Pure drinking water: भारत जैसे देश में एक दशक पहले तक अधिकांश आबादी पीने के पानी के लिए परंपरागत तथा असुरक्षित जलस्रोतों पर निर्भर थी. वहां 78 प्रतिशत से ज्यादा लोगों को नल से पेजयल मुहैया करवा देना अपने आप में बेजोड़ उपलब्धि है. इससे लोगों का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा, दवाओं पर खर्च होने वाले करोड़ों रु. बचेंगे तथा हर वर्ष दूषित पानी के सेवन से होने वाली लाखों लोगों की मौत को टाला जा सकेगा. मोदी सरकार ने 2014 में सत्ता संभालने के बाद स्वच्छता तथा शुद्ध पेयजल आपूर्ति को अपनी प्राथमिकता सूची में रखा था.
स्वच्छ भारत अभियान के कारण लोगों में खासकर ग्रामीण इलाकों में जबर्दस्त जनजागृति हुई है. देश की ग्रामीण आबादी के अधिकांश हिस्से को अब खुले में शौच के लिए जाना नहीं पड़ता. गांवों के 80 प्रतिशत से ज्यादा घरों में सरकार ने शौचालय बनवा दिए हैं. सरकार की दूसरी महत्वाकांक्षी योजना पीने का साफ पानी उपलब्ध करवाना था.
इसके लिए जल जीवन मिशन शुरू किया गया. 2014 से पहले सिर्फ 17 प्रतिशत घरों में नल से जल की आपूर्ति हो रही थी. अब यह संख्या बढ़कर 78.58 प्रतिशत हो गई है. देश के 15 करोड़ ग्रामीण परिवारों को अब नल से जल की आपूर्ति होने लगी है. हालांकि महानगरों तथा 25 लाख से ज्यादा की आबादी वाले शहरों में बढ़ते शहरीकरण से उपजी झुग्गी-झोपड़ियों की कुकुरमुत्ते की तरह उगती बस्तियों, बढ़ती आबादी, बिना किसी योजना के शहरों के विस्तार ने पेजयल आपूर्ति को बुरी तरह प्रभावित किया है.
आजादी के बाद सात दशकों तक अगर 17 प्रतिशत ग्रामीण आबादी को ही नल से जल की आपूर्ति सुनिश्चित हो पाई तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि पीने के पानी को लेकर गांवों की कितनी उपेक्षा की गई. इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि हर साल ग्रामीण भारत की बड़ी आबादी दूषित पानी से होने वाली बीमारियों की चपेट में आती रही.
दो साल पहले जुलाई में ओडिशा के रायगढ़ा इलाके में दूषित पानी पीने से 6 लोगों की मौत हुई. इसी महीने महाराष्ट्र के अमरावती जिले में एक कुएं का पानी पीने से तीन लोगों को जान गंवानी पड़ी. 2014 के पहले ग्रामीण इलाकों में हैजा, डायरिया तथा दूषित पानी से होनेवाली अन्य बीमारियां महामारी की तरह फैलती थीं.
स्थिति में अब सुधार हुआ है तो उसका श्रेय जल जीवन मिशन की सफलता को है लेकिन जल जीवन को बीमारियों पर पूरी तरह काबू पाने में अभी लंबा सफर तय करना पड़ेगा. कर्नाटक को समृद्ध तथा विकसित प्रदेश माना जाता है लेकिन इसी वर्ष जून में तुमकुरु जिले के चिन्नेमा हल्ली गांव में दूषित पानी ने दो लोगों की जान ले ली.
इस वर्ष झारखंड, ओडिशा, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ से दूषित जलस्रोतों का पानी उपयोग करने से बड़ी संख्या में लोगों के बीमार पड़ने तथा जान गंवाने के मामले सामने आए हैं. जून में ही मध्यप्रदेश के भिंड में दूषित पानी ने तीन लोगों की जान ले ली तथा 76 लोग बीमार पड़ गए.
2022 के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में दूषित पानी पीने से हर वर्ष दो लाख लोग जान गंवा रहे हैं. जल जीवन मिशन की सफलता के बावजूद इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि 15 करोड़ ग्रामीण परिवारों को नल से पेयजल की सुविधा उपलब्ध करवा देने के बावजूद अभी भी 22 प्रतिशत आबादी को शुद्ध पेयजल नहीं मिलता.
पीने के पानी की आपूर्ति के लिए 78 प्रतिशत से ज्यादा ग्रामीण आबादी को नल के कनेक्शन तो दे दिए गए हैं लेकिन जलपूर्ति सुनिश्चित करनेवाली ग्रामीण पेयजल परियोजनाओं की सफलता का प्रतिशत उत्साहवर्धक नहीं है. ग्रामीण इलाकों में बड़ी रकम खर्च कर जलापूर्ति परियोजनाओं को पूरा किया गया है लेकिन लगभग 40 प्रतिशत परियोजनाएं अपनी क्षमता के मुताबिक काम नहीं कर पा रही हैं.
गर्मी के दिनों में स्थिति ज्यादा गंभीर हो जाती है क्योंकि जिन जल स्रोतों पर परियोजनाएं निर्भर होती हैं, वे सूख जाते हैं. इन सबके बावजूद सरकार के प्रयासों और इरादों की प्रशंसा की जानी चाहिए. निकट भविष्य में देश के हर घर को पीने के शुद्ध पानी की आपूर्ति निश्चित रूप से होने लगेगी.