ब्लॉग: बलात्कार की मनोविकृति और जनआक्रोश
By राजकुमार सिंह | Updated: August 22, 2024 09:19 IST2024-08-22T09:12:24+5:302024-08-22T09:19:31+5:30
महाराष्ट्र के बदलापुर में स्कूल कर्मचारी द्वारा ही दो मासूम बच्चियों के यौन उत्पीड़न की घटना सामने आई। वहां भी सरकारी तंत्र का रवैया अपराधियों के बजाय विरोध प्रदर्शनकारियों पर सख्ती का नजर आया है। अपनी नाकामी के विरोध में प्रदर्शन करनेवालों पर पुलिस जितनी जोर-आजमाइश करती है या फिर अपने आकाओं को खुश रखने में जितनी मशक्कत करती है।

फाइल फोटो
कोलकाता कांड के बाद देश फिर उद्वेलित है। एक ट्रेनी डाॅक्टर की बलात्कार के बाद हत्या के विरोध में बंगाल ही नहीं, देश के तमाम राज्यों में कैंडल मार्च और प्रदर्शन हो रहे हैं। हालात की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने डॉक्टरों सहित स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े कर्मियों की सुरक्षा संबंधी सुझावों के लिए नेशनल टास्क फोर्स का गठन करते हुए व्यवस्था पर सख्त टिप्पणियां की हैं।
ऐसा जन उद्वेलन 2012 के बाद पहली बार देखने में आ रहा है। तब देश की राजधानी दिल्ली में एक लड़की की सामूहिक बलात्कार के बाद बर्बरतापूर्वक हत्या कर दी गई थी। निर्भया कांड के नाम से चर्चित उस घटना ने देश को हिला दिया था। निर्भया को न्याय और दोषियों को दंड की मांग करते हुए दिल्ली ही नहीं, देश के दूरदराज हिस्सों में भी विरोध प्रदर्शन और कैंडल मार्च हुए। उस जन दबाव का परिणाम बलात्कार कानून में सख्त प्रावधानों के रूप में सामने आया, पर हालात नहीं सुधरे।
हाल ही में महाराष्ट्र के बदलापुर में स्कूल कर्मचारी द्वारा ही दो मासूम बच्चियों के यौन उत्पीड़न की घटना सामने आई। वहां भी सरकारी तंत्र का रवैया अपराधियों के बजाय विरोध प्रदर्शनकारियों पर सख्ती का नजर आया है। अपनी नाकामी के विरोध में प्रदर्शन करनेवालों पर पुलिस जितनी जोर-आजमाइश करती है या फिर अपने आकाओं को खुश रखने में जितनी मशक्कत करती है, उसका 10 प्रतिशत भी अगर कानून व्यवस्था और जन सुरक्षा सुनिश्चित करने में करे तो ऐसी घटनाओं में काफी कमी तो निश्चय ही लाई जा सकती है।
निर्भया कांड के बाद बलात्कार कानून में सख्त प्रावधान के साथ ही ‘फास्ट ट्रैक कोर्ट’ की बात भी हुई थी। कुछ मामलों में त्वरित न्याय भी हुआ, पर वह अपवाद की श्रेणी से आगे नहीं बढ़ पाया। राजस्थान के अजमेर में 100 से अधिक लड़कियों की अश्लील तस्वीरें खींच कर उनका यौन शोषण करने संबंधी कांड में विशेष अदालत का फैसला 32 साल बाद अब 2024 में आया है, जिसमें जुर्माना भी लगाते हुए छह दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। जाहिर है, इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी जाएगी।
उसके बाद सुप्रीम कोर्ट का विकल्प भी होगा ही, यानी अंतिम निर्णय के लिए अंतहीन प्रतीक्षा? ऐसे में यह स्वाभाविक प्रश्न अनुत्तरित ही है कि ‘विलंबित न्याय’ को ‘न्याय से इनकार’ ही माननेवाली अवधारणा के मद्देनजर क्या हमारी व्यवस्था पीड़ितों को न्याय और दोषियों को दंड दे भी पाती है? नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक 2018 से 2022 के बीच बलात्कार के आरोपियों को सजा की दर 27-28 प्रतिशत रहना भी हमारी व्यवस्था को ही कठघरे में खड़ा करता है।
ऐसे जघन्य अपराधों के विरुद्ध जनआक्रोश जीवंत समाज का संकेत है, पर कठघरे में तो समाज भी खड़ा है। आखिर ये अपराधी किसी दूसरे लोक से तो आते नहीं। ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमंते तत्र देवता:’ वाली गौरवशाली संस्कृति से विमुख हो कर अप-संस्कृति के दलदल में धंसने के सच की स्वीकारोक्ति का साहस समाज और सरकार, दोनों को दिखाना होगा-तभी इस मनोविकृति का समाधान खोजा जा सकेगा।