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ब्लॉग: नगा शांति वार्ता में गतिरोध का दोषी कौन...आखिर क्यों बार-बार फंस जाता है पेंच?

By शशिधर खान | Published: April 21, 2023 1:32 PM

दीमापुर पुलिस परिसर में 12 अप्रैल को एनएससीएन सुप्रीमो टी. मुइवा अपने कुछ सदस्यों के साथ पहुंचे. केंद्र से वार्ता हुई लेकिन यह बेनतीजा रही. हालांकि, एनएससीएन नेता रेजिंग तान्खुल ने जरूर कहा कि बैठक सार्थक रही.

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नगालैंड के दीमापुर रेलवे स्टेशन के वेटिंग हॉल में डिब्रूगढ़ से नई दिल्ली जानेवाली राजधानी एक्सप्रेस पकड़ने के लिए बैठा हूं. 11 अप्रैल की रात 2 बजे की बात है, जो ट्रेन के दीमापुर पहुंचने का टाइम है. गाड़ी के खुलते ही एनएससीएन (नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड-आइसाक मुइवा) नेताओं से केंद्र सरकार की वार्ता की सूचना मिलती है. 5 महीने के अंतराल के बाद दीमापुर  में ही आयोजित इस वार्ता के बारे में जानने की उत्सुकता होती है. 

दीमापुर पुलिस परिसर में 12 अप्रैल को आयोजित इस वार्ता में शामिल होने एनएससीएन सुप्रीमो टी. मुइवा अपने गुट के 20 सदस्यों की टीम के साथ पहुंचे. केंद्र की ओर से वार्ताकार पूर्व खुफिया अधिकारी अक्षय कुमार मिश्र ने नगा नेताओं से अंतिम समझौते के प्रारूपों पर विमर्श किया. लेकिन पहले की तरह बेनतीजा वार्ताओं की तरह इस वार्ता का सार भी गतिरोध ही निकला.

नगा नेताओं की तरह अक्षय मिश्र भी हर वार्ता के बाद कुछ भी बोलने से परहेज करते हैं और मीडिया से मुखातिब नहीं होते. लेकिन इस बार काफी दिनों बाद एक एनएससीएन नेता रेजिंग तान्खुल ने मुंह खोला-‘यह सार्थक बैठक हुई, 2 घंटे चली. इस बात पर सहमति बनी कि ‘फ्रेमवर्क एग्रीमेंट’ के आधार पर अंतिम समाधान निकाला जाए’. लेकिन बैठक के बाद दोनों पक्ष अपना मुंह भी बंद रखते हैं.

एनएससीएन (आईएम) प्रतिनिधिमंडल से मिलने के बाद केंद्र के वार्ताकार अक्षय मिश्र ने सात नगा गुटों के संयुक्त मंच एनएनपीजी (नगा नेशनल पॉलिटिकल ग्रुप) नेताओं से भी दीमापुर में मुलाकात की. इन गुटों से केंद्र का अलग एग्रीमेंट चल रहा है और उन नगा नेताओं से भी अलग शांति वार्ता अक्षय मिश्र चला रहे हैं. ‘फ्रेमवर्क एग्रीमेंट’ 3 अगस्त 2015 का है, जो केंद्र सरकार ने दिल्ली में सिर्फ एनएससीएन (मुइवा गुट) के साथ किया हुआ है. उस समय से जारी शांति वार्ता गतिरोध पर अटकी है. नगा नेता वार्ता के बाद चुपचाप निकल जाते हैं. फिर उनका अपने हेडक्वार्टर दीमापुर से बयान आता है, जिसमें नगा गुट अपनी ‘विशिष्ट पहचान और संस्कृति’ की दुहाई देते हुए ‘अलग झंडा और अलग संविधान’ का अड़ियल रवैया छोड़ने को तैयार नहीं हैं.

7 अप्रैल 2023 को जब मैं दीमापुर में ही था, उसी समय जानकारी मिली कि केंद्र सरकार ने तीन नगा विद्रोही गुटों से संघर्षविराम की अवधि एक साल के लिए फिर से बढ़ाई है. केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से दिल्ली से जारी वक्तव्य के अनुसार ये सारे एनएससीएन से ही निकले गुट हैं, जिनसे अलग-अलग 2021-22 से संघर्षविराम एक-एक साल के लिए चल रहा है, अवधि बढ़ाई जा रही है. इन गुटों से किसी वार्ता की अभी तक रिपोर्ट नहीं है.

सबसे पुराने और दबंग एनएससीएन (मुइवा गुट) का दीमापुर के हेब्रन में हेडक्वार्टर है और अन्य नगा गुटों के भी अड्डे दीमापुर में ही हैं. अक्षय मिश्र की मुलाकात का भी कोई विवरण नहीं मिल पाया. इसका मतलब गतिरोध बरकरार है.

दीमापुर में तीन दिन गुजार कर मैं नगालैंड की राजधानी कोहिमा चला गया और वहां भी तीन दिन खोजी अभियान में जुटा रहा. डिब्रूगढ़-नई दिल्ली राजधानी पकड़ने के लिए फिर वापस 11 अप्रैल की रात को दीमापुर लौटा, तब नगा वार्ता की सूचना मिली. दीमापुर में और उसके बाद कोहिमा में भी मुझे बताया गया कि जहां जाना हो, जिससे मिलना हो या जो भी काम हो, शाम 6 बजे से पहले कर लें. कारण, 6 बजे के बाद बाजार, दुकानें बंद हो जाएंगी, ऑटो-टैक्सी कुछ भी नहीं मिलेगी, सड़कों पर सन्नाटा मिलेगा. नगालैंड से बाहर के लोग (गैर-नगा) बताते हैं कि यह आतंक नगा गुटों का है, जिनकी समानांतर सरकार की टैक्स वसूली और कानून शाम के बाद लागू हो जाते हैं.

जब मैं नगालैंड में हूं, उसी समय केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी गुवाहाटी और अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर में हैं. अरुणाचल प्रदेश में चीन को उन्होंने चेतावनी दी और गुवाहाटी में समूचे उत्तर पूर्व में अमन चैन की बात कही. अमित शाह कहते हैं कि जो पूर्वोत्तर कभी कांग्रेस का गढ़ माना जाता था और हिंसाग्रस्त क्षेत्र के रूप में पहचान बनी थी, वहां अब भाजपा के सत्ता में आने के बाद से शांति है. इसे देखते हुए उत्तर पूर्व के अधिकांश इलाकों से आफ्स्पा (आर्म्स फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट) हटा लिया गया है.

दीमापुर पहुंचने से पहले में 5 अप्रैल को गुवाहाटी में था. गुवाहाटी हाईकोर्ट की 75वीं वर्षगांठ और काजीरंगा नेशनल पार्क के समारोह के सिलसिले में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु आई थीं. ‘नगालैंड पोस्ट’ ने कोहिमा से एक खबर छापी जिसमें स्थानीय वकीलों के गुवाहाटी हाईकोर्ट की वर्षगांठ समारोह के बहाने उपजा असंतोष उभरा.

नगालैंड बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अकितो झिमोमी ने कहा-‘नगालैंड को राज्य का दर्जा मिले 60 वर्ष हो जाने के बावजूद इसका अपना हाईकोर्ट न होना शर्म का विषय है. इस पर गंभीर मंथन की जरूरत है कि 1948 में स्थापित गुवाहाटी हाईकोर्ट के तीन बेंच नगालैंड, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश में अभी तक काम कर रहे हैं जबकि 2013 में मणिपुर, त्रिपुरा और मेघालय को अपने हाईकोर्ट मिले. इस गतिरोध के लिए कौन जिम्मेदार है?

टॅग्स :नागालैंडअमित शाहअरुणाचल प्रदेशमेघालयत्रिपुरा
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