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वेदप्रताप वैदिक: न्याय का होना चाहिए भारतीयकरण

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: April 26, 2022 15:18 IST

न्याय-व्यवस्था का भारतीयकरण करना है तो सबसे पहले उसे अंग्रेजी के शिकंजे से मुक्त करना होगा. कानून संसद में मूल रूप से हिंदी में बनने लगें तो सभी भारतीय भाषाओं में उसका अनुवाद भी काफी सरल हो जाएगा 

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भारत के प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमण की अगुवाई में देश के सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे कई फैसले किए हैं, जिनसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता और सम्मान में वृद्धि हुई है. उन्होंने तमिलनाडु के उच्च न्यायालय भवन की नींव रखते समय जो भाषण दिया, उसमें उन्होंने अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया है. वह है- भारत की न्याय-व्यवस्था के भारतीयकरण का. यह मुद्दा उठाने के पहले उन्होंने कहा कि हमारी अदालतों का आचरण ऐसा होना चाहिए, जिससे आम जनता के बीच उनकी प्रामाणिकता बढ़े. 

उनके फैसलों में कानूनों को अंधाधुंध तरीके से थोपा नहीं जाना चाहिए. न्याय सिर्फ किताबी नहीं होता. उसका मानवीय स्वरूप ज्यादा महत्वपूर्ण होता है. इसी तरह अब भी देश की अदालतों में लगभग 5 करोड़ मुकदमे लटके हुए हैं.

न्यायमूर्ति रमण ने बताया कि देश में 1104 जजों के पद हैं लेकिन उनमें से 388 अभी भी खाली हैं. उन्होंने हमारी न्याय-व्यवस्था के भारतीयकरण का बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा भी अपने भाषण में उठाया. भारतीयकरण का अर्थ क्या है? यही है कि हमारा कानून आजादी के 75 साल बाद भी मूलतः औपनिवेशिक ढर्रे पर चल रहा है. अंग्रेजों के बनाए हुए कुछ कानून हमारी सरकारों ने रद्द जरूर किए हैं लेकिन अभी भी वही पुराना ढर्रा चला आ रहा है. हमारे उच्च न्यायालयों में बहस और फैसले प्रादेशिक भाषाओं में क्यों नहीं होते? उसके लिए हमारे कानून पहले प्रादेशिक भाषाओं में ही बनने चाहिए. 

न्यायमूर्ति रमण ने कहा है कि आज के यांत्रिक मेधा के युग में अनुवाद की प्रक्रिया इतनी सरल हो गई है कि यह सुविधा आसानी से प्रदान की जा सकती है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इस संबंध में पिछले दिनों अच्छी पहल की थी. यदि हमारे कानून संसद में मूल रूप से हिंदी में बनने लगें तो सभी भारतीय भाषाओं में उनका अनुवाद काफी सरल हो जाएगा. यदि न्याय-व्यवस्था का हमें भारतीयकरण करना है तो सबसे पहले उसे अंग्रेजी के शिकंजे से मुक्त करना होगा. 

टॅग्स :एन वेंकट रमणसुप्रीम कोर्ट
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