ब्लॉग: मेघालय के पर्यावरण में जहर घोलती रैट होल माइनिंग

By पंकज चतुर्वेदी | Published: May 18, 2024 10:18 AM2024-05-18T10:18:25+5:302024-05-18T10:25:46+5:30

हाईकोर्ट की कमेटी बताती है कि अभी भी अकेले पूर्वी जयंतिया जिले की चूहा-बिल खदानों के बाहर 14 लाख मीट्रिक टन कोयला पड़ा हुआ है जिसको यहां से हटाया जाना है।

Rat hole mining poisoning environment of Meghalaya | ब्लॉग: मेघालय के पर्यावरण में जहर घोलती रैट होल माइनिंग

फोटो क्रेडिट- (एक्स)

Highlights26 हजार से अधिक 'रैट होल माइंस', आज तक एक भी खदान बंद नहीं हुईराष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने इसका आदेश दिया हैकुछ साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी इन खतरनाक खदानों को बंद करने के आदेश दिए

मेघालय के पूर्वी जयंतिया जिले में कोयला उत्खनन की 26 हजार से अधिक 'रैट होल माइंस' अर्थात चूहे के बिल जैसी खदानें बंद करने के लिए राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण द्वारा दिए गए आदेश को दस साल हो गए लेकिन आज तक एक भी खदान बंद नहीं हुई। कुछ साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी इन खतरनाक खदानों को बंद करने के आदेश दिए लेकिन पहले से निकाल लिए गए कोयले के परिवहन के आदेश दिए थे। इस काम की निगरानी के लिए मेघालय हाईकोर्ट द्वारा नियुक्त समिति ने अपनी 22 वीं अंतरिम रिपोर्ट में बताया है कि किस तरह ये खदानें अभी भी मेघों का देश कहे जाने वाले प्रदेश के परिवेश में जहर घोल रही हैं। 

हाईकोर्ट की कमेटी बताती है कि अभी भी अकेले पूर्वी जयंतिया जिले की चूहा-बिल खदानों के बाहर 14 लाख मीट्रिक टन कोयला पड़ा हुआ है जिसको यहां से हटाया जाना है। दस साल बाद भी इन खदानों को कैसे बंद किया जाए, इसकी ‘विस्तृत कार्यान्वयन रिपोर्ट’ अर्थात डीपीआर प्रारंभिक चरण में केन्द्रीय खनन योजना और डिजाइन संस्थान लिमिटेड (सीएमपीडीआई) के पास लंबित है।

मेघालय में प्रत्येक एक वर्ग किमी में 52 रैट होल खदानें हैं। अकेले जयंतिया हिल्स पर इनकी संख्या 26 हजार से अधिक है। असल में ये खदानें दो तरह की होती हैं। पहली किस्म की खदान बमुश्किल तीन से चार फुट की होती है। इनमें श्रमिक रेंग कर घुसते हैं। साइड कटिंग के जरिये मजदूर को भीतर भेजा जाता है और वे तब तक भीतर जाते हैं जब तक उन्हें कोयले की परत नहीं मिल जाती। मेघालय में कोयले की परत बहुत पतली है, कहीं-कहीं तो महज दो मीटर मोटी। इसमें अधिकांश बच्चे ही घुसते हैं। 

दूसरे किस्म की खदान में आयताकार आकार में 10 से 100 वर्गमीटर में जमीन को काटा जाता है और फिर उसमें 400 फुट गहराई तक मजदूर जाते हैं। यहां मिलने वाले कोयले में गंधक की मात्रा ज्यादा है और इसे दोयम दर्जे का कोयला कहा जाता है। तभी यहां कोई बड़ी कंपनियां खनन नहीं करतीं। ऐसी खदानों के मालिक राजनीति में लगभग सभी दलों के लोग हैं और इनके श्रमिक बांग्लादेश, नेपाल या असम से आए अवैध घुसपैठिये होते हैं। रैट होल खनन के चलते यहां से बहने वाली कोपिली नदी का अस्तित्व ही मिट सा गया है। 

एनजीटी ने अपने पाबंदी के आदेश में साफ कहा था कि खनन इलाकों के आसपास सड़कों पर कोयले का ढेर जमा करने से वायु, जल और मिट्टी के पर्यावरण पर बुरा असर पड़ रहा है। कोयले की कालिख राज्य की जल निधियों की दुश्मन बन गई है। लुका नदी पहाड़ियों से निकलने वाली कई छोटी सरिताओं से मिल कर बनी है, इसमें लुनार नदी मिलने के बाद इसका प्रवाह तेज होता है। इसके पानी में गंधक की उच्च मात्रा, सल्फेट, लोहा व कई अन्य जहरीली धातुओं की उच्च मात्रा, पानी में आक्सीजन की कमी पाई गई है।

Web Title: Rat hole mining poisoning environment of Meghalaya

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