युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव और सोशल मीडिया एवं डिजिटल मामलों के प्रमुख मनु जैन ने फरमाया है कि युवक कांग्रेस डिजिटल फौज तैयार करने जा रही है. फौज कितनी बड़ी होगी और कैसे काम करेगी, इसका तो खुलासा उन्होंने नहीं किया लेकिन ये तय है कि कांग्रेस के पास जल्दी ही एक डिजिटल फौज होगी. उनके इस बयान से यह भ्रम हो रहा है कि क्या कांग्रेस या युवक कांग्रेस के पास इस तरह का कोई कुनबा है ही नहीं? ऐसा होना तो नहीं चाहिए क्योंकि डिजिटल तो हमारी जिंदगी के पोर-पोर में समा चुका है, ऐसे में भारत की इतनी बड़ी राजनीतिक पार्टी के पास कोई डिजिटल कुनबा नहीं है तो यह बड़ी गंभीर बात है. मगर सोशल मीडिया पर सर्फिंग करते हुए ऐसा महसूस होता है कि वहां भी कांग्रेस समर्थकों की अच्छी-खासी मौजूदगी है.
हालांकि कई बार कांग्रेस समर्थक थोड़े कमजोर नजर आते हैं या फिर रचनात्मकता में भारतीय जनता पार्टी के समर्थक जितने प्रभावशाली नहीं दिखते हैं, कांग्रेस के समर्थकों में वह नवाचार कम दिखता है. मनु जैन ने फरमाया है कि 2029 के लोकसभा चुनाव में डिजिटल प्लेटफॉर्म और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का प्रभाव बहुत होगा इसलिए युवक कांग्रेस को उसी के अनुरूप तैयारी करनी होगी.
बहुत अच्छी बात है. तैयारी हर फोरम पर होनी ही चाहिए. लोकतंत्र की सार्थकता इसी में है कि सत्ता किसी के लिए स्थायी न बन जाए. जो अच्छा करे, सत्ता उसी के पास जाए. मगर सोचने वाली बात यह है कि एक जमाने में जिस कांग्रेस पार्टी को पूरे देश का आशीर्वाद मिलता था, उससे चूक कहां हो गई? मतदाताओं ने यदि भाजपा को सत्ता में पहुंचाया तो इसका मतलब है कि कांग्रेस की कोई न कोई कमजोरी रही होगी.
यह भी मान लें कि भाजपा ने खुद को ज्यादा स्वस्थ बनाया तो भी सवाल उठता है कि कांग्रेस को खुद को और ज्यादा स्वस्थ बनाने से किसने रोका था? इसका जवाब यह है कि कांग्रेस खुद को अपने क्षत्रपों से ही नहीं बचा पाई. इतने क्षत्रप पैदा हो गए कि वे आपस में ही घमासान करने लगे. जो वास्तव में काम के लोग थे, वे हाशिये पर चले गए.
बात थोड़ी कड़वी है लेकिन चापलूसी का ऐसा चौसर बिछा कि खेल भावना से खेल खेलने की परंपरा ही नष्ट हो गई! राजनीति में हवाई नेताओं को लैंड कराने की परंपरा कांग्रेस ने शुरू की और खुद ही उसका शिकार हो गई. कार्यकर्ताओं के मन में यह सवाल उठा कि जब कर्मठता और पार्टी के प्रति निष्ठा की कोई कीमत ही नहीं तो फिर वक्त क्यों गंवाया जाए?
चापलूसी में मेहनत भी कम और फायदे भी ज्यादा! चापलूसी के विष ने तिकड़मों को जन्म दिया. अब आप बिहार का ही मामला देखिए जहां इसी साल चुनाव होने वाले हैं. राहुल गांधी बहुत मेहनत कर रहे हैं. वोट चोरी को लेकर खूब चिल्ला रहे हैं लेकिन जिस कन्हैया कुमार को कांग्रेस अपना चेहरा बनाने के लिए पार्टी में लेकर आई,
वही कन्हैया कूड़ेदान में फेंक दिए गए हैं क्योंकि वो राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव को पसंद नहीं हैं. तेजस्वी को दरअसल भय सताता है कि कन्हैया कुमार बिहार में कहीं अपना वजूद न खड़ा कर लें. इसीलिए वे वो सभी खटकरम कर रहे हैं जो कन्हैया को दूर रखे. आप जरा सोचिए कि बिहार में कांग्रेस ने जो निर्वाचन समिति गठित की है,
उसमें कन्हैया कुमार का नाम तक नहीं है! बात साफ है कि कांग्रेस के पास गांव, कस्बों, ब्लॉक और जिला स्तरों पर कार्यकर्ताओं की वो फौज नहीं बची है जिस पर कांग्रेस भरोसा कर सके. उसे पता है कि राजद के साथ रहेंगे तो थोड़ी-बहुत सीटें मिल जाएंगी अन्यथा फिलहाल तो भगवान ही मालिक है. इसी साल हुए दिल्ली विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस का क्या हाल हुआ था?
70 सीटों में से एक भी सीट जीतने की बात तो बहुत दूर रही, 70 में से 67 सीटों पर कांग्रेस जमानत भी नहीं बचा सकी. ये जो मनु जैन डिजिटल फौज बनाने की बात कर रहे हैं, उससे कुछ हद तक मतदाताओं को प्रभावित किया जा सकता है लेकिन चुनावी जंग नहीं जीती जा सकती.
चुनाव जीतने के लिए सबसे पहली जरूरत होती है कार्यकर्ताओं की और दूसरी जरूरत होती है प्रभावशाली नेताओं की जो कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार कर सके. कांग्रेस के पास इन दोनों का ही टोटा है. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी निश्चय ही भीड़ जुटा लेते हैं लेकिन उनके बाद कौन?
क्या कोई दूसरा नेता सामने है? ऐसा भी नहीं है कि कांग्रेस के पास नेता नहीं हैं, एक से एक नेता हैं मगर सवाल उनकी पूछ-परख का है. कांग्रेस को अपना पूरा नजरिया बदलना होगा तभी पार्टी स्वस्थ हो पाएगी और अपने पैरों पर खड़ी हो पाएगी. केवल डिजिटल फौज जंग नहीं जिताती!