शशिधर खान
केंद्रीय सूचना आयोग के बारे में संसद में दिए गए सरकार के बयानों से आम मतदाता दिग्भ्रमित हैं. सूचना अधिकार अधिनियम 2005 में संशोधन बिल लोकसभा और राज्यसभा से जैसी अफरातफरी तथा भारी तमाशे के बीच पारित कराया गया, उसे तो संसद सत्र समाप्त होने के बाद लोग भूल जाएंगे, मगर जिस बात को लेकर बहस जारी रहेगी वो ये है कि अब केंद्रीय सूचना आयोग की हैसियत क्या रह जाएगी.
सरकार ने सदस्यों के जबर्दस्त विरोध की बिल्कुल अनदेखी करते हुए सदन को सीआईसी की स्वायत्तता का भरोसा दिलाया, जो सरकारी नियंत्रण वाला प्रावधान है. वर्तमान आरटीआई एक्ट (संशोधन) बिल, 2019 के अनुसार भाजपा गठजोड़ सरकार ने आरटीआई एक्ट, 2005 के अनुच्छेछ 13, 16 और 27 को बदल दिया.
बिल पेश करनेवाले पीएमओ राज्यमंत्री ने कहा कि इस संशोधन से केंद्रीय सूचना आयुक्तों का दर्जा चुनाव आयुक्तों वाला और राज्य सूचना आयुक्तों का दर्जा राज्यों के मुख्य सचिवों के समकक्ष हो जाएगा. सरकार की सबसे कमाल की दलील है सूचना आयुक्तों के कार्यकाल, वेतन और भत्ते की समीक्षा का अधिकार अपने हाथ में ले लेना. यह संविधान के संघीय ढांचे पर भी खतरा है. क्योंकि राज्य निर्वाचन आयुक्तों और सूचना आयुक्तों का वेतन, भत्ता राज्य सरकारों का महकमा है.
सुप्रीम कोर्ट ने कई बार केंद्रीय सूचना आयुक्तों को आरटीआई का ‘अभिभावक’ कहा है. जनता को मौलिक अधिकार देनेवाला ऐसा एकमात्र कानून है आरटीआई, जिसमें बदलाव नहीं किया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने आरटीआई को धारा-19 के अंतर्गत आनेवाले स्वतंत्र अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार का हिस्सा बताया है.
अब सूचना आयुक्त अपनी नौकरी बचाएंगे कि जनता के मौलिक अधिकार की रक्षा करेंगे. मनमोहन सिंह सरकार को घोटालों में सराबोर और खुद को घोटाले से मुक्त होने का दावा करनेवाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने पहले ही शासनकाल में आरटीआई का स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त करना चाहते थे. 2018 में यह संशोधन लाने की तैयारी हो चुकी थी.
सरकार आरटीआई (संशोधन) बिल को संसदीय समिति में न जाने देने पर अड़ी रही. जबकि विपक्षी दल उन विसंगतियों पर चर्चा कराने पर जोर दे रहे थे, जो इस सरकार ने पैदा की है. वाजपेयी शासनकाल में व्यापक विचार-विमर्श के बाद इसका मसौदा तैयार हुआ था. मनमोहन सिंह सरकार ने भी संसदीय समिति गठित की. नरेंद्र मोदी सरकार ने सीआईसी को अपने नियंत्रण में लेकर ‘स्वतंत्र अस्तित्व’ प्रदान करनेवाले संशोधन पर संसद में बहस की जरूरत नहीं समझी.