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पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: पेयजल को तरसता ग्रामीण भारत

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: January 24, 2020 14:01 IST

यह समझना होगा कि भूजल प्यास बुझाने का जरिया नहीं हो सकता. आज 16 करोड़ से अधिक भारतीयों के लिए सुरक्षित पीने के पानी की आस अभी बहुत दूर है. अगस्त, 2018 में सरकार की ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया था कि सरकारी योजनाएं प्रतिदिन प्रति व्यक्ति सुरक्षित पेयजल की दो बाल्टी प्रदान करने में विफल रही हैं जोकि निर्धारित लक्ष्य का आधा था.

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पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन पर शुरू ‘अटल भूजल योजना’ में छह हजार करोड़ रु. की लागत से छह राज्यों के हर गांव-घर तक पानी पहुंचाने की चुनौती बेहद जटिल है. यह समझना होगा कि भूजल प्यास बुझाने का जरिया नहीं हो सकता. आज 16 करोड़ से अधिक भारतीयों के लिए सुरक्षित पीने के पानी की आस अभी बहुत दूर है. अगस्त, 2018 में सरकार की ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया था कि सरकारी योजनाएं प्रतिदिन प्रति व्यक्ति सुरक्षित पेयजल की दो बाल्टी प्रदान करने में विफल रही हैं जोकि निर्धारित लक्ष्य का आधा था. रिपोर्ट में कहा गया कि खराब निष्पादन और घटिया प्रबंधन के चलते सारी योजनाएं अपने लक्ष्य से दूर होती गईं.

भारत सरकार ने प्रत्येक ग्रामीण व्यक्ति को पीने, खाना पकाने और अन्य बुनियादी घरेलू जरूरतों के लिए स्थायी आधार पर गुणवत्ता मानक के साथ पानी की न्यूनतम मात्रा उपलब्ध करवाने के इरादे से राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम सन 2009 में शुरू किया था. इसमें हर घर को परिशोधित जल घर पर ही या सार्वजनिक स्थानों पर नल द्वारा मुहैया करवाने की योजना थी. इसमें सन 2022 तक देश में शत-प्रतिशत शुद्घ पेयजल आपूर्ति का संकल्प था.

भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट बताती है कि कई हजार करोड़ रु. खर्च करने के बाद भी यह परियोजना सफेद हाथी साबित हुई है. हर जगह यह बात सामने आई कि स्थानीय समाज से सलाह लिए बगैर, स्थानीय पारंपरिक स्त्रोतों में जल की उपलब्धता पर विचार किए बगैर योजनाएं बनाई गईं. और जब वे पूरी हुईं तो उनका इस्तेमाल ही नहीं हो सका.

उदाहरण के लिए पारंपरिक कुओं को असुरक्षित पेयजल स्त्रोत घोषित कर दिया गया जबकि महज मामूली साधन व्यय कर इन कुओं को सुरक्षित बनाया जा सकता था. इसमें महज समाज को जागरूक करने और पानी की सुरक्षा के उपाय को सुनिश्चित करने  पर ध्यान देना था. सारी योजना ऊंची टंकी खड़ी करने और पाइप डालने तक सीमित रह गई. यह सोचा ही नहीं गया कि गांव में जब बिजली की आपूर्ति ही नियमित नहीं है तो पानी टंकी में पहुंचेगा कैसे. 

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