योगेश जादौन
भारत बिना हथियार उठाए ही पाकिस्तान को झुकने पर मजबूर कर देगा। सिंधु जल समझौता को रद्द करना भारत सरकार का ऐसा ही कदम है जो पाकिस्तान ने कभी सोचा भी नहीं था। यह तब भी नहीं हुआ जब भारत पाकिस्तान से तीन युद्ध लड़ चुका था। शायह यही बात रही कि पाक को यह मुगालता हो गया कि कम से कम भारत सरकार यह कदम नहीं उठाएगी। मगर, शायद वह मोदी को पढ़ने में चूक गई। इससे पहले भी मोदी ने इसका संकेत दे दिया था। उन्होंने कहा था कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकता है। प्रधानमंत्री मोदी की इस बात को पाक शायद हल्के में ले गया।
भारत सरकार के इस कदम पर भारत के अंदर कोई विरोध
सिंधु जल समझौता पाकिस्तान की ऐसी दुखती रग है जिसे दबाने के बारे में आज तक नहीं सोचा गया। यह ऐसी हिम्मत का काम है जिसे आखिरकार भारत सरकार ने कर ही दिया। पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए यह बेहद जरूरी भी है। हम अपने देश के अंतरर्विरोधों से निपटने रहेंगे। वह हमारा मसला है। मगर पाक को यह नहीं समझना चाहिए कि भारत सरकार के इस कदम पर भारत के अंदर कोई विरोध है।
भारतीय नरेश मैदान की जगह किले के अंदर ही रहकर दुश्मन से लड़ने की रणनीति
यह बेहद अपरिहार्य था। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। हमेशा से ही दुश्मन को घुटनों पर लाने के लिए सेनाएं विरोधी की रसद आपूर्ति को ठप कर देने की रणनीति पर ही काम करती रही हैं। खासतौर पर भारतीय नरेशों के विरोध में आक्रमणकारियों ने हमेशा ही यह रणनीति अपनाई। उसका कारण यह था कि भारतीय नरेश मैदान की जगह किले के अंदर ही रहकर दुश्मन से लड़ने की रणनीति पर पहले काम करते थे।
ग्वालियर पर लोदी का अभियान सफल हो सका
ग्वालियर किले को जीतने के लिए इब्राहिम लोदी ने यही रणनीति अपनाई। तीन माह तक किले का घेरा डाले रहने के बाद भी जब ग्वालियर के तोमर राजा उसके काबू में नहीं आए तो उसने किले की जलापूर्ति को बंद करवा दिया। इसके बाद ग्वालियर पर लोदी का अभियान सफल हो सका। ऐसे तमाम उदाहरण भारतीय इतिहास में भरे पड़े हैं।
खैर, तो इसमें कोई नैतिकता का पाठ नहीं पढा़ए कि आखिर किसी देश की पानी कैसे रोका जा सकता है। जब उन्हें हमारे नागरिकों की सांसें रोकने में शर्म नहीं आ रही तो फिर हमें भी यह हक है नराधमों को काबू में लाने के लिए कुछ भी करना पड़े। आखिर शठे शाठ्यम समाचरेत इसी के लिए तो कहा गया है।
सिंधु बेसिन की छह नदियों के जल को लेकर एक समझौता हुआ
अब थोड़ा सा यह भी समझ लेते हैं कि यह सिंधु समझौता है क्या और इससे आखिर पाकिस्तान घुटने पर कैसे आएगा। सन 1960 यानी जवाहर लाल नेहरू के समय भारत और पाक के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में सिंधु बेसिन की छह नदियों के जल को लेकर एक समझौता हुआ। तब पाक के प्रधानमंत्री अयुब खान थे।
इस समझौते के मुताबिक चिनाब, झेलम और सिंधु नदी का पानी पाकिस्तान को मिलना था और रावी, सतलुज और ब्यास का पानी भारत के पास रहता। इसमें भी सिंधु, झेलम और चिनाब का 20 प्रतिशत पानी भारत रोक सकता है। मोटा-मोटी तौर पर यह समझौता इतना सा है मगर इसका प्रभाव बड़ा व्यापक है। इसका कारण यह है कि सिंधु जल समझौता पाक की जल मांग के 80 फीसदी हिस्से की पूर्ति करता है।
औद्योगिक गतिविधि ठप पड़ जाएगी और लोग पीने के पानी को तरसेंगे
पाकिस्तान की गेहूं, धान और कपास की खेती इसी पानी पर निर्भर है। यही नहीं, पाकिस्तान के कई महत्वपूर्ण शहर इन तीन नदियों सिंधु, झेलम और चिनाब के किनारे बसे हुए हैं। ये शहर इन्हीं के पानी की जलापूर्ति पर निर्भर हैं। अगर यह पानी रुक गया तो पाकिस्तान की खेती सूख जाएगी, औद्योगिक गतिविधि ठप पड़ जाएगी और लोग पीने के पानी को तरसेंगे।
यही नहीं, इस जल से पाक पनबिजली भी पैदा करता है जो पाक की कुल बिजली की मांग के 30 फीसदी हिस्से को पूरा करता है। आप समझ सकते हैं कि इस जल समझौता को रोक देने से क्या होने वाला है। पाकिस्तान जिसकी जीडीपी का सबसे बड़ा हिस्से खेती और उद्योग पर ही निर्भर है, वह ध्वस्त हो जाएगा।
पाक की अभी मुद्रा भंडार बमुश्किल 10 मिलियन डालर ही जो भारत के 600 मिलियन डालर के मुकाबले कहीं नहीं ठहरता। सिंधु जल समझौता अपने आप में अकेला ऐसा कदम है जिसे उठाकर भारत ने बिना एक भी गोली चलाए पाक को बौखलाने पर मजबूर कर दिया है।
अब होगा क्याः इससे बाद होगा क्या? रोता-बिलखता पाक अपने दोस्तों के पास भागेगा। वह चीन और अमेरिका से गुहार लगाएगा। ट्रेड वार में फंसा अमेरिका शायद ही उसकी मदद करे। चीन अपने स्वार्थ को साधने के लिए कुछ आगे आ सकता है लेकिन उसे साधने के लिए भारत के पास कई मार्ग हैं। वह अपने जलमार्ग से मजबूत अटैक कर सकता है।
पाक बलुचिस्तान में खुद फंसा हुआ
अमेरिका से साथ ट्रेड वार में फंसा चीन व्यापार के भारत के पक्ष में मुड़ने के कारण पहले से बौखलाया हुआ है। दूसरा, पाक विश्व बैंक के पास जा सकता है। तीसरा, वह अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में गुहार लगा सकता है। मगर, इस सारी प्रक्रिया में उसे तीन से चार माह लगेंगे और इतने समय में पाक की कमर टूट जाएगी। फिर पाक बलुचिस्तान में खुद फंसा हुआ है।
मगर, ढीठ पाकिस्तान ने युद्ध की तैयारी करनी शुरू कर दी है। उसने दक्षिण में तैनात अपने जहाजी बेड़े को उत्तर में शिफ्ट किया है। मिसाइल टेस्ट की भी तैयारी है। मगर, उसकी यह तैयारी आग में कूदने से अधिक कुछ नहीं। पाकिस्तान का जनरल असीम मुनीर अहमद शाह अपनी ओछी बुद्धि से पाक को ऐसी आग में झोंकने की तैयारी कर चुका है जिसका परिणाम युद्ध हुआ तो पूरा पाक भुगतेगा।