लाइव न्यूज़ :

क्या रामविलास शर्मा हिंदुत्व के समर्थक थे?

By विमल कुमार | Published: October 10, 2021 11:49 AM

रामविलास शर्मा को समग्रता में देखा नहीं गया इससे उनके बारे में भ्रांति अधिक फैलाई गई और ऐसी छवि बनाई गई मानों वे ब्राह्मणवादी थे। उनका पाठ से अधिक कुपाठ किया गया।

Open in App

आज हिंदी के प्रख्यात मार्क्सवादी आलोचक इतिहासकार भाषा विज्ञानी और विचारक रामविलास शर्मा की जयंती है। उनके निधन को दो दशक हो चुके और उनके जीवन काल में ही उनके विचारों सिद्धांतों की आलोचना होने लगी थी। उनके निधन के बाद नामवर सिंह ने उनपर "इतिहास की शव साधना" नामक लेख लिखकर रामविलास जी की तीखी आलोचना की थी जिसको लेकर काफी विवाद हुआ था। 

आज कई दलित और अति वामपंथी लेखक रामविलास जी की काफी आलोचना करते हैं। उन्हें ब्राह्मणवादी बताते हैं और हिंदी जाति की उनकी अवधारणा को भी गलत मानते हैं तथा हिंदी नवजागरण की उनकी स्थापनाओं से सहमत नहीं हैं। 

निराला और रामचन्द्र शुक्ल के बारे में उनकी बहुत से स्थापनाये भी उनको पूरी तरह मान्य नहीं। रामविलास शर्मा ने जीवन के अंतिम दिनों में" पाञ्चजन्य" पत्रिका को एक इंटरव्यू दिया था जिसके कारण वे बहुत विवाद में घिर गए थे। उन पर आरोप लगा कि वे" हिंदुत्व" की शरण में चले गए हैं।

उनके निधन के बाद संघ परिवार से जुड़े लोगों ने रामविलास जी पर दो दिन की संगोष्ठी भी आयोजित की थी। क्या इन घटनाओं के आधार पर हम रामविलास जी को दक्षिणपंथी मान लें, उन्हें ब्राह्मणवादी करार कर दें, उन्हें परम्परावादी स्वीकार कर लें?

यह उनके साथ अधिक ज्यादती होगी, अधिक सरलीकरण होगा। राम विलास जी ने कुल 112 किताबें लिखीं हैं। उन्होंने वेदों की प्रगतिशील व्याख्या करने अपनी परम्परा का मूल्यांकन करने से लेकर हिंदी नवजागरण, राष्ट्रवाद, भारत मे अंग्रेजी राज और मार्क्सवाद भाषा समाजवाद विश्व पूंजीवाद आधुनिकता, उपनिवेशवाद साम्रज्यवाद,  संस्कृति और गांधी लोहिया तथा अम्बेडकर आदि पर भी गम्भीरता से विचार विमर्श और अध्ययन किया है। 

हिंदी में किसी लेखक ने शायद इतने प्रश्नों पर विचार नहीं किया। राहुल सांकृत्यायन के बाद वे दूसरे लेखक हैं जिनका विविध और विशद योगदान है। रामविलास जी का उनके जीवन काल में भी मतभेद रहा। राहुल यशपाल और अमृत राय के साथ उनके वैचारिक मतभेद जगजाहिर हैं।

रामविलास जी ने छायावाद की व्यख्याया भी मार्क्सवादी नज़रिए से की।प्रेमचन्द और महावीर प्रसाद द्विवेदी तथा निराला के योगदान को स्थापित करने वाले वे पहले लेखक हैं।

रामविलास जी की सौ सेअधिक पुस्तकों को शायद ही किसी ने पूरा पढ़ा होगा। उनकी रचनावली आने वाली है लेकिन उनके पुत्र और रचनावली के दूसरे संपादक के डी शर्मा का निधन होने से इसका प्रकाशन फिलहाल खटाई में पड़ गया है लेकिन इस बीच साहित्य अकेडमी ने रामविलास जी का एक संचयन प्रकाशित किया है जिससे उनके सम्पूर्ण लेखन की एक झलक  दिखाई पड़ सकती है।

492 पेज की इस किताब  का सम्पादन डॉ हरिमोहन  शर्मा ने किया है जो दिल्ली विश्विद्यालय में हिंदी के अध्यक्ष रहे हैं। इस किताब में रामविलास जी की कुछ कविताएं कुछ पत्र और उनकी आत्मकथा का अंश तथा विवेकानंद के एक लेख का अनुवाद भी शामिल है तथा निराला शमशेर मुक्तिबोध त्रिलोचन  केदारनाथ अग्रवाल अमृत लाल नागर आदि पर लेख भी हैं। लेकिन उनके सर्वाधिक महत्वपूर्ण लेख  हिंदी जाति के सांस्कृतिक इतिहास की रूपरेखा, जातीय भाषा का गठन, पश्चिम की अस्वीकृति और भारतीय परंपरा संत साहित्य के अध्ययन की समस्याएं, तुलसी साहित्य के सामंतवादी मूल्य, हिंदी गद्य का विकास और भारतेन्दु काल है जिसे पढ़कर हिंदी साहित्य की वैचारिक बहसों को जाना जा सकता है। इतने विस्तृत ढंग से हिंदी के किसी आलोचक ने विचार नहीं किया। 

किताब में बीस पेज की एक भूमिका भी है जिसमें रामविलास जी के विचारों और उनकी अवधारणाओं के बारे में सूत्र वाक्य दिए गए हैं। रामविलास जी सामंतवाद साम्राज्यवाद और पूंजी वाद के गहरे आलोचक हैं। वे भारतीय आधुनिकता भारतीय परंपरा के प्रगतिशील तत्त्वों को रेखांकित करते हैं। वे परम्परा को खारिज नहीं करते बल्कि उसका मूल्यांकन करते है।

वे तुलसी की युग सीमा भी बताते हैं पर अस्मिता विमर्श वादियों को खारिज नहीं करते। वे हिन्दू और मुस्लिम समाज दोनों में जाति प्रथा को मिटाने की बात करते हैं।

रामविलास शर्मा को समग्रता में देखा नहीं गया इससे उनके बारे में भ्रांति अधिक फैलाई गई और ऐसी छवि बनाई गई मानों वे ब्राह्मणवादी थे। उनका पाठ से अधिक कुपाठ किया गया। उनके लेखन की भी एक सीमा थी और कुछ अंतर्विरोध थे पर उनके बारे में सरलीकरण नही किया जा सकता।

उन्होंने जितना लिख दिया उतना दस लेखक भी मिलकर काम नहीं कर सकते। वे एक ऐसे पर्वत की तरह हैं जिनपर चढ़ना मुश्किल औऱ बिना चढ़े पर्वत की आलोचना करना संभव नहीं। रामविलास जी एक चुनौती की तरह हैं। अभी तक कोई उनकी अवधारणाओं के जवाब में ग्रंथ नहीं लिख सका है। उनके भक्त भी उनके लिखे की पूरी व्यख्याया नहीं कर पाएं हैं आलोचक तो दूर की बात।

टॅग्स :हिंदी साहित्यनामवर सिंह
Open in App

संबंधित खबरें

भारतDELHI News: ‘हिन्दी पाठक को क्या पसन्द है’ विषय पर परिचर्चा, लेखक जो लिखे उस पर वह भरोसा कर सके...

भारतNew Delhi World Book Fair 2024: 60 से अधिक नई पुस्तकें पेश करेगा राजकमल, लेखकों के साथ पाठकों के लिए भी बनेगा मंच, जानें सबकुछ

भारतब्लॉग: भाषा की सामर्थ्य है राष्ट्र की सामर्थ्य

भारतWorld Hindi Day 2024 Wishes: आज है विश्व हिंदी दिवस, शुभकामनाएं, संदेश भेजकर दें बधाई, जानें क्या है इतिहास

भारतWorld Hindi Day 2024: 'हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान' का नारा भारतेंदु हरिश्चंद्र ने दिया था, विश्व हिंदी दिवस पर मित्रों, परिजनों को ऐसे दीजिए शुभकामना

भारत अधिक खबरें

भारतVIDEO: 'मैं AAP को वोट दूंगा, अरविंद केजरीवाल कांग्रेस को वोट देंगे', दिल्ली की एक चुनावी रैली में बोले राहुल गांधी

भारत'मोदी सरकार पाकिस्तान के परमाणु बमों से नहीं डरती, पीओके वापस लेंगे', झांसी में बोले अमित शाह

भारतUP Lok Sabha election 2024 Phase 5: राजनाथ, राहुल और ईरानी की प्रतिष्ठा दांव पर!, लखनऊ, रायबरेली, अमेठी, कैसरगंज, फैजाबाद, कौशांबी सीट पर 20 मई को पड़ेंगे वोट

भारतस्वाति मालीवाल को लेकर पूछे गए सवाल पर भड़क गए दिग्विजय सिंह, बोले- मुझे इस बारे में कोई बात नहीं करनी

भारतUP Lok Sabha Elections 2024: भाजपा को आखिर में 400 पार की आवश्‍यकता क्‍यों पड़ी, स्वाति मालीवाल को लेकर पूछे सवाल का दिग्विजय सिंह ने नहीं दिया जवाब