अभी तक हालांकि कोई आधिकारिक पदस्थापना नहीं हुई है, लेकिन ऐसा लगता है भाजपा के भीतर एक ही व्यक्ति के बलबूते सब चल रहा है. वह व्यक्ति हैं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह. वे न केवल लगातार पार्टी के वास्तविक अध्यक्ष के रूप में उभर रहे हैं, बल्कि उससे भी ज्यादा. शाह राज्यों का दौरा कर रहे हैं, पार्टी नेताओं और सहयोगियों के साथ बंद कमरे में बैठकें कर रहे हैं, सीटों के तालमेल को पुख्ता कर रहे हैं, स्थानीय विवादों का समाधान कर रहे हैं और चुनावी रणनीतियों को नए सिरे से तैयार कर रहे हैं. उनके हालिया तूफानी दौरे-जो जेपी नड्डा से भी ज्यादा तेज हैं- किसी से छुपे नहीं हैं.
शाह न सिर्फ भाजपा, बल्कि एनडीए के सहयोगियों की भी उच्चस्तरीय बैठकों की अध्यक्षता करते हुए दिखाई दे रहे हैं, और 2025-26 के रोडमैप को बेहद सटीकता से तैयार कर रहे हैं. हालांकि दिल्ली में जिस बात ने सबसे ज्यादा चर्चा बटोरी है, वह है ऑपरेशन सिंदूर पर बहस के दौरान उनका राज्यसभा में आना.
प्रधानमंत्री के बाहर होने के कारण, यह व्यापक रूप से अपेक्षित था कि रक्षा मंत्री और कैबिनेट के सबसे वरिष्ठ सदस्य राजनाथ सिंह आगे आकर बहस का जवाब देंगे. लेकिन शाह ही थे जिन्होंने इस अवसर पर जोरदार जवाब दिया और शायद संसदीय ताकत से कहीं ज्यादा का संकेत दिया. जहां मोदी निर्विवाद रूप से भाजपा के सौरमंडल के केंद्र में बने हुए हैं,
वहीं शाह की लगातार बढ़ती हुई कक्षा राजनीतिक पर्यवेक्षकों को यह सोचने पर मजबूर कर रही है : क्या यह 2029 के बाद के भविष्य की नींव है? क्या पार्टी उत्तराधिकार के पारंपरिक क्रम को दरकिनार करते हुए चुपचाप शाह को यह पदभार सौंपने के लिए तैयार कर रही है?
आधिकारिक तौर पर, भाजपा अपना काम पहले जैसा ही जारी रखे हुए है. लेकिन सत्ता के गलियारों में, दीवार पर लिखी इबारत की बारीकी से जांच हो रही है - और अमित शाह का नाम ही बार-बार, मोटे अक्षरों में, सामने आ रहा है.
रूडी के किले में बालियान की सेंध!
25 साल से ज्यादा समय तक राज करने के बाद, भाजपा सांसद राजीव प्रताप रूडी के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में सचिव (प्रशासन) के अपने लंबे समय से चले आ रहे पद पर खतरा मंडरा रहा है - विपक्ष से नहीं, बल्कि अपनी ही पार्टी के संजीव बालियान से. 12 अगस्त को होने वाला चुनाव भाजपा बनाम भाजपा के बीच एक जबरदस्त चुनावी जंग में बदल गया है.
जिसे कभी रूडी का निर्विवाद क्षेत्र माना जाता था, अब एक राजनीतिक उथल-पुथल का मैदान बन गया है. मुजफ्फरनगर के पूर्व सांसद, बालियान ने मैदान में कूदकर कई लोगों को चौंका दिया - और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का खुला समर्थन हासिल करके रूडी खेमे को भी सन्न कर दिया. मंत्री और सांसद उनके लिए सक्रिय रूप से प्रचार कर रहे हैं,
जो इस बात का साफ संकेत है कि सत्ता प्रतिष्ठान रूडी को हटाना चाहता है. हालांकि रूडी को क्लब को 5-सितारा बनाने का श्रेय दिया जाता है- जिम, स्पा, लाउंज और एक विशाल पुस्तकालय के साथ, लेकिन उनकी पकड़ ढीली होती दिख रही है. बालियान को मैदान से हटाने के उनके समर्थकों के प्रयास विफल रहे हैं.
1200 के करीब योग्य मतदाताओं वाले प्रतिष्ठित संस्थान, कॉन्स्टीट्यूशन क्लब, के सदस्यों में मोदी, सोनिया गांधी, राहुल गांधी और खड़गे जैसे दिग्गज शामिल हैं. फिर भी, यह भाजपा का आंतरिक झगड़ा है जिसने सभी का ध्यान आकर्षित किया है. रूडी, जिन्हें कभी अजेय माना जाता था,
अब प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए एक कठिन लड़ाई का सामना कर रहे हैं. लग्जरी स्पा भले ही अभी भी राजनीतिक गपशप और मसाज से गुलजार हो, लेकिन शांति के नीचे, एक तूफान की आहट सुनाई दे रही है और यह भाजपा के भीतर से ही आ रहा है.
भाजपा-अकाली पुनर्मिलन की चर्चा हवा में
लुधियाना उपचुनाव भले ही रातोंरात राजनीतिक समीकरण नहीं बदल सकता हो, लेकिन इसने भाजपा और शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के बीच संभावित पुनर्मिलन की चर्चा को निश्चित रूप से पुनर्जीवित कर दिया है - दो बिछड़े सहयोगी अभी भी पुराने घावों को सहला रहे हैं लेकिन एक साझा प्रतिद्वंद्वी पर नजर गड़ाए हुए हैं : वह है आम आदमी पार्टी.
आप ने 35179 वोटों के साथ आराम से सीट बरकरार रखी, लेकिन राजनीतिक पर्यवेक्षकों का ध्यान भाजपा (20323) और अकालियों (8203) के संयुक्त वोट शेयर ने खींचा. दोनों को मिलाकर 28,526 वोट मिले - जो आप से बहुत ज्यादा पीछे नहीं है, और कांग्रेस के 24542 से काफी ज्यादा है. अटकलों को और हवा सुखबीर बादल की सोची-समझी टिप्पणियों ने दी.
भाजपा के साथ सुलह के बारे में पूछे जाने पर, शिअद प्रमुख ने कहा: ‘हम उस दिशा में नहीं सोच रहे हैं. कोई भी गठबंधन सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए-किसानों, अल्पसंख्यकों, बंदी सिंहों के अधिकारों, हमारे नदी जल और चंडीगढ़ पर हमारे दावे पर.’ उन्होंने दरवाजा जोर से बंद नहीं किया, बल्कि उसे थोड़ा खुला ही रहने दिया है.
कड़वाहट गहरी है. भाजपा द्वारा सिख संस्थाओं को कमजोर करने के कदमों- खासकर दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी पर पार्टी के नियंत्रण-को लेकर अकाली गुस्से में हैं. कृषि कानूनों को लेकर मतभेद अभी भी बरकरार है. लेकिन राजनीति अजीबोगरीब सुलह कराती है.
अकालियों के कमजोर होने और भाजपा के पास एक मजबूत पंजाबी चेहरे की कमी के साथ, एक ठंडे दिमाग से किया गया हिसाब-किताब गर्म यादों या पुरानी शिकायतों पर भारी पड़ सकता है. दोनों के लिए असली इनाम 2027 है- और अगर आम आदमी पार्टी को हराने के लिए अपनी शान को निगलना पड़े, तो कोई भी पक्ष शायद अनिच्छुक न हो.
फिलहाल, खामोशी बहुत कुछ कह रही है. अतीत को भले ही माफ न किया जाए- लेकिन उस पर बातचीत की जा सकती है. दिलचस्प बात यह है कि संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर विशेष चर्चा के दौरान, शिअद सांसद हरसिमरत कौर बादल ने विपक्ष की आलोचना करते हुए कहा कि पाकिस्तान के साथ बढ़ते तनाव को समाप्त करने की ‘तत्काल आवश्यकता’ है.