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शशिधर खान का ब्लॉगः कांग्रेस-वाम बेमेल गठजोड़ की खुल नहीं रहीं गांठें

By शशिधर खान | Published: June 14, 2022 2:57 PM

केरल में प्रायः उपचुनाव सत्तारूढ़ मोर्चे द्वारा जीतने की परंपरा रही है। इस शहरी सीट ने विपक्षी मोर्चा के उम्मीदवार को जिताकर नई परिपाटी शुरू की। इतना ही नहीं, 2011 में इस विधानसभा क्षेत्र के बनने के बाद से पहली बार किसी उम्मीदवार को सबसे ज्यादा वोटों के अंतर से जीत मिली है।

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केरल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) को कांग्रेस ने झटका दिया है। हालिया विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार उमा थॉमस ने सीधे मुकाबले में सीपीएम प्रत्याशी डाॅ. जो. जोसेफ को 25000 वोटों के भारी अंतर से हराया। ये हार सीपीएम के लिए मायने रखती है, क्योंकि केरल से बाहर पश्चिम बंगाल और अन्य राज्यों में कांग्रेस तथा सीपीएम में प्रायः चुनाव गठजोड़ रहता है। खासकर बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और अभी मजबूत विपक्ष के रूप में उभरी भाजपा से मुकाबले के लिए वामदलों के साथ सीटों के तालमेल की बातचीत में मुख्य भूमिका ‘बिग ब्रदर’ के रूप में सीपीएम निभाती है। लेकिन केरल में एलडीएफ और कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (यूडीएफ) हर चुनाव में एक-दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार खड़े करता है. अभी केरल विधानसभा में कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल है।

केरल के एर्नाकुलम जिले की थ्रिक्काकारा विधानसभा सीट कांग्रेस विधायक पी.टी. थॉमस के निधन से रिक्त हुई थी। उसके लिए हुए उपचुनाव में थॉमस की पत्नी उमा थॉमस को कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया था। 3 जून को घोषित परिणाम ने मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन को कई कारणों से सकते में डाल दिया, जिनके लिए यह हार स्वीकारना कठिन हो रहा है। कांग्रेस की तरह सीपीएम ने भी इस उपचुनाव को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाया हुआ था और सीपीएम ने अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए कांग्रेस नेतृत्व में फूट डालने का भी प्रयास किया।इस विधानसभा सीट के लिए मतदान से पहले की चुनाव प्रचार और अन्य जितनी खबरें तिरुवनंतपुरम से मिलीं, उससे लगता है कि इन दोनों दलों की गांठों के बंधन में धार्मिक एजेंडा समाया था। सीपीएम और कांग्रेस दोनों ने एक-दूसरे पर भाजपा के ‘हिंदुत्व एजेंडे’ के प्रति नरम रवैया रखने का आरोप लगाकर ईसाई समुदाय के वोटों पर दबदबा बनाने का प्रयास किया था।

केरल में प्रायः उपचुनाव सत्तारूढ़ मोर्चे द्वारा जीतने की परंपरा रही है। इस शहरी सीट ने विपक्षी मोर्चा के उम्मीदवार को जिताकर नई परिपाटी शुरू की। इतना ही नहीं, 2011 में इस विधानसभा क्षेत्र के बनने के बाद से पहली बार किसी उम्मीदवार को सबसे ज्यादा वोटों के अंतर से जीत मिली है। उमा थॉमस के पति 2021 विधानसभा चुनाव में 14,300 वोटों से जीते थे, जो कांग्रेस के परंपरागत मजबूत नेता माने जाते थे।

2011 से ही पश्चिम बंगाल से कांग्रेस और सीपीएम के बीच ऐसे बेमेल चुनावी गठजोड़ की शुरुआत हुई, जो केरल में दोनों दलों को असहज कर देती थी। 2011 में पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस का एक मजबूत क्षेत्रीय दल के रूप में उदय हुआ और ममता बनर्जी (दीदी) ने सीपीएम नीत वाम मोर्चा का 37 वर्ष से कायम एकछत्र राज समाप्त किया। उसके पहले तक कांग्रेस बंगाल में एकमात्र मजबूत विपक्षी पार्टी थी। 2011 से लेकर 2021 तक कांग्रेस और सीपीएम दोनों को ही तृणमूल कांग्रेस से लड़ने के लिए एक-दूसरे की औकात तौलते हुए मजबूरन चुनावी गठजोड़ करना पड़ रहा है। तीनों विधानसभा चुनावों में दीदी ने कांग्रेस से ज्यादा वाम मोर्चा को बैकफुट पर ला दिया है।

 सीपीएम तृणमूल कांग्रेस के सीधे निशाने पर रहा और कांग्रेस के प्रति दीदी ने कड़ा रवैया कभी नहीं अपनाया। इन 15 वर्षों में सीपीएम और कांग्रेस गठजोड़ एक-दूसरे पर हार का ठीकरा मढ़ते रहे। जबकि केरल में कांग्रेस मोर्चा और वाम मोर्चा हमेशा सीधे मुकाबले में रहे। केरल के मतदाताओं ने 2021 से पहले एक मोर्चे को लगातार दूसरी बार सरकार बनाने का मौका नहीं दिया।

2021 में केरल और पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान ही इन दोनों मोर्चों की आपसी खींचातानी में एक तरफ भाजपा का ‘हिंदुत्व एजेंडा’ हावी रहा, दूसरी तरफ बंगाल में भाजपा की काट में दीदी की एक साथ कांग्रेस, वाम दल और भाजपा तीनों के घोषित वोट बैंक खाते में सेंधमारी सफल रहीष

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