देश के दो सबसे कुख्यात आर्थिक अपराधियों नीरव मोदी और विजय माल्या को भारत लाए जाने की उम्मीदें आखिरकार पूरी होती दिखाई दे रही हैं. 13800 करोड़ रु. के पीएनबी बैंक घोटाले के मुख्य आरोपी नीरव मोदी को 2019 में लंदन में गिरफ्तार किया गया था, जबकि 9000 करोड़ से अधिक के बैंक ऋण डिफॉल्ट का आरोपी विजय माल्या भी वर्ष 2016 से ही लंदन में है. हैरानी की बात यह है कि ये दोनों भगोड़े ब्रिटिश अदालतों में यह दलील देकर भारत आने से बचने की जुगत में लगे हुए हैं कि यहां उन्हें सुविधा और सुरक्षा नहीं मिलेगी!
इससे भी ज्यादा हैरानी की बात यह है कि वहां की अदालतें कुख्यात आर्थिक अपराधियों की इन दलीलों को गंभीरता से ले भी रही हैं! इसी के अंतर्गत ब्रिटेन की क्राउन प्रॉसिक्यूशन सर्विस (सीपीएस) का एक प्रतिनिधिमंडल हाल ही में तिहाड़ जेल पहुंचा और यहां की सुरक्षा व सुविधाओं का बारीकी से निरीक्षण किया.
हालांकि जेल प्रशासन ने प्रतिनिधिमंडल को भरोसा दिलाया कि प्रत्यर्पित अपराधियों को सुरक्षित रखा जाएगा और जरूरत पड़ने पर इनके लिए जेल परिसर में विशेष सेल भी बनाई जाएगी, ताकि उनकी सुरक्षा में कोई चूक न हो और अंतरराष्ट्रीय मानकों का पूरा पालन हो. इसके चलते इन दोनों भगोड़ों के प्रत्यर्पण पर ब्रिटेन की अदालतों की मुहर लगना लगभग तय हो गया है.
निश्चित रूप से इससे ऐसे आर्थिक अपराधियों को कड़ा संदेश मिलेगा, जो सोचते हैं कि भारत में हजारों करोड़ का घोटाला करके वे विदेशों में ऐशो-आराम की जिंदगी बसर कर सकेंगे. इन प्रत्यर्पणों से यह धारणा बदलने में भी मदद मिलेगी कि भारतीय जेलों में कैदियों के साथ दुर्व्यवहार होता है और सुरक्षा में कमजोरी के चलते उनकी जान को भी खतरा रहता है. हकीकत तो यह है कि पश्चिमी देशों की जेलों में भी कैदियों को ऐशो-आराम के साथ नहीं रखा जाता है और वहां भी कैदियों से दुर्व्यवहार या उनकी जान को खतरा होने की खबरें जब-तब सामने आती रहती हैं.
गुलाम भारत में तो इन्हीं अंग्रेजों ने अंडमान की सेल्युलर जेल को प्रताड़ना का ऐसा केंद्र बना रखा था कि वह ‘काला पानी’ के नाम से कुख्यात हो गई थी. पश्चिमी देशों का यह पाखंड लम्बे समय से चला आ रहा है और भारत पर अनर्गल टैरिफ थोपकर धौंस दिखाने की अमेरिका की हालिया कोशिश भी इसी का एक उदाहरण है. लेकिन भारत अब जिस तरह से इन देशों की मनमानी के खिलाफ तनकर खड़ा हो रहा है, उससे इन देशों को अपने रुख पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.
उम्मीद की जानी चाहिए कि नीरव और माल्या जैसे कुख्यात आर्थिक अपराधियों का प्रत्यर्पण होकर रहेगा और भारत के अडिग रुख के चलते हमारे देश के प्रति पश्चिमी देशों की धारणा में सुधार भी होगा.