 तक कानूनों को स्थगित करने की मांग कर रहे हैं. लेकिन सरकार में कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है जैसे कि टिकैत दीवार से सिर टकरा रहे हैं. पुलिस ने उन्हें दिल्ली में प्रवेश करने से रोक दिया है, शिकंजा कसा जा रहा है, मामले दर्ज किए जा रहे हैं, हालांकि प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार नहीं किया जा रहा है.

दीप सिद्धू को भी नहीं, जिसे ध्वज फहराने की योजना का मास्टरमाइंड माना जाता है. 1988 में सीनियर टिकैत अर्थात् महेंद्र सिंह टिकैत ने लाखों किसानों के साथ बोट क्लब लॉन में घेराबंदी की थी. तब राजीव गांधी सरकार के साथ एक सम्मानजनक 35-सूत्री समझौता कर वे अपनी छवि को बनाए रखने में सफल हुए थे. मोदी समझदार हैं. वे इन किसानों को फिर से दिल्ली में प्रवेश नहीं करने देंगे. उन्हें सीमाओं पर रखने का ही आदेश है. यह झुकने का समय है लेकिन किसके लिए !!!

अगले साल किसान बजट

प्रधानमंत्री मोदी इस साल रेलवे के बजाय ‘किसान बजट’ शुरू करने पर विचार कर रहे थे. बहुत सारे जमीनी काम भी किए गए थे और नीति आयोग के विचार जानने की कोशिश भी की गई थी. मोदी ने रेलवे बजट को वस्तुत: दफन ही कर दिया था और किसी को भी इसकी परवाह नहीं थी.

उन्होंने पहले ही कृषि मंत्रलय का नाम कृषि और किसान कल्याण मंत्रलय कर दिया है और पांच साल में किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया था. लेकिन उन्होंने योजना को रद्द कर दिया क्योंकि किसान नवंबर-दिसंबर में दिल्ली की सीमाओं पर धरने पर बैठ गए. मोदी अब दबाव में आने वाले नहीं हैं. अगले साल उत्तर प्रदेश में चुनाव होने वाले हैं, इसलिए वर्ष 2022 में किसान बजट लाया जा सकता है.

और अंत में

मनसुख मांडविया के बंदरगाह, नौवहन और जलमार्ग मंत्रलय ने कच्छ (गुजरात) में एक सम्मेलन आयोजित किया और प्राचीन भारत के समुद्री वैभव को फिर से हासिल करने पर विचार-मंथन किया गया. इसका नाम चिंतन बैठक था, जो 70 वर्षो में किसी भी मंत्रलय द्वारा अपनी तरह का पहला आयोजन था. यह एक नई रिवायत का समय है. क्या हुआ अगर यह शब्द नागपुर से लिया गया है.

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