West Bengal Vidhan Sabha 2026: बिहार में तो एसआईआर तो सिर्फ पायलट प्रोजेक्ट था. असली प्रयोग तो बंगाल में होने वाला है. तो क्या बंगाल में ममता बनर्जी हार जाएंगी. क्या ममता को हराना इतना आसान है. बंगाल में विधानसभा चुनाव मार्च-अप्रैल में होने हैं और अभी से चुनावी मौसम शुरू हो गया है. अगले दो-तीन महीनों मौसम बिगड़ना तय है लिहाजा चुनाव से संबंधित दलों को पेटी बांध लेनी चाहिए. बीजेपी की एनडीए सरकार के पास धनबल है, नेताओं की फौज है, बेहतर रणनीतिकार हैं. ममता बनर्जी बंगाल की मुख्यमंत्री हैं,
महिलाओं में लोकप्रिय हैं, जीत का जज्बा है, मुस्लिम साथ हैं, हिंदुओं को खुश रखा है. ऐसे में मुकाबला कड़ा और नजदीकी का हो सकता है. आमतौर पर कहा जा रहा है कि तीस लाख से लेकर एक करोड़ तक वोट कट सकते हैं. ममता इसे समझ रही हैं. बीजेपी के बंगाल के नेता ऐसा संकेत दे रहे हैं. मुकाबला ममता और मोदी में होना है.
टीएमसी ममता बनर्जी के दम पर चुनाव लड़ रही है. बीजेपी में चेहरा मोदी का होगा और सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा. पिछले दस सालों को देखा जाए तो बीजेपी का ग्राफ तेजी से बढ़ा है लेकिन ममता बनर्जी की पकड़ में भी कोई कमी नहीं आई है.
कुल मिलाकर कांग्रेस और वाम मोर्चा सियासी हाशिए पर चले गए हैं. 2016 के विधानसभा चुनाव में में बीजेपी को दस फीसदी वोट मिले थे और सिर्फ तीन सीटें ही जीती जा सकी थी. लेकिन 2021 के विधानसभा चुनाव में तीन गुना बढ़कर वोट फीसद तीस प्रतिशत हो जाता है. सीटों की संख्या तीन से बढ़कर 77 हो जाती हैं.
उधर ममता बनर्जी 2016 का चुनाव दो तिहाई मतों से और 2021 में तीन चौथाई मतों से जीत हासिल करती है. 2021 में ममता को दो करोड़ 87 लाख वोट मिलते हैं. बीजेपी को दो करोड़ 28 लाख वोट मिलते हैं. यह 2016 से करीब सवा करोड़ वोट ज्यादा होते हैं. अब देखिए 2024 के लोकसभा चुनावों में क्या होता है. ममता बनर्जी को दो करोड़ 75 लाख वोट मिलते हैं.
42 में से 29 लोकसभा सीटें कब्जे में आती हैं. उधर बीजेपी 12 सीटों पर सिमट जाती है (2019 में 18 सीटें थी) लेकिन बीजेपी का वोट दो करोड़ 33 लाख हो जाता है. इस हिसाब से देखा जाए तो ममता और मोदी में वोटों का फासला 2021 के 59 लाख से घटकर 42 लाख ही रह जाता है. ऐसे में अगर बीस-बाइस लाख वोट इधर-उधर हुए तो ममता का खेल बिगड़ सकता है.
और अगर सच में एक करोड़ वोट कट गए तो बंगाल में बिहार से भी बड़ी सुनामी आ सकती है. यहां यह बात समझनी जरूरी है कि बीजेपी का जनाधार बढ़ा तो है लेकिन उसे या तो ममता विरोधियों का वोट मिला जो वाम दलों और कांग्रेस की लगातार विफलता से दुखी थे या फिर ममता के दल से बीजेपी में गए नेता अपने साथ अपने हिस्से का वोटर लेकर आए.
अब इस आधार पर बीजेपी तीस फीसद तक तो पहुंच गई लेकिन करीब 47 फीसद वाली ममता को इस संख्या से हराया नहीं जा सकता. जब तक ममता बनर्जी के सुरक्षित वोट बैंक में सेंधमारी नहीं होगी तब तक बीजेपी का सत्ता में आना कठिन लगता है. उधर बीजेपी नेता सुवेंदु अधिकारी का कहना है कि बंगाल में अवैध रूप से घुसपैठियों की भरमार है और एक करोड़ नाम कट जाएं तो किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए. घुसपैठिए तो हिंदू भी हैं जो बांग्लादेश से मुस्लिम शरणार्थियों की तरह ही आए हैं लेकिन ऐसे घुसपैठियों को सीएए (नागरिकता संशोधन अधिनियम) के तहत नागरिकता दिए जाने का प्रावधान है.
बीजेपी जानती है कि वह बिहार की तरह महिलाओं के लिए दस हजारी योजना पर बंगाल में अमल नहीं कर सकती क्योंकि वहां उसकी सरकार नहीं है. देशभर के लिए कोई योजना लागू कर के ही वह बंगाल की महिलाओं तक पहुंच सकती है. वित्तीय हालत देखते हुए ऐसा संभव नहीं है. बीजेपी बंगाल में हिंदुत्व और विकास का घोल परोसती रही है.
बंगाल में करीब तीस फीसद मुस्लिम हैं और बीजेपी के लिए हिंदू-मुस्लिम करना आसान होना चाहिए लेकिन ऐसा होता नहीं है. भद्रलोक समाज में सेंधमारी करना इतना आसान नहीं है. ऐसे में विरोधी वोट पर एसआईआर की कुल्हाड़ी चलाना आसान उपाय है. लेकिन बीजेपी इसके साथ साथ ममता की बंगाली अस्मिता के हथियार का तोड़ निकालने में लगी है.
बंगाल में बाहरी बनाम बंगाल की बेटी के बीच चुनाव का नैरेटिव ममता स्थापित करती रही हैं. इस बार बीजेपी भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामाप्रसाद मुखर्जी के जरिए सेंध लगाने की कोशिश में है. ममता बनर्जी बीजेपी की इस चाल को पहले ही समझ गई थी. उन्होंने दुर्गा पूजा के मौके पर लगने वाले पंडालों के लिए जमकर पैसा देना शुरू किया.
अगर मौलवियों का मानदेय बढ़ाया तो पुजारियों के मानदेय़ में भी उतना ही इजाफा किया. पिछले लोकसभा चुनावों में तो ममता चुनावी सभाओं में चंडी पाठ करती नजर आई थी. बीजेपी का हिंदू कार्ड तो लोकसभा चुनावों में उम्मीद के मुताबिक चला नहीं लेकिन विधानसभा चुनावों में बीजेपी संघ के साथ मिलकर इस कार्ड को फिर से भुनाने के फेर में है.
ममता लगातार तीन बार से बंगाल की मुख्यमंत्री हैं. इस समय 294 की विधानसभा में उनके 200 से ज्यादा विधायक भी हैं. टीएमसी के कार्यकर्ता भी संगठन को मजबूत रखे हुए हैं. लेकिन निचले स्तर पर भ्रष्टाचार भी बहुत है. ममता इस पर रोक लगाने में कामयाब नहीं हुई हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी ने इस चोरी-चकारी को बड़ा मुद्दा बनाया था.
ममता ने तब कुछ जगह कार्यकर्ताओं से रिश्वत की रकम लौटाई भी थी लेकिन यह काम एक हद से ज्यादा पूरा नहीं हुआ. ममता बनर्जी ने समाज के विभिन्न वर्गों के लिए ढेरों योजनाएं चला रखी हैं. बीजेपी इन योजनाओं में भ्रष्टाचार और योजना से छूटे हुए वोटरों को भी टारगेट पर ले रही है. ममता अगर मोदी को चुनौती दे रही हैं तो ममता को मोदी से चुनौती भी मिल रही है.