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पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: हरियाली तो बढ़ रही, पर घटते जा रहे हैं घने जंगल

By पंकज चतुर्वेदी | Updated: April 18, 2023 15:30 IST

भारत की गिनती दुनिया के 10 सबसे अधिक वन-समृद्ध देशों में होती है। यहां लगभग 809 लाख हेक्टेयर में पेड़ हैं, जो कि पूरे देश का लगभग 25 फीसदी है लेकिन यह भी कड़वा सच है कि इसमें लगातार गिरावट आ रही है।

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ठळक मुद्देदिल्ली में विकास के नाम पर 12 से 15 फुट ऊंचे पेड़ों की कटाई से नाराज हुआ कोर्ट80 के दशक में हमारे यहां 19.53 फीसदी वन क्षेत्र था, जो 2021 में 21.71 फीसदी हो गया थायदि इसमें अन्य हरियाली के आंकड़े 2.91 फीसदी को भी जोड़ लें तो फाइलों में कुल हरित 24.62 फीसदी है

दिल्ली में बगैर किसी वैधानिक अनुमति के हर घंटे औसतन पांच पेड़ काटे जा रहे हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने एक हफ्ते पहले ही इस पर सख्त नाराजगी जाहिर की है। कोर्ट ने विकास के नाम पर 12 से 15 फुट ऊंचे पेड़ों की कटाई से नाराज होकर कुछ अफसरों पर अवमानना की कार्रवाई के संकेत दिए हैं।

भारत की गिनती दुनिया के 10 सबसे अधिक वन-समृद्ध देशों में होती है। यहां लगभग 809 लाख हेक्टेयर में पेड़ हैं, जो कि पूरे देश का लगभग 25 फीसदी है लेकिन यह भी कड़वा सच है कि इसमें लगातार गिरावट आ रही है। अगर आंकड़े को देखें तो हरियाली पर कोई फर्क नहीं पड़ा है लेकिन समझना होगा कि वन और हरियाली में फर्क होता है। एक नैसर्गिक वन सदियों में विकसित होता है और उसके साथ एक समूचा जैविक और पर्यावरणीय चक्र सक्रिय रहता है।

भारत के पास सैटेलाइट आधारित वन आवरण मूल्यांकन की एक वैज्ञानिक प्रणाली अस्सी के दशक से है। जिसके कारण योजना, नीति निर्माण और प्रामाणिक फैसले लेने के लिए अनिवार्य आंकड़े मिलते रहे हैं। भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) 1987 से हर दो साल में देश की हरियाली की स्थिति पर रिपोर्ट जारी करता है। 1980 के दशक की शुरुआत में हमारे यहां वन आच्छादित क्षेत्र 19.53 फीसदी था, जो 2021 में बढ़कर 21.71 फीसदी हो गया। यदि इसमें अन्य हरियाली के आंकड़े अनुमानित 2.91 फीसदी को भी जोड़ लें तो फाइलों में देश का कुल हरित आवरण 24.62 फीसदी है।

भारत में वन की गणना के लिए एक हेक्टेयर या उससे अधिक के ऐसे सभी भूखंडों को शामिल किया जाता है, जहां कम से कम 10 फीसदी वृक्ष हों, फिर वह भूमि चाहे निजी हो या फिर बगीचा हो। यह संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित मानदंडों के विपरीत है, जिसमें कहा गया है कि खेती और शहरी भूमि के पेड़ों को जंगल नहीं कहा जा सकता है।

जिस जगह हरियाली का दायरा 40 फीसदी या उससे अधिक हो, उसे घना जंगल कहा जाता है। जबकि 10 से 40 फीसदी के बीच वाले को खुले वन की श्रेणी में रखा गया है। 2003 के बाद से 70 फीसदी से अधिक पेड़ वाले इलाके को अति सघन वन की एक नई श्रेणी में परिभाषित किया गया था।

सन्‌ 2001 के बाद एक हेक्टेयर से कम या अलग-अलग या छोटे समूह में लगे पेड़ों को भी हरियाली गणना में आंका जाने लगा। इस तरह की हरियाली में न तो जैव विविधता का ध्यान रखा जाता है और न ही पारंपरिक वन की तरह यहां बड़े पेड़ से लेकर झाड़ी और घास, बरसाती पानी को रोकने की संरचनाएं और जीव-जंतु होते हैं।

इस तरह की हरियाली धरती को बचाने के लिए वह सब फायदे नहीं देती जो प्राकृतिक वन से मिलते हैं। नए पेड़ों में कार्बन सोखने की क्षमता, बादलों को आकर्षित करने के गुण, जीव-जंतुओं को आसरा देने की विशेषता होती नहीं हैं।

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