लोकसभा चुनाव के बाद सात राज्यों में हुए 13 विधानसभा सीटों के उपचुनाव में भी मतदाताओं ने भाजपा और उसकी अगुवाईवाले राजग को झटका दिया है. भाजपा (या राजग) मात्र दो सीटें जीत पाई है, जबकि विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ उससे पांच गुना यानी 10 सीटें जीतने में सफल रहा है. शेष एक सीट रूपौली से निर्दलीय उम्मीदवार जीता है.
इसी साल 19 अप्रैल से एक जून के बीच हुए 18 वीं लोकसभा के चुनाव में भाजपा केंद्रीय सत्ता की ‘हैट्रिक’ करने में तो सफल रही, लेकिन उसकी अपनी सीटें 303 से घट कर 240 रह गईं और बहुमत के लिए उसे तेलुगु देशम पार्टी एवं जनता दल यू जैसे सहयोगी दलों पर निर्भर होना पड़ा. मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस 99 और विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ मिल कर 234 सीटें ही जीत पाया. इसलिए भाजपा ने लोकसभा चुनाव में लगे झटके को भी अपनी जीत और जनता का आशीर्वाद बताया, लेकिन इन विधानसभा उपचुनाव नतीजों ने फिर खतरे की घंटी बजा दी है कि जमीन पर उसके लिए सब कुछ ठीक नहीं है.
ये नतीजे किसी एक राज्य के नहीं, बल्कि सात राज्यों की 13 विधानसभा सीटों के हैं, इसलिए इन्हें हल्के में लेने की गलती भाजपा को नहीं करनी चाहिए. हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में भी उपचुनाव में भाजपा को बड़ा झटका लगा है, जहां वह लोकसभा चुनाव में सभी सीटें जीतने में सफल रही थी. हिमाचल में पर्याप्त विधायक न होने के बावजूद भाजपा ने राज्यसभा सीट जीतने के लिए कांग्रेस और उसके समर्थक निर्दलीय विधायकों में तोड़फोड़ की थी. उन्हीं तीन निर्दलीय विधायकों के इस्तीफे के चलते ये उपचुनाव हुए. भाजपा ने उन तीनों निर्दलीय विधायकों को अपने टिकट पर उपचुनाव लड़वाया, लेकिन दो सीटों पर कांग्रेस बाजी मार ले गई.
पिछले दिनों हुए लोकसभा चुनाव में जालंधर सीट पर तीसरे स्थान रहने की शर्मिंदगी झेलने के बाद सत्तारूढ़ आप और मुख्यमंत्री भगवंत मान ने अब उपचुनाव में जालंधर पश्चिम विधानसभा सीट जीत कर अपना सम्मान बचा लिया है. भाजपा को सबसे बड़ा झटका प. बंगाल में लगा है. ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस से लगातार मात खा रही भाजपा पहले तो लोकसभा चुनाव में अपनी पिछली सीट संख्या भी बरकरार रखने में नाकाम रही और अब चार विधानसभा सीटों के उपचुनाव में खाली हाथ रही.
इनमें से तीन उपचुनाव की नौबत तो भाजपा विधायकों के इस्तीफा देने से ही आई थी. एक अन्य सीट पर तृणमूल विधायक के निधन के चलते उपचुनाव कराना पड़ा. उपचुनाव में चारों सीटें तृणमूल के खाते में गई हैं. वैसे 13 में से तीन सीटें ही भाजपा के पास थीं, इसलिए तकनीकी रूप से उसे एक सीट का नुकसान हुआ है, पर कुल परिणाम का राजनीतिक संदेश उसके लिए नकारात्मक है.