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रंगनाथ सिंह का ब्लॉग: इमरान खान जितने मजबूत होंगे पाकिस्तान उतना 'कमजोर' होगा

By रंगनाथ सिंह | Published: July 18, 2022 11:02 AM

पाकिस्तान के पंजाब विधानसभा की 20 सीटों के लिए रविवार को हुए उपचुनाव में इमरान खान की तहरीके-इंसाफ (PTI) ने 15 सीटें जीत ली हैं। इस जीत के साथ ही पंजाब सूबे में इमरान खान की तंजीम की सरकार बनना तय माना जा रहा है। इमरान खान द्वारा पीएम पद छोड़ने के बाद पाकिस्तान में यह पहला चुनाव था।

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ठळक मुद्देइमरान खान को अप्रैल में बहुमत न होने के कारण पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद से छोड़ना पड़ा था।उपचुनाव से पहले पाकिस्तान के पंजाब सूबे में मरियम नवाज की PMLN नीत गठबंधन की सरकार थी। 20 सीटों पर हुए उपचुनाव के बाद पंजाब सूबे में PTI की सरकार बनने की राह आसान हो गयी है।

पाकिस्तानी पंजाब में अब इमरान खान की तहरीके-इंसाफ की सरकार बनेगी। इमरान खान पीएम की गद्दी से उतरने के बाद से ही लगातार विक्टिम कार्ड खेल रहे हैं। खान ने जनता के बीच खुद को इस्टैब्लिशमेंट के शहीद और दीन के रक्षक के तौर पर पेश किया और कौम ने उनकी सुन ली। पाकिस्तान का कोई भी सियासतदाँ खान के मुल्ला अवतार के आगे फिलहाल टिकता नहीं दिखता।

पाकिस्तानी पंजाब के 20 सीटों के लिए उपचुनाव कल हुए। खान की तहरीके-इंसाफ को 13 सीट चाहिए थी, उन्होंने 15 जीत ली। मरियम नवाज की नून लीग को 11 पर जीत चाहिए थी लेकिन वह चार ही जीत सकीं। मरियम ने बहुत शालीन ढंग से हार को स्वीकार किया है। मरियम का एक भाषण भारत में भी कुछ वोक जन ने शेयर किया था जिसमें वह मजहब को निजी मसला बता रही थीं। जाहिर है कि उनके मुल्क की जनता ने ही उनकी नहीं सुनी। हमारे मुल्क की क्या ही सुनेगी!

पाकिस्तानी पत्रकारों के अनुसार पंजाब और केंद्र अलग-अलग दलों की सरकार हो तो निजाम चलाना बहुत मुश्किल हो जाता है। मुस्लिम लीग (नवाज) का पंजाब में दबदबा रहा है। इस चुनाव में पाक विशेषज्ञ इस बात पर हैरत जता रहे थे कि नून लीग लाहौर के अन्दर तीन सीटें हार गयी। अब केंद्र में नून लीग और बिलावल भुट्टो की पीपीपी इत्यादि की साझा सरकार है और पंजाब और खैबर में इमरान खान की। सिंध में पीपीपी की सरकार है। बलूचिस्तान में बीएपी की।

इमरान खान चाहते हैं कि जल्द से जल्द आम चुनाव हो। इमरान खान ने अपने प्रचार के दौरान इस्टैब्लिशमेंट (पढ़ें सेना), चुनाव आयोग और पुलिस इत्यादि पर उनको हराने की साजिश करने का आरोप लगाया। उनकी पार्टी चुनाव जीत गयी फिर भी उसके बाद भाषण देते हुए उन्होंने आम चुनाव में चुनाव आयोग को निष्पक्ष रहने की ताकीद की। कुल मिलाकर इमरान खान ने टिपिकल मजहबी नरेटिव पकड़ लिया है कि वो जीते तो इंसाफ होगा, वो हारे तो साजिश हुई है।

इरमान खान अपने सियासी सफर की शुरुआत से 'इस्लामी निजाम' का यूटोपिया बेचते आ रहे हैं। 'इस्लामी निजाम' के यूटोपिया की सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि खुद को दुनिया भर के मुसलमानों का लीडर बताने वाले दर्जनों दावेदार आज भी मौजूद हैं। इमरान खान का विक्टिम कार्ड आम चुनाव में भी शायद चल जाए और उन्हें वापस मुल्क की कमान मिल जाए लेकिन खान ने इसके लिए जो रास्ता चुना है वह पाकिस्तान को नए विभाजन की तरफ धकेल चुका है।

खान विक्टिम कार्ड चलते हैं यह कम खतरनाक है, ज्यादा खतरनाक यह है कि वह अपनी बेदखली के लिए गुनाहगार के तौर पर 'पाकिस्तानी सेना' की तरफ इशारा कर रहे हैं। खान ने कल भी और पहले भी लगातार कहा है कि वह मुल्क को (अमेरिका की) 'गुलामी' से आजादी दिला रहे हैं। इस चुनाव को उन्होंने 'पाकिस्तान के आजादी की जंग' बताया और कहा कि 'अमेरिकी साजिश के तहत मुल्क के डाकू को सियासत सौंपी गयी है।' इमरान ने बार-बार आरोप लगाया कि अमेरिका की मर्जी के बिना पाकिस्तान में चपरासी तक नियुक्त नहीं होता!

मुश्किल यह है कि पाकिस्तान की आज यह हालत है कि वह चाहे जो कर ले खैरात का कटोरा हाथ से नहीं छोड़ सकता। ऐसा लगता है कि इमरान खान को अमेरिका से ज्यादा चीन की गोद पसन्द है। पाकिस्तान उपचुनाव के ठीक पहले चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने शायद पहली बार मुसलमानों पर सार्वजनिक बयान देते हुए कहा है कि चीन में मुसलामानों को चीनी तौरतरीकों से रहना होगा। जाहिर है कि इमरान खान और तहरीके-इंसाफ की मजबूरी है कि वो जिनपिंग और वीगर मुसलमानों के मुद्दों पर चुप रहना होगा।

ऐसा नहीं है कि इमरान खान ने पाकिस्तानी सियासत में कोई चमत्कार किया है। खान बस अपने पूर्ववर्ती हुक्मरानों की जोती-बोई जमीन पर लहलहा रही फसल काट रहे हैं। क्रिकेट से मिली लोकप्रियता का इस्तेमाल खान दशकों से तैयार मजहब जमीन पर भीड़ से 'ला इलाहा इल अल्लाह' का नारा लगवाकर बस उस बीज को सींच रहे हैं जो उनके पहले वालों ने बोया है।

दुनिया जानती है कि आज पाकिस्तान जो भी है उसमें अमेरिका का बहुत बड़ा हाथ रहा है। ट्रंप पहले अमेरिकी राष्ट्रपति थे जिसने पाकिस्तान की फण्डिंग पर सवाल उठाया। इस समय भी IMF के मार्फत पाकिस्तान को कर्ज से उबारने का प्रयास किया जा रहा है। पाकिस्तान का खर्च अमेरिका चलाता है लेकिन हैरत यह है कि भारत और पाकि्स्तान के ज्यादातर आम मुसलमानों के मन में 'अमेरिका से नफरत' पायी जाती है। यही कारण है कि इमरान खान अपने भाषणों में 'अमेरिका' को भर-भर कर गाली देते हैं लेकिन हर धर्मान्ध की तरह उनको भी यह समझ नहीं आ रहा है कि वो मुल्क को बर्बादी की राह पर ले जा रहे हैं।

पंजाब उपचुनाव से पहले एक रैली में खान ने कहा कि चुनाव में आप धांधली कर लें तो भी नहीं जीतेंगे लेकिन आपने धांधला किया तो...उसके नतीजे जमीन पर दिखेंगे। पंजाब विधानसभा उपचुनाव में जीत मिलने के बाद जब इमरान खान ने चुनाव आयोग से निष्पक्ष आम चुनाव कराने की अपील करते हुए अगली ही पँक्ति में लिखा कि 'वरना दूसरा कोई रास्ता मुल्क को ज्यादा अस्थिरता और आर्तिक बदहाली की तरफ ले जाएगा।' बच्चा भी समझ सकता है कि इमरान खान इंतजामिया को ब्लैकमेल कर रहे हैं कि उन्हें दोबारा पीएम बनाओ नहीं तो....।

चुनाव से पहले खान ने यह कहकर हंगामा मचा दिया था कि पाकिस्तान तीन टुकड़े में टूट सकता है! विरोधी इसपर पिल पड़े लेकिन इमरान खान ने आधा सच कहा था। खान बस ये नहीं समझ पा रहे हैं कि उनके पीएम बनने के बाद ही तीन टुकड़े वाली प्रक्रिया पहले से तेज होगी। अफगान तालिबान ने खैबर पख्तूनख्वा (केपीके) की तरफ पहले ही हाथ-पैर बढ़ाना शुरू कर दिया है। केपीके की आबादी का संतुलन पहले से ही तालिबान के पक्ष में है। पख्तून आबादी वहाँ बहुसंख्यक है। पाकिस्तान के अन्य सूबों में भी शरणार्थी पख्तूनों की संख्या अच्छी-खासी हो चुकी है। इस्लामी मुल्कों में लामबन्दी का बड़ा आधार कबीलावाद है। ईरानी, कुर्द, तुर्क, मुगल, मंगोल, कुरैश, पख्तून कबीलों के बीच इस्लामी निजाम का खलीफा बनने की होड़ लगी रहती है। इस पसे-मंजर में इमरान खान की दावेदारी बहुत कमजोर है।

imran khan poster
एक पाकिस्तानी पत्रकार ने हाल ही में एक डिबेट में कहा था कि पाकिस्तानी सेना के अन्दर ऐसा सियासी बँटवारा पहले नहीं दिखा था। खान लगातार परोक्ष तौर पर पाक सेना को निशाने पर ले रहे हैं। पाक सेना का आंतरिक संतुलन बिगड़ा तो इमरान खान से पाकिस्तान को एक टुकड़े में सम्भाले रखना लगभग नामुमकिन हो जाएगा। पंजाब उपचुनाव में जीत के बाद इमरान खान ने ऊपर दिख रहा पोस्टर जारी किया। आप देख सकते हैं कि खान साहब आसमान की तरफ देख रहे हैं, ऐसे आसमानी लोगों के पैरों के नीचे से जमीन कब खिसक जाती है उन्हें पता ही नहीं चलता।

आज इतना ही। शेष, फिर कभी।

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